Lockdown end begins! लॉकडाउन अंत का आरंभ!

Lockdown end begins!
The end of the lockdown begins!


      तंग आ चुके हैं कशमेकश जिन्दगी से हम,
     ठुकरा न दे इस तालाबंदी को बेदिली में हम!

लगता है कि बिगाड़ी गई इस शायरी जैसे मानसिक हालात में भारत् की आम जनता, प्रवासी मजदूर, के साथ-साथ केन्द्र सरकार भी पहुँच गई है। राष्ट्रीय तालाबंदी के बीच अचानक ही रेल मंत्रालय द्वारा देश के विभिन्न स्थानों के लिए आम लोगों के लिए 30 ट्रेन चलाने के फैसले से तो यही लगता है। इतना ही  नहीं "दो गज की दूरी रखना है जरूरी" का सोशल डिस्टेसिंग का नारा भी अब जरूरी (रेल में ) नहीं रहा यह बात भी रेल मंत्रालय के ही इन ट्रेनों के अलावा श्रमिक स्पेशल ट्रेनों को पूरी क्षमता के साथ चलाने के एक अन्य फैसले से ज्ञात हुआ है। अर्थात बीच वाले बर्थ अब खाली नहीं  रखे जायेंगे। इन फैसलों के साथ ही भारत में तालाबंदी के अंत का आरंभ हो गया है।
The end of the lockdown begins!



दरअसल 24 मार्च 2020 से ही लागू तालाबंदी  के बावजूद कोरोना संक्रमितों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि और दम तोड़ती अर्थव्यवस्था ने सरकार को यह अहसास कराया है कि  तालाबंदी जारी रखने से जितने वायरस से नहीं मरेंगे उससे कहीं अधिक भूख से न मरें।अत: अब कोरोना से डर के नहीं बल्कि साथ जीना होगा।ये सही भी है कि यदि समाधान समस्या से अधिक बड़ीऔर दुखदायी हो तो समस्या के साथ चलने में ही भलाई है। रेल के परिचालन शुरू करने के पीछे यही सोच थी और यही समझ 11 मई 2020 के प्रधानमंत्री के साथ मुख्यमंत्रियों की वीडियो बैठक में भी परिलक्षित हुई है। यद्यपि कुछ राज्यों ने तालाबंदी को बढ़ाने का आग्रह किया है पर प्रधानमंत्री सहित सब मुख्यमंत्रियों की चिंता इस बात को लेकर अधिक थी कि तालाबंदी से निकला कैसे जाये और आर्थिक गतिविधियां शुरू कैसे हों ?



The end of the lockdown begins!


दिल्ली ,कर्नाटक  और गुजरात के मुख्यमंत्रियों की सलाह थी प्रतिबंध कंटेनमेंट जोन तक रहे बाकि जगह सभी आर्थिक गतिविधियों शुरू कर देनी चाहिए। वहीं पंजाब,उड़ीसा, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री कोरोना नियंत्रण के लिए राज्य सरकारों को अधिक अधिकार दिये जाने की बात कर रहे थे। इनके विचार में रेड, आरेंज या ग्रीन जोन का बंटवारे का अधिकार स्थानीय वा राज्य सरकार को देना अधिक कारगर होगा। जबकि कर्नाटक का कहना था जोन के बंटवारे की नीति ही खत्म कर देना चाहिये।

The end of the lockdown begins!


तेलांगना और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री को आम आदमी हेतु रेल चलाना अभी उचित नहीं लगा। वहीं बिहार के मुख्यमंत्री का कहना था अभी प्रवासी बिहारी और मजदूर आ रहे हैं इसलिए कुछ दिनों तक तालाबंदी रहने देना चाहिए। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री सेना की मदद की अनुमति चाह रहे थे ताकि उनकी पुलिसकर्मी को थोड़ा आराम मिल सके। इसके अलावा अधिकतर राज्यों ने आर्थिक पैकेज की मांग की वहीं पंजाब के मुख्यमंत्री ने बकाये जीएसटी का तुरन्त भुगतान को आवश्यक बतलाया। प्रधानमंत्री के साथ मुख्यमंत्रियों  बैठक से एक बात तो स्पष्ट हो गई है कि तालाबंदी यदि खत्म नहीं भी हुई तो इसका स्वरूप एक अर्ध या आशिंक तालाबंदी का ही होगा! आज के प्रधानमंत्री के राष्ट्रीय संबोंधन से भी इसी बात की पुष्टि होती दिख रही है।

The end of the lockdown begins!


इस बैठक में एक अच्छी बात ये हुई कि किसी राज्य ने प्रवासी मजदूरों की घर वापसी का विरोध नहीं किया पर बुरी बात ये रही की गरीब मजदूरों की असहाय अवस्था में पैदल सैकड़ों मील की कष्टप्रद यात्रा के समाधान की चर्चा तक नहीं हुई। प्रधानमंत्री ने इसे मनुष्य के स्वभाव और मन से जोड़ दिया जिसे तर्क संगत नहीं कहा जा सकता। कोई मन से ऐसी यात्रा नहीं करता फिर जिन्होंने ये यात्रा नहीं क्या वे मनुष्य नहीं हैं , मन नहीं रखते ? इस यात्रा का कारण मन नहीं ,अन्न और धन है जो कि इन गरीबों के पास नहीं है। सड़क पर जान देना और बच्चे को जन्म देना ,को मन नहीं मजबूरी कहते हैं और ये मजबूरी हड़बड़ी की तालाबंदी ने पैदा की है, यह हड़बड़ाहट जिसने दिखाई  कम से कम उसे तो यह दर्द समझना चाहिए।



Parimal

Most non -offendable sarcastic human alive! Post Graduate in Political Science. Stay tuned for Unbiased Articles on Indian Politics.

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