Indian Economy - Inadequate Relief.
यदि बात राजनैतिक भाषण कला की हो तो इस समय भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी भारत में अपना कोई सानी नहीं रखते । उनके भाषण, वाक्य चातुर्य, संवाद कौशल और मेनरिजम के कारण अत्यंत प्रभावशाली बन जाते हैं। जनता के मनोविज्ञान पर उनकी जबरदस्त पकड़ है तभी तो तुकबंदी, स्लोगन और तरह-तरह के मंत्रों के निर्माण के अलावा कभी-कभी जनता से वो काम भी करवा लेते हैं जो आमतौर पर विवेकपूर्ण नहीं लगते। भयभीत जनता से थाली पीटवाना याद है न! ऐसे ही जब भी कोई गंभीर प्रश्न या नीति की बात होती जो आम जनता से सीधा सरोकार रखती हो और उनकी परेशानी बढ़ानेवाली हो तो उस समय प्रधानमंत्री जी का यह पराक्रम और बढ़ जाता है ,चेहरे पर अजीब-सी चमक आ जाती है बाडी लैंग्वेज गजब ढ़ाने लगता है । यहां उदाहरण देने की जरूरत नहीं।
श्री मोदी भाषणों में तथ्यों को परिमार्जित (refined) कर इस चतुराई से रखते हैं कि छोटी बात भी बड़ी दिखने लगती है और मनोनुकूल न हो तो बड़ी से बड़ी बात दिखती तक नहीं है । कोरोना संकट को लेकर 12 मई 2020 के राष्ट्रीय संबोधन और उसमें "20 लाख करोड़ की राहत पैकेज" की घोषणा और इसे देश की जीडीपी का 10% बतला कर प्रधानमंत्री ने अपने इस कौशल का एक बार फिर सफल प्रदर्शन किया है! जिस सफाई से उन्होंने फेल हो चुके "मेक इन इंडिया" का नया नामकरण 'आत्मनिर्भर भारत' कर विकास की दौड़ में पुनः शामिल कर दिया वो कम प्रशंसनीय नहीं है!
श्री मोदी भाषणों में तथ्यों को परिमार्जित (refined) कर इस चतुराई से रखते हैं कि छोटी बात भी बड़ी दिखने लगती है और मनोनुकूल न हो तो बड़ी से बड़ी बात दिखती तक नहीं है । कोरोना संकट को लेकर 12 मई 2020 के राष्ट्रीय संबोधन और उसमें "20 लाख करोड़ की राहत पैकेज" की घोषणा और इसे देश की जीडीपी का 10% बतला कर प्रधानमंत्री ने अपने इस कौशल का एक बार फिर सफल प्रदर्शन किया है! जिस सफाई से उन्होंने फेल हो चुके "मेक इन इंडिया" का नया नामकरण 'आत्मनिर्भर भारत' कर विकास की दौड़ में पुनः शामिल कर दिया वो कम प्रशंसनीय नहीं है!
अपने भाषण में उन्होंने बड़ी खूबसूरती से एक तरफ आरबीआई के कुछ पुराने निर्णयों को इस पैकेज में शामिल कर दिया वहीं इस संकट से सर्वाधिक आहत और सरकार की घनघोर नाकामी का सबब बने प्रवासी मजदूरों की तकलीफों का जिक्र तक नहीं किया! इतना ही नहीं इस भारी भरकम पैकेज की गरिमा को विस्तार देने के लिए इसके विशद विवरण का भार वित्त मंत्री पर छोड़ दिया जो अगले पाँच दिनों तक नित प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इस कार्य को बखूबी अंजाम देती रहीं ताकि आम जनता को लगे भारी भरकम राहत मिलने जा रहा है! पर काश! यदि देश की अर्थव्यवस्था भाषणों से चलती तो भारत पिछले 6 सालों में कब का आर्थिक महाशक्ति बन चुका होता और दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी के दफ्तर में विश्व के बड़े से बड़े अर्थशास्त्री दीक्षा ले रहे होते!
कल्पना को छोड़ वास्तविकता के धरातल पर लौटें तो यह पैकेज भले ही कोरोना संकट से राहत के नाम पर आया हो पर अच्छी-खासी भारतीय अर्थव्यवस्था इस संकट से काफी पहले ही बेसिरपैर की नोटबंदी और पल-पल बदलती जीएसटी से भयानक रुप से आहत हो चुकी थी! क्रयशक्ति कम हो गई थी और मांग घट गये थे! अनेक लघु मध्यम उद्योग या तो बन्द हो गये या कर्ज में फंस चुके थे! इतना ही नहीं केन्द्रीय मंत्री श्री नितिन गडकरी की माने तो 5 लाख करोड़ रुपये की इन उद्योगों की रकम अभी तक केन्द्र एवं राज्य सरकार, उनके सार्वजनिक उपक्रम एवं प्राईवेट सेक्टर के बड़े उद्योगों ने डकार रखे हैं, लौटाये नहीं है! उल्लेखनीय है कि 90% मजदूरों को मजदूरी यही सेक्टर देता है देश के जीडीपी में इसका योगदान तकरीबन 45% तक होता है!
अधिकांश बड़े उद्योगों की हालत भी खराब थी! आरबीआई के 2018-19 रिपोर्ट के अनुसार 8 कोर सेक्टर में वृद्धि दर 7. 3% से घटकर 2.1% हो गई और इसी प्रकार अकेले आटो सेक्टर में मांग 30% तक घट गई थी! मजबूरी में उत्पादन और मजदूरों की संख्या घटाना पड़ गया था! फलस्वरूप बेरोजगारी दर तालाबंदी से पहले ही 6.7 % पर पहुँच कर कई सालों का रिकॉर्ड तोड़ चुकी थी! देश की 7-8% रहने वाली जीडीपी भी घटते-घटते 4.6% पर आ गई थी और IMF द्वारा इसका कारण घरेलू आर्थिक नीति बतला कर अन्तर्राष्ट्रीय संकट का बहाना भी छीना जा चुका था! तात्पर्य यह है भारत की अर्थव्यवस्था पहले ही बदतर स्थिति में थी और कोरोना संकट ने इसे बदतरीन बना दिया है।
प्रधानमंत्री द्वारा घोषित 20 लाख करोड़ रुपए की "कोरोना राहत पैकेज" नहीं वस्तुतः पूर्व में ही हो चुकी "आहत अर्थव्यवस्था पैकेज" है वो भी अधिकांश बैंक लोन के रूप में !तभी तो इसमें दी गई कई राहतों का उल्लेख आरबीआई की घोषणाओं एवं इस साल के बजट में पहले ही हो चुके थे! यह सही है जिस किसी देश में कोरोना संकट में 10% जीडीपी राहत देने की बातें कहीं गई हैं वहां भी वास्तविक राहत 3.5 से 4% जीडीपी ही होती हैं और पर वो पैसे के रूप में होती हैं! पर यहां तो इस पैकेज में कोरोना संकट के नाम पर निकलने वाली वास्तविक राशि तकरीबन 1.70 लाख करोड़ ही है जो कि देश की जीडीपी के 1% से भी थोड़ी कम ही है और उसमें भी अधिकांश बैंक लोन एवं अन्न राहत के रुप में दी गई है पैसे के रूप में बहुत थोड़ी ! यह कोई बड़ी राहत नहीं बल्कि "ऊंट के मुंह में जीरा" समान है।
इस पैकेज में कुछ ऐसी बातों को शामिल किया गया है जिसका कोरोना राहत से कोई लेना-देना नहीं है । अन्तरिक्ष टूरिज्म की बात ऐसी ही बात है जो इस तालाबंदी के समय हास्यास्पद लगती है। इसी प्रकार आत्मनिर्भर भारत की बातों के बीच FDI जमा की जाने वाली राशि को 49% से बढ़ा कर 74% करना वो भी विपक्ष की रायशुमारी के बिना उचित नहीं है और इसके लिये डिफेंस सेक्टर को भी खोल देना भविष्य में और मुसीबत खड़ी कर सकती है । वैसे अभी वैश्विक संकट के समय FDI से अधिक उम्मीद रखना भी सही नहीं है। क्योंकि "स्वतंत्र कांग्रेसनल रिसर्च सेंटर" ने COVID के वैश्विक आर्थिक प्रभावों पर अपनी नवीनतम रिपोर्ट में कहा है विदेशी निवेशकों ने कोरोना संकट के चलते भारत से 16 बिलियन अमेरिकी डॉलर वापस ले लिये हैं ।
इस पैकेज में कुछ ऐसी बातों को शामिल किया गया है जिसका कोरोना राहत से कोई लेना-देना नहीं है । अन्तरिक्ष टूरिज्म की बात ऐसी ही बात है जो इस तालाबंदी के समय हास्यास्पद लगती है। इसी प्रकार आत्मनिर्भर भारत की बातों के बीच FDI जमा की जाने वाली राशि को 49% से बढ़ा कर 74% करना वो भी विपक्ष की रायशुमारी के बिना उचित नहीं है और इसके लिये डिफेंस सेक्टर को भी खोल देना भविष्य में और मुसीबत खड़ी कर सकती है । वैसे अभी वैश्विक संकट के समय FDI से अधिक उम्मीद रखना भी सही नहीं है। क्योंकि "स्वतंत्र कांग्रेसनल रिसर्च सेंटर" ने COVID के वैश्विक आर्थिक प्रभावों पर अपनी नवीनतम रिपोर्ट में कहा है विदेशी निवेशकों ने कोरोना संकट के चलते भारत से 16 बिलियन अमेरिकी डॉलर वापस ले लिये हैं ।
ऐसा नहीं है कि इस पैकेज में अच्छी बातें नहीं हैं ।यह पैकेज 4.6 की जीडीपी एवं 6.7 की बेकारी वाली अर्थ व्यवस्था के लिए ठीक हो भी सकती है पर कोरोना संकट से उत्पन्न संकट जो कि जीरो या निगेटिव जीडीपी और 24% बेकारी के रूप में है के लिए अपर्याप्त है! उदाहरण के लिए एमएसएमई सेक्टर के लिये 3 लाख करोड़ तक कोलाटरेल फ्री बैंक लोन की व्यवस्था अच्छी बात है पर भी वे लोन ले क्यों जब उनके उत्पाद बिक ही ना रहे हों? बिकेगें तब खरीदने वाले के पास पैसे हों ! इसी प्रकार मनरेगा तहत दी जाने राशि में बढोत्तरी, एक देश एक राशन कार्ड, आदि स्वागतयोग्य कदम हैं पर काफी नहीं है! इन गरीब, बेरोजगार, मजदूर एवं किसानों को कुछ महीनों के लिए मिनिमम वेज की राशि देनी चाहिए ताकि इन्हें राहत भी मिले और अर्थ व्यवस्था में मांग का सृजन हो वो पटरी पर आ सके!
ये असंभव भी नहीं है! ऐसा अधिक नोट छाप कर और राजकोषीय घाटा बढ़ा कर किया जा सकता है! अनेक देश ऐसा कर रहे हैं और जब तालाबंदी का अनुसरण हो सकता है तो इस रास्ते का भी अनुसरण क्यों नहीं? रैंकिंग की चिंता व्यर्थ है! अर्थ व्यवस्था सुधरने पर इसकी भरपाई हो सकती है! प्रधानमंत्री ने पुनरोत्थान (revival) की बात की है पर समस्या अति जीवन( survival) की है! श्री अमर सिंह जी कहां हैं जो गा कर बतलाते "गरीबों की सुनों वो तुम्हारी सुनेगा तुम एक पैसा दोगे तो दस लाख देगा!" खैर जाने दीजिये आप ही नटवरलाल फिल्म का यह गाना गुनगुना लीजिए कि" हे ऊंची-ऊंची बातों से किसी का पेट भरता नहीं " घबरायें नहीं जब तक सरकार न सुने दुसरी लाईन भी गाते रहिये "राम का भरोसा हो जिसे वो कभी भूखा मरता नहीं!" तब तक आप भी राम भरोसे और सरकार भी!
Good job...
जवाब देंहटाएं.Rahat package Ki asliyat pata chalk...haathi Ke daant khane Ke or...
Bat sahi hai ram ka hi ab bharosha hai kendra sarkar bilkul fail hai
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