Shaheenbagh - a unique movement!शाहीनबाग-एक अनूठा आन्दोलन!


Shaheenbagh - a unique movement!
जिस "सीएए 2019" कानून व उसकी पूरी क्रोनोलोजी और फिर जामिया मिलिया यूनिवर्सिटी में पुलिस बर्बरता  को लेकर पूरी दुनिया में भारत सरकार की किरकिरी हो रही है उसीका विरोध करने दिल्ली के "शाहीनबाग" में धरने पर बैठी मुख्यतः महिलाओं के प्रदर्शन की पूरे विश्व में भूरी-भूरी प्रशंसा हो रही है




Shaheenbagh - a unique movement!




 14 दिसंबर 2019 को मात्र 15 महिलाओं द्वारा शुरू किया गया यह प्रदर्शन, सीएए विरोधी आन्दोलन का प्रतीक बन चुका है और देश भर में इसी की तर्ज पर जगह-जगह धरने दिए जा रहे हैं।शाहीनबाग धरने में शामिल लोगों की संख्या कभी-कभी लाख तक पहुँच जाती है। शाहीनबाग प्रजातांत्रिक विरोध का अद्वितीय उदाहरण बन चुका है। इस विरोध का न तो कोई नेता है और न ही इसके पीछे कोई राजनैतिक पार्टी है। यह महिलाओं द्वारा संचालित पूर्णतः अहिंसक और लक्ष्य प्राप्ति तक 24*7 चलने वाला आन्दोलन है जिसमें छोटे बच्चे सहित दादी और नानी की उम्र की महिलायें शामिल हैं।

इस आन्दोलन को प्रेरणा भारतीय संविधान की प्रस्तावना से मिली है तो संघर्ष करने की क्षमता और जज्बा महात्मा गांधी , अंबेडकर, शहीद भगतसिंह और बिस्मिल के विचारों से मिल रही है। धर्मनिरपेक्षता, स्वतंत्रता, समानता, न्याय और बंधुत्व जैसे विचार जो किताबी शब्द बन कर रह गये थे उन्हें यहां जिया जा रहा है। धरने में मुस्लिम बाहुल्य के बावजूद हिन्दु व अन्य धर्मावलंबी और दिल्ली सहित देश के कोने- कोने से बुध्दिजीवी, किसान, मजदूर, छात्र और आम लोग स्त्री या पुरुष सभी शामिल होकर आन्दोलन को मजबूती प्रदान कर रहे हैं। सर्वधर्म पाठ और हवन  का आयोजन हो रहा है।


भाषण और संवाद का खुला मंच शाहीनबाग प्रदान कर रहा है और स्लोगन, पुस्तक, पेटिंग, बैनर, कठपुतलियां और नुक्कड़ नाटकों का इस्तेमाल प्रदर्शन को एक अनोखी गरिमा प्रदान कर रहे हैं। एक तरफ वामपंथी विचारधारा के आजादी वाले नारें को अपनाया गया है वहीं भारत माता की जय के भी जयकारें लग रहे हैं । यहां की महिलायें अपने प्रदर्शन के अहिंसक, धर्मनिरपेक्ष और देशभक्त छवि को बरकरार रखने को लेकर ज्यादा सतर्क हैं और इसके लिए उन्होंने खुद से सीसीटीवी लगवा रखा है।
Shaheenbagh - a unique movement!


शाहीनबाग के प्रदर्शनकारियों ने दिल्ली की रिकार्ड तोड़ सर्दी का सामना तो बहादुरी से किया ही साथ ही दिल्ली विधानसभा चुनाव को लेकर बीजेपी के अपमानजनक टिप्पणियों का  मुकाबला भी गांधीवादी शालीनता और धैर्य से किया है। बीजेपी ने खुलेआम शाहीनबाग के आन्दोलन को चुनावी मुद्दा बना लिया। आरोप लगाए गए वहां बैठे हिन्दुओं को थूक कर खाना दिया जा रहा है तो कभी कहा गया महिलायें  पैसे लेकर धरने पर बैठ रही हैं। सर्जील इमाम  के असम संबधी बयान और पाकिस्तान जिन्दाबाद के नारे को भी शाहीनबाग से जोड़ा गया। यद्यपि ये सारे आरोप बेबुनियाद साबित हुए हैं।


 शाहीनबाग के विरोध  को बदनाम करने में बीजेपी के सर्वोच्च स्तर से भी निम्न स्तरीय बयान दिए गए। केन्द्र सरकार के एक मंत्री ने इस आन्दोलन को पाकिस्तान परस्त कथित टुकड़े टुकड़े गैंग की साजिश कह कर गद्दार बतला दिया तो दूसरे मंत्री ने उन्हें गोली मारने का आह्वान कर दिया और इसके नारे लगवाये । जबकि एक आरटीआई की रिपोर्ट साबित हो चुका है कि "टुकड़े- टुकड़े गैंग " गृहमंत्रालय के किसी फाइल में नहीं है। ऐसे में यह गैंग कहीं है तो वह गृहमंत्री सहित बीजेपी नेता और गोदी मीडिया के जुबान पर है। यदि ये अपनी-अपनी जुबानें अच्छी तरह साफ कर लें तो यह कथित गैंग स्वत: साफ हो जायेगा।


 शाहीनबाग के अहिंसक स्वरूप को नष्ट करने के लिए एक सनकी ने उन पर गोली भी चलायी फिर भी आन्दोलनकारी डटे रहे उत्तेजना में प्रतिहिंसा नहीं की। दिल्ली के एक बीजेपी सांसद ने शाहीनबाग के पुरुष प्रदर्शनकारियों को बलात्कारी तक बतला दिया जो हिन्दुओं के घर में इसे अंजाम देंगे। इस घटिया बयान को भी शाहीनबाग ने बर्दाश्त कर लिया। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी भी भला पीछे क्यों रहने वाले थे उन्होंने शाहीनबाग के प्रदर्शन को भाईचारे के खिलाफ एक प्रयोग बतला कर अपने झूठ की फेहरिस्त और लम्बी कर ली। प्रयोग यदि हो रहा है तो वो बीजेपी कर रही है और ये प्रयोग है सीएए कानून का साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण हेतु उपयोग!



 यदि ये दिल्ली में सफल रहा तो बाकि राज्यों में सफलता की गारंटी ही बन जायेगी। गृहमंत्री श्री अमित शाह ने चुनावी रणनीति को वैचारिकता का अद्भुत पुट देने की कोशिश की और कह दिया दिल्ली चुनाव दो विचारधाराओं की लड़ाई है एकतरफ राष्ट्रवादी भाजपा है तो दूसरी तरफ देश विरोधी शाहीनबाग। पता नहीं बीजेपी का ये राष्ट्रवाद कैसा है जब देश की आजादी के लिए अंग्रेजों से लड़ना था तब ये मुसलमानों के विरोध में लगे पड़े थे और आज जब बदहाल अर्थव्यवस्था से लड़ने की जरुरत है तब भी मुस्लिम विरोध में लगे हुए हैं। तब सत्ता का खौफ था और अब तो सत्ता में है फिर भी वही रट! मुस्लिम विरोध राष्ट्रवाद कैसे हो सकता इसे तो साम्प्रदायिकता कहते हैं।


बहरहाल दिल्ली के चुनाव 8 फरवरी को शाहीनबाग के प्रदर्शनकारियों के धैर्य और सहनशीलता के कारण  शान्ति पूर्ण संपन्न हो गए हैं। ओपिनियन पोल और एक्जिट पोल में बीजेपी की हार हो चुकी है पर बीजेपी नेताओ को ईवीएम के नतीजों पर अधिक विश्वास है पता नहीं इसका कोई विशेष कारण हो। खैर नतीजे कुछ भी हों उससे शाहीनबाग आन्दोलन को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है क्योंकि शाहीनबाग बीजेपी के लिए चुनावी मुद्दा था पर शाहीनबाग के लिए दिल्ली चुनाव कोई मुद्दा नहीं था। इसके लिए भारत के संविधान और मौलिक अधिकार की रक्षा ही महत्वपूर्ण हैं। मामला सुप्रीम कोर्ट में है और यह कोई जरुरी नहीं जैसी हैरतअंगेज निष्क्रियता जम्मू और कश्मीर मामले में दिखलाई गई वो इस मामले में भी दिखलाई जाय।












Parimal

Most non -offendable sarcastic human alive! Post Graduate in Political Science. Stay tuned for Unbiased Articles on Indian Politics.

2 टिप्पणियाँ

और नया पुराने