"CAA" should be canceled, that's good for all! "सीएए" रद्द हो इसी में सबकी भलाई है!

 "CAA" should be canceled, that's  good for all!
अब तो अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष(आई एम एफ) ने भी कह दिया कि भारत की अर्थव्यवस्था डावांडोल स्थिति में है और यह अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक कारणों से नहीं बल्कि अन्दरुनी वजहों से है । इसका अन्तर्राष्ट्रीय विकास दर पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। इसी क्रम में उसने भारत का 2019-2020 का अनुमानित विकास दर 6.1% से घटाकर 4.8% कर दिया है।
"CAA" should be canceled, that's  good for all!


 आइएमएफ के इस रिपोर्ट से काफी पहले से ही आरबीआई सहित कई अन्य स्रोत से घटती जीडीपी, रिकार्ड तोड़ बेकारी, निर्माण क्षेत्र में मंदी, क्रय शक्ति में कमी,रूपये का अवमूल्यन, किसानों में असंतोष आदि अनेक मानकों पर भारतीय अर्थव्यवस्था की तंगहाली का बयान करने  वाले सर्वे और रिपोर्ट आ चुके थे साथ ही इसमें नोटबंदी और जीएसटी जैसे कानूनों की हिस्सेदारी भी तकरीबन साबित हो चुकी थी। ऐसे में कोई भी समझदार सरकार  देश में शांति और सदभाव का माहौल कायम रखते हुए अपना सारा फोकस और ऊर्जा अर्थव्यवस्था पर केन्द्रित कर देश को इस संकट से निकालने का प्रयास करती।


पर यह श्री नरेन्द्र मोदी की बीजेपी सरकार है जो ऐसा नहीं सोचती है इसलिए ऐसी विषम आर्थिक परिस्थिति में भी अपने पार्टी के एजेंडे को लागू करने को ही प्राथमिकता देती है। इसलिए "सीएए"जैसे विभेदकारी कानून लाए गए हैं और एनआरसी जैसी एनपीआर  की घोषणा हुई है। जाहिर है इसका विरोध शुरू हो गया जिसकी अगुवाई छात्र कर रहे हैं  जिसमे पूरे देश के सभी समुदाय और वर्गो के लोग शामिल हो गए हैं। गोदी मिडिया लगातार प्रयास कर रहा है विरोध के इस स्वर को साम्प्रदायिक रंग दिया जाय पर अभी तक सफल नहीं हो पाया है।


सरकार ने इस विरोध को कठोरता से दबाने की कोशिश की है और इस क्रम में सरकारी बर्बरता व दमन के नये रिकॉर्ड बनाये गए हैं। 1942 का भारत छोड़ो आन्दोलन हो या 1975 की राष्ट्रीय आपातकाल  उस समय की भी पुलिस ने विश्वविद्यालय के पुस्तकालय को बख्श रखा था उस सीमा को भी लांघा गया और जामिया मिलिया विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में घुसकर छात्र और छात्राओं की बर्बरता से पिटाई की गई।


 यही बर्बरता यूपी, कर्नाटक और असम जैसे बीजेपी शासित राज्यों में भी हुई। जेएनयू में यह काम नकाबपोशों द्वारा किया गया। सबसे ज्यादा हिंसा श्री योगी नाथ के मुख्यमंत्री वाले यूपी में हुई 21 लोगों की जाने गई हैं ,हजारों लोगों गिरफ्तार किए गए हैं और फर्जी मुकदमें लादें गए हैं। बावजूद इन सबके पूरे देश में यह मूलत: अहिंसक आन्दोलन बदस्तूर जारी है जो यह साबित करती है भारत की जनता अपने प्रजातांत्रिक मूल्यों और संविधान में न केवल आस्था रखती है बल्कि इसकी रक्षा के लिए सजग भी है और यह किसी शाही या तानाशाही से डरती भी नहीं है। पर इस सरकारी जबरदस्ती और जनता द्वारा विरोध में भारत की अर्थव्यवस्था  संकटग्रस्त  होने के बावजूद उपेक्षित अवश्य हो गई है।


प्रधानमंत्री श्री मोदी और उनके मंत्री  सीएए के समर्थन में बार-बार ये कह रहे हैं कि यह एनपीआर और एनआरसी से लिंक्ड नहीं है और यह नागरिकता देने की बात करता है छीनने की नहीं अतएव इसका विरोध गलत है। यद्यपि ये बिलकुल झूठ है कि एनपीआर, एनआरसी से लिंक्ड नहीं है,इसके तो प्रमाण हैं  वो भी लिखित और यह भी सच्चाई है बिना इनके सीएए प्रभावी या लागू नहीं हो सकता।



फिर भी यदि प्रधानमंत्री की बात को थोड़ी देर को सच भी मान लिया जाय तो भी सीएए का विरोध उचित है। इस कानून में  पड़ोसी देशों को चुना गया धर्म के आधार पर , पीड़ितों को चुना गया धर्म के आधार पर ,और फिर  नागरिकता देने की बातें की गई हैं वो भी धर्म पर और इतने ही पर्याप्त हैं भारत जैसे सेकुलर देश में विरोध करने के लिए!  भेदभाव क्यों सब पड़ोसी और सब पीड़ितों को क्यों नहीं?



आखिर ऐसा कानून तो पाकिस्तान, बंगलादेश, अफगानिस्तान, श्रीलंका, भूटान, ग्रीस, डेनमार्क, ईरान और इराक जैसे अन्य पहले से ही संकीर्ण धार्मिक राष्ट्रों में भी नहीं हैं यथा वहां भी धर्म के आधार पर नागरिकता नहीं निर्णीत की जाती है।  सेकुलर भारत इस कानून से विश्व का आध्यात्मिक गुरु बनेगा या फिर कट्टरपंथी देशों की जमात में शामिल होगा? इस बारे में सरकार जो सोचती हो पर भारत की जनता को ये स्वीकार्य नहीं है।


"CAA" should be canceled, that's  good for all!

इसलिए अच्छा होता इस कानून को वापिस ले लिया जाता। पर जैसाकि गृहमंत्री श्री अमित शाह कह रहे हैं वे एक ईंच पीछे नहीं हटेंगे सीएए लागू होकर रहेगा। सही है पीछे हटने की विनम्रता और माफी मांगने का बड़प्पन वो सारी क्षमता तो अंग्रेजों के खिलाफ खर्च हो चुके हैं हम भारतीयों के लिए कुछ बचा नहीं। अब सारी उम्मीदें सुप्रीम कोर्ट पर टिकी हैं, वो शीघ्रता से निर्णय करे ताकि देश और सरकार का सारा फोकस भारत की लगातार गिरती आर्थिक हालात को संभालने  में लगे और इसी में सबकी भलाई है।





Parimal

Most non -offendable sarcastic human alive! Post Graduate in Political Science. Stay tuned for Unbiased Articles on Indian Politics.

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