यदि आपने 22 दिसंबर को रामलीला मैदान में प्रधानमंत्री द्वारा कही इस बात पर विश्वास कर लिया है कि 'एनआरसी' पर कोई चर्चा ही नहीं हुई है तो आप बड़ी गलतफहमी में हैं। इस पर न केवल चर्चा ही हुई है बल्कि दो दिन बाद ही 24 दिसंबर को "एनपीआर' के रुप में इस दिशा में बढ़ने का निर्णय भी कर लिया गया।
तब रामलीला मैदान में की गई झूठ की बारिश, सीएए विरोधी आन्दोलन की आंच को ठंडा करने के लिए किया गया था और अब गृहमंत्री श्री अमित साह,प्रकाश जावडेकर और श्री रविशंकर प्रसाद जैसे वरिष्ठ मंत्री द्वारा एक के बाद एक- एनपीआर' 'एनआरसी' लिंंक्ड नहीं है!दोनों में कोई संबंध नहीं है! सेंशस(जनगणना) की तरह है ,जैसे ताबड़तोड़ बयानों से 'एनपीआर'को इस आन्दोलन के विरध्द कवर प्रदान कर रहे हैं।
तब रामलीला मैदान में की गई झूठ की बारिश, सीएए विरोधी आन्दोलन की आंच को ठंडा करने के लिए किया गया था और अब गृहमंत्री श्री अमित साह,प्रकाश जावडेकर और श्री रविशंकर प्रसाद जैसे वरिष्ठ मंत्री द्वारा एक के बाद एक- एनपीआर' 'एनआरसी' लिंंक्ड नहीं है!दोनों में कोई संबंध नहीं है! सेंशस(जनगणना) की तरह है ,जैसे ताबड़तोड़ बयानों से 'एनपीआर'को इस आन्दोलन के विरध्द कवर प्रदान कर रहे हैं।
वस्तुत: यह कहना कि एनपीआर और सेंशस एक है , गलत है। एनपीआर(नेशनल पोपुलेशन रजिस्टर) में, भारत में स्थानीय रुप से रहने वाले उन सभी सामान्य निवासी को रजिस्टर के रुप में सूचीबद्ध करना है जो 6 माह या अधिक समय से रह रहे हैं अथवा 6 माह या अधिक बाद तक रहना चाहते हैं। इसमें विदेशी लोग भी हो सकते हैं। एनपीआर पहली बार 2010 में की गई थी अब 1 अप्रैल 2020 से दूसरी बार कराने का निर्णय किया गया है।
यह जनगणना (सेंशस) नहीं है। सेंशस में भारत में रहने वाले भारत के लोगो के जीवन से जुड़े विभिन्न पहलुओं यथा लिंगानुपात, जन्म-मृत्य , शिक्षा व साक्षरता, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति और आर्थिक गतिविधियों आदि का सांख्यिकीय विवरण तैयार किया जाता है। इसमें केवल भारतीय नागरिक ही शामिल किए जाते हैं और 1881 से ही प्रत्येक 10 साल के अन्तराल पर यह होते आ रहे हैं 2021 में 16वीं सेंशस होगी।
सेंशस में न तो कोई कागजात मांगे जाते हैं और न ही इसमें दी गई जानकारी को किसी अदालत में सबूत के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है परन्तु एनपीआर में कागजात मांगे जा सकते हैं और सबूत के रूप में उसका सत्यापन और कारवाई दोनों हो सकती है।सबसे बड़ी बात, आजादी के बाद सेंशस, 1948 के 'सेंशस एक्ट' के आधार पर कराये जाते हैं जबकि एनपीआर 2003 के 'नागरिकता नियम' के आधार पर किए जाते हैं । वस्तुतः एनपीआर और सेंशस एक नहीं है यह बात सरकार भी जानती है और इसलिए इनके लिए अलग-अलग बजट का प्रावधान करती है । स्पष्ट है मंत्रीगण किसी खास उद्देश्य से झूठ बोल रहे है।
यह जनगणना (सेंशस) नहीं है। सेंशस में भारत में रहने वाले भारत के लोगो के जीवन से जुड़े विभिन्न पहलुओं यथा लिंगानुपात, जन्म-मृत्य , शिक्षा व साक्षरता, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति और आर्थिक गतिविधियों आदि का सांख्यिकीय विवरण तैयार किया जाता है। इसमें केवल भारतीय नागरिक ही शामिल किए जाते हैं और 1881 से ही प्रत्येक 10 साल के अन्तराल पर यह होते आ रहे हैं 2021 में 16वीं सेंशस होगी।
सेंशस में न तो कोई कागजात मांगे जाते हैं और न ही इसमें दी गई जानकारी को किसी अदालत में सबूत के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है परन्तु एनपीआर में कागजात मांगे जा सकते हैं और सबूत के रूप में उसका सत्यापन और कारवाई दोनों हो सकती है।सबसे बड़ी बात, आजादी के बाद सेंशस, 1948 के 'सेंशस एक्ट' के आधार पर कराये जाते हैं जबकि एनपीआर 2003 के 'नागरिकता नियम' के आधार पर किए जाते हैं । वस्तुतः एनपीआर और सेंशस एक नहीं है यह बात सरकार भी जानती है और इसलिए इनके लिए अलग-अलग बजट का प्रावधान करती है । स्पष्ट है मंत्रीगण किसी खास उद्देश्य से झूठ बोल रहे है।
"Preparation of the National Register of Indian Citizens. (1) The Central
Government shall, for the purpose of National Register of Indian Citizens, cause to
carry throughout the country a house-to-house enumeration for collection of
specified particulars relating to each family and individual, residing in a local area
including the Citizenship status.
(2) The Registrar General of Citizen Registration shall notify the period and
duration of the enumeration in the Official Gazette.
(3) For the purposes of preparation and inclusion in the Local Register of Indian
Citizens, the particulars collected of every family and individual in the Population
Register shall be verified and scrutinized by the Local Registrar, who may be
assisted by one or more persons as specified by the Registrar General of Citizen
Registration.
(4) During the verification process, particulars of such individuals, whose
Citizenship is doubtful, shall be entered by the Local Registrar with appropriate
remark in the Population Register for further enquiry and in case of doubtful Citizenship, the individual or the family shall be informed in a specified proforma
immediately after the verification process is over."
नेशनल पोपुलेशन रजिस्टर( एनपीआर) किसी से जुड़ा है तो वह नेशनल रजिस्टर फार सिटीजन( एनआरसी) है ।दोनों ही 2003 नागरिकता नियम (रजिस्ट्रेशन आफ सिटीजन एण्ड इश्यू आफ नेशनल आईडेन्टिटी कार्ड) के ही हिस्से हैं। इस नियम में ही लिखा है कि एनपीआर , एनआरसी कि दिशा में पहला कदम है और यह भी लिखा है कि एनपीआर में उपलब्ध आंकड़ों का सत्यापन कर उनका उपयोग एनआरसी में किया जायेगा। ऐसे में एनपीआर और एनसीआर में घनिष्ठ संबंध को लेकर कोई शंका ही नहीं बचती है ।
इतना ही नहीं गृहमंत्रालय के 2018-2019 वार्षिक रिपोर्ट के अध्याय 15 के पारा 15.40 में भी साफ लिखा है एनपीआर, एनआरसी की बनाने दिशा में उठाया गया पहला कदम है और भारत की सरकार इस योजना को स्वीकृति दे चुकी है। इसके अलावा कई मंत्री भी ऐसा ही बयान संसद में और संसद के बाहर दे चुके हैं।फिर भी आश्चर्य है कि प्रधानमंत्री सहित पूरा मंत्रिमंडल इसे एक सुर में झूठलाने में लगा है। स्वतंत्र भारत के इतिहास ने ऐसा पलटीमार मंत्रिमंडल नहीं देखा है। कानून में लिखा है और गृहमंत्रालय के रिपोर्ट में है फिर भी गृहमंत्री श्री अमित साह कहते हैं एनपीआर के आंकड़ों का इस्तेमाल एनआरसी बनाने में नहीं किया जायेगा। जनता किस पर भरोसा करे !पलटीमार मंत्रिमंडल के गृहमंत्री पर या कानून पर!
इतना ही नहीं गृहमंत्रालय के 2018-2019 वार्षिक रिपोर्ट के अध्याय 15 के पारा 15.40 में भी साफ लिखा है एनपीआर, एनआरसी की बनाने दिशा में उठाया गया पहला कदम है और भारत की सरकार इस योजना को स्वीकृति दे चुकी है। इसके अलावा कई मंत्री भी ऐसा ही बयान संसद में और संसद के बाहर दे चुके हैं।फिर भी आश्चर्य है कि प्रधानमंत्री सहित पूरा मंत्रिमंडल इसे एक सुर में झूठलाने में लगा है। स्वतंत्र भारत के इतिहास ने ऐसा पलटीमार मंत्रिमंडल नहीं देखा है। कानून में लिखा है और गृहमंत्रालय के रिपोर्ट में है फिर भी गृहमंत्री श्री अमित साह कहते हैं एनपीआर के आंकड़ों का इस्तेमाल एनआरसी बनाने में नहीं किया जायेगा। जनता किस पर भरोसा करे !पलटीमार मंत्रिमंडल के गृहमंत्री पर या कानून पर!
जनता सब जानती है उसने झूठ को पकड़ लिया है उसने सीएए, एनआरसी के साथ एनपीआर का भी विरोध करना शुरू कर दिया है। सरकार का कहना है जब 2010 में एनपीआर हुआ था तब तो विरोध नहीं हुआ था तो अब क्यों? इसके दो कारण हैं एक तो 2010 के एनपीआर के पृष्ठभूमि में सीएए जैसा कानून नहीं था दूसरे इस एनपीआर के लिए तैयार की गई 15 प्रश्नो की प्रश्नावली में सावधानी पूर्वक उन प्रश्नों को शामिल ही नहीं किया गया जिनका उपयोग नागरिकता का निर्णय करने में हो सकता था।
आधार को लेकर अनिश्चितता की स्थिति में एनपीआर का उद्देश्य लोककल्याणकारी योजनाओं क्रियान्वयन था न कि नागरिकता का रजिस्टर बनाना। इसलिए इसका विरोध नहीं हुआ। पर सीएए जैसे अनसेकुलर कानून की पृष्ठभूमि में आए 2020 के एनपीआर की 21प्रश्नों वाली प्रश्नावली में जानबूझकर ऐसे प्रश्नों को भी जोड़ा गया है जिनका उपयोग बड़ी आसानी से नागरिकता का निर्णय करने में किया जा सकता है।
आधार को लेकर अनिश्चितता की स्थिति में एनपीआर का उद्देश्य लोककल्याणकारी योजनाओं क्रियान्वयन था न कि नागरिकता का रजिस्टर बनाना। इसलिए इसका विरोध नहीं हुआ। पर सीएए जैसे अनसेकुलर कानून की पृष्ठभूमि में आए 2020 के एनपीआर की 21प्रश्नों वाली प्रश्नावली में जानबूझकर ऐसे प्रश्नों को भी जोड़ा गया है जिनका उपयोग बड़ी आसानी से नागरिकता का निर्णय करने में किया जा सकता है।
इन प्रश्नों में माता-पिता की भी जन्म तिथि और जन्म स्थान पूछने को शामिल करने का उद्देश्य नागरिकता का निर्णय करना ही हो सकता है न कि किसी लोककल्याणकारी योजना को लागू करना। वास्तव में यह एनपीआर यदि बन जाता है तो एनआरसी के लिये ज्यादा कवायद की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। सिर्फ एनपीआर में पहले से चिन्हित कर दिए गए ''डी"(डाउटफुल) नागरिकों के कागजात मांग कर सत्यापन कर एनआरसी तैयार हो जायेगा ।
यहीं पर सीएए सक्रिय हो जायेगा, कागजात नहीं रहने पर मुस्लिम घुसपैठिये करार दिए जायेंगे उन्हीं कागजात के न होने पर ही बाकि को सीएए कानून के तहत शरणार्थी मानकर नागरिकता दे दी जायेगी। स्पष्ट है कि पहले से ही भारत की धर्मनिरपेक्ष नीति का विरोधी सीएए,एनपीआर और एनआरसी से जुड़ कर पूरा साम्प्रदायिक ही हो जाता है। ये तीनों ही लिंक्ड हैं और नया एनपीआर तो एनआरसी बनाने की दिशा में प्रथम ही नहीं अन्तिम महत्वपूर्ण कदम है।
यहीं पर सीएए सक्रिय हो जायेगा, कागजात नहीं रहने पर मुस्लिम घुसपैठिये करार दिए जायेंगे उन्हीं कागजात के न होने पर ही बाकि को सीएए कानून के तहत शरणार्थी मानकर नागरिकता दे दी जायेगी। स्पष्ट है कि पहले से ही भारत की धर्मनिरपेक्ष नीति का विरोधी सीएए,एनपीआर और एनआरसी से जुड़ कर पूरा साम्प्रदायिक ही हो जाता है। ये तीनों ही लिंक्ड हैं और नया एनपीआर तो एनआरसी बनाने की दिशा में प्रथम ही नहीं अन्तिम महत्वपूर्ण कदम है।
यही कारण है कि एनपीआर का भी जनता द्वारा विरोध हो रहा है।अब बंगाल और केरल की सरकारों ने तो घोषणा कर दी है वो अपने राज्यों में एनपीआर नहीं होने देंगे। विपक्ष के बाकि राज्य भी संभवतः ऐसा करने जा रहे हैं। बहुमत के दंभ में सरकार भी सीएए और एनपीआर को लागू करने पर अडिग है। बीजेपी भी अपने हिन्दुवादी एजेण्डे के अनुकूल इन कानूनों के समर्थन में सड़क पर उतर चुकी है। मामला धर्मनिरपेक्षता बनाम कट्टरवाद होता जा रहा है।
मास्टर स्ट्रोक्स हिट विकेट हो गए हैं,अर्थ व्यवस्था लुढ़की पड़ी है हिन्दु- मुस्लिम नहीं हो पा रहा है और छद्म राष्ट्रवाद का चोला उतर चुका है , सेकुलर राष्ट्रवाद विपक्ष की ओर जा चुका है। गांधीजी फिर सावरकर पर भारी पड़ रहे हैं। निराशा में प्रधानमंत्री संसद के सम्मान के दुहाई देते दिखाई पड़ रहे हैं तो हताशा में गृहमंत्री डंडे का जोर दिखा रहे हैं। विरोध संसद का नहीं गलत कानून का हो रहा है और प्रजातंत्र में न तो सरकार डंडे से चलती है और न ही सिर्फ बहुमत से । यह जनमत से चलती है और जनमत इन कानूनों के खिलाफ है।
मास्टर स्ट्रोक्स हिट विकेट हो गए हैं,अर्थ व्यवस्था लुढ़की पड़ी है हिन्दु- मुस्लिम नहीं हो पा रहा है और छद्म राष्ट्रवाद का चोला उतर चुका है , सेकुलर राष्ट्रवाद विपक्ष की ओर जा चुका है। गांधीजी फिर सावरकर पर भारी पड़ रहे हैं। निराशा में प्रधानमंत्री संसद के सम्मान के दुहाई देते दिखाई पड़ रहे हैं तो हताशा में गृहमंत्री डंडे का जोर दिखा रहे हैं। विरोध संसद का नहीं गलत कानून का हो रहा है और प्रजातंत्र में न तो सरकार डंडे से चलती है और न ही सिर्फ बहुमत से । यह जनमत से चलती है और जनमत इन कानूनों के खिलाफ है।
Very nicely written!
जवाब देंहटाएंNice presentation
जवाब देंहटाएंVery nice presentation of current scenario .
जवाब देंहटाएंVery specific n nicely written!!
जवाब देंहटाएं