भारत में कोरोना वायरस से लड़ाई के क्रम में की गई तालाबंदी के 20 दिनों के परिणाम से ऐसा लगता है कि तालाबंदी फरवरी में ही हो जाने चाहिए थी पर हड़बड़ी में नहीं। यदि फरवरी में होता तो वायरस का संक्रमण इतना न हो पाता और हड़बड़ी में न होता तो लाखों की संख्या में अपने गांव और घर से दूर फंसे गरीब मजदूर तमाम सरकारी और गैरसरकारी प्रयासों के बावजूद भूख से परेशान न होते। तब शायद , इसे और आगे बढ़ाने की जरुरत भी नहीं पड़ती।
कोरोना वायरस ने जीवन, आजीविका, अर्थव्यवस्था एवं मानवता जिसकी प्रमुख परिभाषा है " मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है",सब पर आघात किया है। अतएव हमें इस लड़ाई में इन सब बातों का ध्यान रखना होगा।
गुजरात और दिल्ली की सरकारी आश्रय स्थलों की आगजनी की घटना हो या फिर बिहार की सरकारी कोरांटीन स्थल में प्रशासन पर हमले की घटना इसके पीछे का कारण भूख ही है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि विवेक ऐसा सदगुण है जो मनुष्य को जानवर से अलग करता है और भूख ऐसी पीड़ा है जो यह सदगुण हर लेती है।
यही कारण है कि बिहार की एक राजनीतिक पार्टी माले ने 12 अप्रैल को थाली बजाने का कार्यक्रम रखा। पहले भी थाली बजी थी स्वास्थ्यकिर्मयों के प्रोत्साहन के लिए और इस बार बजी गरीब भूखों के राशन के लिए। सौभाग्य से देश के कर्मठ किसानों ने देश में बफर स्टाक को इतना भर रखा है कोई भूख से न मरे। ऐसे में जरूरत इन भूखों को खाद्यान्न पहुँचाने भर की है इसके लिए सिर्फ भूख ही आधार होने चाहिए न कि आधार या अन्य कोई कार्ड ।
गुजरात और दिल्ली की सरकारी आश्रय स्थलों की आगजनी की घटना हो या फिर बिहार की सरकारी कोरांटीन स्थल में प्रशासन पर हमले की घटना इसके पीछे का कारण भूख ही है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि विवेक ऐसा सदगुण है जो मनुष्य को जानवर से अलग करता है और भूख ऐसी पीड़ा है जो यह सदगुण हर लेती है।
यही कारण है कि बिहार की एक राजनीतिक पार्टी माले ने 12 अप्रैल को थाली बजाने का कार्यक्रम रखा। पहले भी थाली बजी थी स्वास्थ्यकिर्मयों के प्रोत्साहन के लिए और इस बार बजी गरीब भूखों के राशन के लिए। सौभाग्य से देश के कर्मठ किसानों ने देश में बफर स्टाक को इतना भर रखा है कोई भूख से न मरे। ऐसे में जरूरत इन भूखों को खाद्यान्न पहुँचाने भर की है इसके लिए सिर्फ भूख ही आधार होने चाहिए न कि आधार या अन्य कोई कार्ड ।
एक पुरानी कहावत है कि कुत्ते की टेढ़ी पूंछ कभी सीधी नहीं होती है यही बात राजनीति पर भी लागू होती है जो तमाम विपरीत परिस्थितियों में भी अपनी हरकतों से बाज नहीं आती।अधिकांश झूठी खबरें चला कर तबलगी जमात के बहाने एक समुदाय विशेष को सफलतापूर्वक टारगेट करने के पीछे राजनीति ही तो रही है। एक और राजनीति के तहत तालाबंदी से उत्पन्न परिस्थितियों का फायदा उठाते हुए दिल्ली में सीएए विरोधी आन्दोलन के समर्थकों को साधा जा रहा है।
इसी राजनीति में यह सवाल आया कि श्री राहुल गांधी कहां हैं? जवाब आया कि जब वे कुछ कहते हैं तो सुनते नहीं हो फिर ढ़ूंढ़ते हो! यदि कोरोना को लेकर 31 जनवरी और फिर 12 फरवरी की उनकी बात सुन लेते तो आज इतना सर नहीं धुनते! राजनीति तो अपनी जगह है पर जनता तो असमंजस में है कि वैश्विक सोच रखने वाले बहुमुखी प्रतिभा के होते कोरोना जैसा वैश्विक वायरस भारत के राष्ट्रीय जीवन में कैसे घुस गया। जनता यह भी समझ नहीं पा रही है कि भारत का पूर्ण एकीकरण(?) करने वाले सूरमा के दिल्ली में रहते मुंबई में न हो सकने वाला तबलगी जमात का मरकज़(conference) दिल्ली में कैसे हो गया । सच है, सबकुछ तालाबंद हो सकता है पर राजनीति नहीं!
राजनीति को नहीं रोक सकते पर कोरोना वायरस को तो रोकना ही होगा जो तालाबंदी के 20 वें दिन 9373 लोगों को संक्रमित कर चुका है जिनमें से 334 लोग अपनी जान गवां बैठे हैं। इसकी कोई दवा नहीं है पर जो इसके इलाज में थोड़ा कारगर है "क्लोरोक्वीन "उसका सर्वाधिक उत्पादन भारत में होता है पर परममित्र अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के सविनय निवेदन(?) पर निर्यात के फैसले के बावजूद उम्मीद करते हैं भारत में इसकी कमी नहीं होगी।लेकिन इससे यह सत्य फिर स्पष्ट हुआ कि अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में केवल राष्ट्रहित ही सच्चा मित्र होता है।
21 दिनों की तालाबंदी करने के पीछे यह सोच थी एक तो इस वायरस के विस्तार की गति को नियंत्रण में रखा जायेगा और इस समय का उपयोग इनसे बड़ी लड़ाई के लिए आवश्यक स्वास्थ संबंधी तैयारी पूरा करने में कर लिया जायेगा! 20 दिनों के तालाबंदी के अनुभव ने यह बतलाया है कि कई खामियों एवं कमियों के बावजूद जनता के सहयोग और दैन्यादिन् प्रशासन के विभिन्न क्षेत्रों के लोग , चाहे वे स्वास्थकर्मी हो, या पुलिस कर्मी या बैंक कर्मी हो या बिजली कर्मी या सफाईकर्मी हो या फिर आम प्रशासन आदि सबों की तत्परता ,त्याग, साहस और कर्मठता ने अपना असर अवश्य दिखलाया है और तालाबंदी सफल रही है और कोरोना का संक्रमण नियंत्रण में रहा है।
पर खतरा अभी टला नहीं है। सामुदायिक संक्रमण वृहत रूप में भले नहीं हुआ पर छोटे रूप में और स्थानीय स्तर पर इसे होने के संकेत अवश्य दिखें हैं। ऐसे में तालाबंदी को कुछ और दिनों के लिए बढा देने में ही समझदारी है क्योंकि यह वृहत रुप अभी भी और कभी भी ले सकता है। जहां तक स्वास्थ्य संबंधी तैयारी का सवाल है वह भी अब तक पूरी न हो सकी है। चाहे टेस्टिंग किट हो, पीपीई या एन95 मास्क या फिर वेंटिलेटर इन सबों की कमी और जरुरत बरकरार है।
मास्क , दस्ताने एवं पीपीई किट का तो हम दूरंदेशिता से दूरी बरकरार रखने की हदबुध्दी में 19 मार्च तक निर्यात ही कर रहे थे। खैर तकरीबन 39 कम्पनियों को आर्डर दिए जा चुके हैं आगामी कुछ दिनों में यह कमी काफी कम हो जायेगी। जब तक ऐसा नहीं होता तब तक तालाबंदी को जारी रखना, इस दृष्टि से भी अनिवार्य है। यही कारण है कि महाराष्ट्र, उड़ीसा, पंजाब तेलांगना और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों ने अपने यहां तालाबंदी 30 अप्रैल बढ़ा दी है।
11 अप्रैल को प्रधानमंत्री के सभी मुख्यमंत्रियों के साथ वीडियो कांफ्रेसिंग में यही बात उभर कर सामने आयी है कि तालाबंदी की जरूरत अभी भी है और इसे बढ़ाना चाहिए। प्रधानमंत्री ने कहा है कि प्राथमिकता जान के साथ जहान को भी दी जायेगी।आशा है कि जान में वायरस के साथ भूख से भी बचाव को भी प्राथमिकता दी जायेगी ! जहान से तात्पर्य आर्थिक गतिविधि से है तो तालाबंदी की मर्यादा का पालन करते हुए इसमें भी कुछ राहत मिल सकती है!
प्रधानमंत्री को कोरोना संकट की इस घड़ी में भी आर्थिक महाशक्ति बनने का अवसर दिखा है पता नहीं यह बात मनोबल बढ़ाने के लिए कही गई या इसके पीछे उनकी फिर कोई अद्वितीय वैश्विक सोच !एक अनुमान है कि यदि हम तालाबंदी का पालन 15 मई तक करते हैं तो कोरोना संक्रमण 30,000 से 150000 तक रह सकता है और यह जितना कम की ओर रहेगा उतनी जल्दी हम इस वायरस को मात दे सकते हैं। ऐसे में तन की दूरी रखनी है मन की नहीं। कोरोना वायरस हाथ धोने से जायेगा मन का वायरस गोदी मीडिया से हाथ धो लेने से। क्योंकि जरुरत मीडिया के तनातनी मंत्रों को सुनने की नहीं बल्कि सनातनी परम्परा पर चलने की है!
प्रधानमंत्री को कोरोना संकट की इस घड़ी में भी आर्थिक महाशक्ति बनने का अवसर दिखा है पता नहीं यह बात मनोबल बढ़ाने के लिए कही गई या इसके पीछे उनकी फिर कोई अद्वितीय वैश्विक सोच !एक अनुमान है कि यदि हम तालाबंदी का पालन 15 मई तक करते हैं तो कोरोना संक्रमण 30,000 से 150000 तक रह सकता है और यह जितना कम की ओर रहेगा उतनी जल्दी हम इस वायरस को मात दे सकते हैं। ऐसे में तन की दूरी रखनी है मन की नहीं। कोरोना वायरस हाथ धोने से जायेगा मन का वायरस गोदी मीडिया से हाथ धो लेने से। क्योंकि जरुरत मीडिया के तनातनी मंत्रों को सुनने की नहीं बल्कि सनातनी परम्परा पर चलने की है!
Once again super
जवाब देंहटाएंNice
जवाब देंहटाएंSarcasm with sensibility at its best.
जवाब देंहटाएंExcellent
जवाब देंहटाएंVery well written 👍
जवाब देंहटाएं100 parcent sach good
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंNice...
जवाब देंहटाएंRegards
Bunty