प्रजातांत्रिक मूल्यों को धता बताने वाले मास्टर स्ट्रोक से विपक्ष की एक और राज्य सरकार का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है और वह है मध्यप्रदेश कांग्रेस की कमलनाथ सरकार।
तरीका वही जो कर्नाटक में कुछ महीनों पहले अपनाया गया था। सरकार में शामिल कुछ विधायकों को प्रलोभित कर इस्तीफा दिला विधानसभा की संख्या कम कर बहुमत का गणित और सरकार बदल देना। फर्क इतना है उस बार दलबदलू विधायकों को बीजेपी शासित मुम्बई में कड़ी पहरेदारी में रखा गया था और इस बार बीजेपी शासित बंगलौर में! कर्नाटक के घटनाक्रम के दौरान वहां के स्पीकर श्री रमेश कुमार ने फैसला दिया था कि ऐसे विधायक विधानसभा की वर्तमान अवधि में उपचुनाव नहीं लड़ सकते। यदि सुप्रीम कोर्ट इस फैसले को रद्द नहीं करती तो शायद लोकतंत्र का दुबारा ऐसा मजाक नहीं उड़ता!
18 विधायकों के समर्थन वाले सिंधियाजी को श्री कमलनाथ की वरिष्ठता का ध्यान रख उप- मुख्यमंत्री का पद स्वीकार कर लेना चाहिए था जो उन्होंने नहीं किया। मध्यप्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का पद भी श्री सिंधिया ने नहीं स्वीकारा। इन दोनों ही अवसरों पर उन्होंने अपने बजाय अपने चहेतों को रखने का बात कही, तो क्या इसके पीछे कांग्रेस में रहकर ही श्री कमलनाथ को अपदस्थ करने की मंशा तो न थी क्योंकि वे अपनी ही सरकार की सार्वजनिक आलोचना करना शुरू कर चुके थे।
पर अनुभवी कमलनाथ ने ऐसा होने नहीं दिया और सिंधिया की दोनों ही बातें न मानी।राज्यसभा सदस्यता को लेकर बहुचर्चित असंतोष का कारण भी वास्तविक नहीं था क्योंकि कांग्रेस की दोनों ही सीट पक्की ही थीं इसके लिए 116 विधायकों का वोट चाहिए था जबकि कांग्रेस को 121 का प्रमाणिक समर्थन था। वास्तव में कांग्रेस श्री सिंधिया को हर वो चीज देने को तैयार थी जिसके वे वास्तविक हकदार थे पर महत्वाकांक्षा उससे भी बड़ी थी तो कांग्रेस कर ही क्या सकती थी?

इसी तरह विचारधारा के प्रति आकर्षण, वो भी बीजेपी में श्री सिंधिया के शामिल होने का आधार नहीं दिखता! क्योंकि दिल्ली दंगे पर अपने 26 फरवरी के ट्वीट में बीजेपी को नफरत की राजनीति बंद करने के लिए कड़ी फटकार लगाई थी! अब रह गई बात कांग्रेस के भविष्य को लेकर अविश्वास, पद की आकांक्षा और भय तो ये तीनों ही बातें श्री सिंधिया के बीजेपी में जाने का कारण हो सकती हैं!
2014 और फिर 2019 के लोकसभा में कांग्रेस की भयावह हार और केन्द्रीय नेतृत्व को ले उहापोह की स्थिति से श्री सिंधिया को पार्टी के भविष्य को लेकर आशंका वाजिब हो सकती है ! शायद अब और लम्बे संघर्ष के लिए श्री सिंधिया तैयार नहीं थे! दूसरी बात का जिक्र श्री सिंधिया ने बीजेपी में शामिल होते वक्त स्वयं कही वो कांग्रेस में रह कर जनसेवा नहीं कर पा रहे थे कांग्रेस पहले वाली ( सत्ताधारी?) नहीं रही और खबर यह है बीजेपी उन्हें केन्द्र में मंत्री बनाने जा रही है!
अन्त में "यस बैंक" घोटाले को लेकर इसके संस्थापक और सीइओ राणा कपूर के जिस फ्लैट पर ईडी ने छापा मारा उसके मालिक मकान श्री ज्योतिरादित्य सिंधिया थे ऐसे में यदि वे कांग्रेस में बने रहते तो बीजेपी सरकार वाली ईडी मौका चुकती! भुक्तभोगी सुश्री ममता बनर्जी और और श्री चन्द्रा बाबू नायडू अच्छी तरह बता सकते हैं कैसे ईडी, इनकमटैक्स और सीबीआई का उपयोग दलबदल के लिए होता है। मास्टरस्ट्रोक में इस तरह उपयोग को सही माना जाता है। कारण जो भी रहा हो श्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने निर्णय से बामुश्किल बनी अपनी साख और कांग्रेस की सरकार दोनों को चोट पहुँचायी है!
Too good
जवाब देंहटाएंSahi bat hai itna problem tha sindhiya ko congress derh sal se isi din ka wait kar raha tha itna din se dhong rach raha tha or koi reason nahi hai wo idi ker dar se bhaga hai
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