Delhi election results and impact! दिल्ली चुनाव परिणाम और प्रभाव!

Delhi election results and impact!
दिल्ली की 2020 का विधानसभा चुनाव शायद स्वतंत्र भारत के इतिहास के सबसे घटिया,ओछे,और निम्न स्तर के प्रचार अभियान के बीच लड़ा गया चुनाव था पर गनीमत ये रही कि चुनाव में जीत उस आम आदमी पार्टी(आप) को मिली जिसने राजनीति की गरिमा को कायम रखते हुए अपने काम के आधार पर वोट मांगे।

Delhi election results and impact!

दिल्ली विधानसभा के कुल 70 सीटों में से 62 सीटें आप को मिली तो बीजेपी को महज 8 सीट और कांग्रेस का खाता ही नहीं खुला।आप को अपने किए गए कामों का फल मिला उसे 53.57% मत मिले बीजेपी के धुआंदार ध्रुवीकरण के प्रचार का लाभ मिला 38.87%मत मिले। ध्रुवीकरण के कारण कांग्रेस के वोट घट कर 4.26% तक रह गये। कांग्रेस पार्टी ने शीला वाली दिल्ली के नाम पर चुनाव लड़ा पर बुरी तरह फेल हुई। क्यों कि एक तो स्वर्गीया शीला दीक्षित जैसा नेतृत्व नहीं था दूसरे जनता ने यह मान लिया कि दिल्ली में फिलहाल बीजेपी को टक्कर दे सकता है तो वह आप है न कि कांग्रेस।



आप के श्री अरविंद केजरीवाल के टक्कर का नेता दिल्ली में बीजेपी के पास भी नहीं था और न ही उनके बिजली, पानी, सड़क और स्वास्थ्य के काम के मुद्दों का कोई जवाब था। इस कारण दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी ,"शाहीनबाग" में सीएए कानून के विरोध में शांतिपूर्ण धरने पर बैठी महिलाओं को ही चुनावी मुद्दा बना बैठी। फिर इनके बड़े-बड़े नेताओं ने साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण के लिए इनके खिलाफ गद्दार, टुकड़े- टुकड़े गैंग,आतंकवादी, पाकिस्तानी, करंट फिर गोली और गाली जैसे अपशब्दों प्रयोग कर दिल्ली के राजनैतिक वातावरण को इतना विषाक्त कर दिया भारतीय जनमानस सन्न रह गया।



 ये तो भला हो दिल्ली की जनता का जिसने ऐसे परिणाम दिए धर्मनिरपेक्ष भारतीय लोकतंत्र फिलहाल राहत महसूस कर सकता है। शाहीनबाग में हो क्या रहा था या है एक कानून का शांतिपूर्ण अहिंसक विरोध ही ना! औरंगाबाद की हाईकोर्ट ने अन्य मामले में हाल के एक फैसले में कहा है किसी कानून के इस तरह के विरोध को न तो रोका जा सकता है और न ही ऐसा करने वाले गद्दार या देशद्रोही होते हैं। इसी फैसले में यह भी कहा है यही वो तरीके हैं जिनसे देश ने स्वतंत्रता हासिल की थी।


 ऐसे में शाहीनबाग को लेकर बीजेपी द्वारा मचायी गई हाय-तोबा कतई उचित नहीं थी। दिल्ली की जनता ने इसे अस्वीकार कर दिया।शाहीनबाग की महिलाओं ने परिणाम आने पर न तो जश्न मनाये, न पटाखे छोड़े और न ही मिठाईयां बांटी उल्टे मुंह पर पट्टी बांध मौन रख कर अपनी विश्वसनीयता बनाई रखी। ऐसे में यह कहना गलत न होगा कि दिल्ली चुनाव में बीजेपी की राजनैतिक हार के साथ-साथ नैतिक पराजय भी हुई है।


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बीजेपी ने कश्मीर से संबंधित धारा 370 की समाप्ति के मुद्दे को दिल्ली चुनाव में भी उठाये पर इसका कोई खास असर हरियाणा, महाराष्ट्र, झारखंड के चुनावों की तरह दिल्ली में भी नहीं पड़ा। यह सही है सरकार के 370 से संबंधित फैसले का सीएए की तरह विरोध नहीं हुआ पर देशवासियों को अभी तक समझ नहीं आ रहा है इससे देश को क्या फायदा हुआ ?


कश्मीरी दु:खी हैं ६ महीने से प्रतिबंधित जिन्दगी जी रहे हैं, विदेश में भारत की किरकिरी हो रही है, कशमीर के नेता जेल में बंद है, भारत के विपक्ष नेताओ का वहां जाने पर प्रतिबंध है, देश के बाकि हिस्से के लोग कशमीर जाने से डर रहे हैं और एक अनुमान के अनुसार कशमीर की अर्थव्यवस्था का 18000 करोड़ का नुकसान हो चुका है। फर्क क्या पड़ा जम्मू और कश्मीर भारत का अभिन्न अंग पहले भी था अब भी है! अभी भी स्थिति सामान्य नहीं हुई है क्योंकि अगर ऐसा होता तो सभी प्रतिबंध समाप्त कर दिए गए होते। ये लंबा चलने वाला है क्यों कि इस संवेदनशील राज्य को असंवेदनशील तरीके से नियंत्रित करने की कोशिश की गई है।



 दिल्ली चुनाव में बीजेपी की रणनीति और दूषित प्रचार अभियान ने ये स्पष्ट कर दिया कि चाहे "सीएए"हो या धारा 370 की समाप्ति इनका मुख्य लक्ष्य संकीर्ण हिन्दुवादी अहं को तुष्ट कर साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण कर चुनावी फायदे उठाना है। इनके पीछे दिए जाने वाले सारे अच्छे तर्क अब बेमानी साबित हो चुके हैं। यह ध्रुवीकरण हुआ भी पर बीजेपी की इच्छानुसार हिन्दु और मुसलमान के रुप में नहीं हुआ वरन् सेकुलर और ननसेकुलर के रूप में हुआ। क्योंकि ऐसा न होता तो आप 5 सीट पर भी न जीत पाती।इस कार्य में सीएए और धारा 370 की नाकामी बीजेपी के लिए चिंता का विषय है।


 गृहमंत्री श्री अमित शाह ने अपनी इस चिंता को अपने दो नेताओं के द्वारा दिए गये 'गोली मारो' और "हिन्दुस्तान- पाकिस्तान" के पीछे छिपाने की कोशिश की। पर ये कोई दो नेताओं की छोटी गलती नहीं बल्कि बीजेपी की एक सोची समझी रणनीति की हिस्सा थी। खुद गृहमंत्री के टुकड़े-टुकड़े गैंग और शाहीनबाग को करंट लगाने वाली बात हो या प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के "भाईचारे के खिलाफ एक प्रयोग" वाले बयान सब के सब एकदूसरे के न केवल पूरक थे बल्कि सिलसिलेवार थे।

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 अब सवाल उठता है दिल्ली की हार बीजेपी को बिहार और बंगाल में अपनी इस रणनीति को बदलने पर मजबूर कर देगी?इस संबंध में बीजेपी में दो मत हैं एक इसे फेल बतलाता है तो दूसरे मत का मानना है कि दिल्ली में ये न होता तो बीजेपी की स्थिति और खराब होती। दिल्ली के पूर्वांचल बहुल वाली सीटों पर करारी हार को देखते हुए बिहार में श्री नीतीश कुमार अपने सहयोगी बीजेपी को संयमित रखने में भले सफल हो जायें पर बंगाल चुनाव में ऐसा हो ये तो नहीं दिखता।



असल में बीजेपी की मजबूरी भी है वोट मांगे तो किस आधार पर मांगे! भारत की जीडीपी पाकिस्तान से 5.7 से भी कम होने के नाम पर ,या 45 साल की रिकॉर्ड तोड़ बेरोजगारी के नाम पर या फिर अन्य तमाम पैमाने पर ढुलकती अर्थ व्यवस्था के ही नाम पर। यही कारण है कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने कहा है वो दवाब के बावजूद सीएए और धारा 370 पर अपने निर्णय से पीछे नहीं हटेंगे।पीछे हटने में विचारधारा रोक रही है और आगे बढने में जनता। ऐसे में सारी निगाहें सुप्रीम कोर्ट पर टिकी हैं जहां सीएए और कश्मीर का मामला लम्बित है। इनसे मुक्ति की आशा जनता भी कर रही है और शायद बीजेपी भी!

Parimal

Most non -offendable sarcastic human alive! Post Graduate in Political Science. Stay tuned for Unbiased Articles on Indian Politics.

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