USCIRF Report
यूएससीआइआरएफ (USCIRF) रिपोर्ट 2020 के अनुसार भारत अब धार्मिक स्वतंत्रता के मामले में "विशेष चिंता वाले देश" जिसमें उत्तरी कोरिया, पाकिस्तान जैसे राष्ट्र आते हैं उसी टायर 1 श्रेणी में आ चुका है!
हम भारतीयों को इस बात का गर्व है कि हम सनातनी परम्परा के लोग हैं जहां सदियों से सभी तरह के आचार-विचार का स्वागत होता रहा है और आपस में मिलजुल कर रहने की संस्कृति रही है। हमारा देश भारत, विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और हमारा संविधान हमें धर्मनिरपेक्ष घोषित कर हमें आधुनिक बनाता है। नास्तिकता को भी स्थान देने वाले हमारे दर्शन इतने समृद्ध हैं कि दुनिया माने चाहे न माने हम खुद को विश्व का आध्यात्मिक गुरु समझते हैं!ऐसे में अन्तर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता से संबंधित अमेरिका का आयोग (USCIRF) जब यह कहता है कि भारत में भी धर्म के आधार पर उत्पीड़न होता है और इस मामले में वह 2020 की दुनिया के सबसे बदनाम और घटिया "विशेष चिन्ता वाले देशों" की टायर 1 श्रेणी में आता है तो यह भला हमें क्यों स्वीकार होगा?
भारत सरकार ने भी इस रिपोर्ट को पक्षपाती बता कर खारिज कर दिया है और यह सही भी है। अमेरिका कौन होता है हमें प्रमाण पत्र देने वाला ।अव्वल तो यह आयोग दुनिया भर में धार्मिक स्वतंत्रता की जांच करता है पर खुद अमेरिका की जांच नहीं करता और तो और वहां के हर बड़े पदों पर शपथ संविधान की बजाय धर्म (इसाई) के नाम पर ली जाती है। ये रिपोर्ट सच्चे हो ना हो अच्छे तो कतई नहीं हैं। फिर भी इस बात को जान लेने में कोई हर्ज नहीं होना चाहिए अमेरिका जिससे कि हाल के वर्षों में हमारे संबंध और प्रगाढ़ ही हुए हैं उसका ये कौन सा आयोग है और इसने क्यों हमारे खिलाफ ऐसी रिपोर्ट दी है?
अन्तर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग (USCIRF) 1998 से कार्यरत अमेरिका का एक स्वतंत्र आयोग है जो अमेरिकी कांग्रेस द्वारा विदेशों में धार्मिक स्वतंत्रता पर खतरों की निगरानी, विश्लेषण और रिपोर्ट करने के लिए स्थापित की गई है। यह आयोग राष्ट्रपति, विदेश सचिव और कांग्रेस को विदेश नीति की सिफारिशें देता है, जिसका उद्देश्य धार्मिक उत्पीड़न को रोकना और धर्म और विश्वास की स्वतंत्रता को बढ़ावा देना है। अमेरिका की सरकार इससे प्राप्त रिपोर्ट के आधार पर सम्बंधित देशों के खिलाफ कार्रवाई भी करती है। 2020 के अपने रिपोर्ट में यह आयोग कहता है 2019 से भारत में धार्मिक स्वतंत्रता मामले में गिरावट और तेज हो गई है एवं धार्मिक अल्पसंख्यकों पर हमले बढ़ गए हैं। मई 2019 में श्री नरेंद्र मोदी की पूर्ण बहुमत से सरकार में आने के बाद ऐसी राष्ट्रीय नीतियां लाई गई हैं जो अल्पसंख्यकों विशेषतया मुस्लिम की धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करती हैं। असम की एनआरसी, सीएए कानून और पूरे देश की एनआरसी और एनपीआर का जिक्र इसी क्रम में किया गया है।
इसका आगे कहना है कि भारत में गौहत्या और गौ मांस के नाम पर माॅब लिंचिंग की घटना बढ़ गई हैं जिसके शिकार दलित और मुसलमान हुए हैं। इन घटनाओं में दोषियों को सजा भी नहीं मिल पा रही है। बीजेपी नेताओं द्वारा मुसलमानों के खिलाफ द्वेषपूर्ण भाषण बढ़ गए हैं भारत के गृहमंत्री श्री अमित शाह द्वारा मुसलमानों को "दीमक" कहना और उन्हें समाप्त करने की बात का भी उल्लेख इस रिपोर्ट में किया गया है। सीएए विरोधी आन्दोलन के विरुद्ध यूपी पुलिस की गोली से मरने वाले 25 मुस्लिमों के अलावा मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ द्वारा "बदला लेने " और "बिरयानी नहीं गोली" की बात को भी इस रिपोर्ट में शामिल किया गया है। यह आयोग कशमीर से धारा 370 को हटाने और फिर वहां के नेता और लोगों को बंद कर देने को धार्मिक स्वतंत्रता पर बड़ा हमला मानता है। रिपोर्ट में दिल्ली दंगे का जिक्र करते हुए कहा गया है कि यह मुसलमानों को लक्ष्य करके किया गया था और पुलिस और गृहमंत्रालय का रवैया पक्षपाती रहा था।
अन्तर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता के अमेरिकी आयोग की रिपोर्ट को हम भले ही खारिज कर दें क्योंकि वह हमारी महान परम्परा, सांस्कृतिक विरासत एवं धर्मनिरपेक्षता की नीति पर आघात करता है। यह भी संभव है कि अमेरिका से हमारी मित्रता कोई दंडात्मक कारवाई न होने दे पर इस रिपोर्ट से अन्तर्राष्ट्रीय जगत में भारत की जो छवि है उस पर दाग जरूर लगे हैं। इस रिपोर्ट में उठाये गये प्रसंगों को देखें तो ऐसा लगता भी है कि हमसे कुछ गलतियां तो हो रही हैं।सीएए,एनआरसी, धारा 370,कश्मीर में लगी पाबंदियां को लेकर देश से लेकर विदेशों में भी तीखी प्रतिक्रियायें हुई हैं। बाबरी मस्जिद के फैसले हो या कश्मीर के 370 व मानवाधिकार के मामले या फिर सीएए हो या फिर दिल्ली दंगे का सवाल हो उन पर हमारी अदालतों का रूख भी अजीब सा रहा है! तभी तो पूर्व जस्टिस लोकुर ने साफ-साफ कह दिया कि सुप्रीम कोर्ट अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी नहीं निभा रहा है उसे आत्ममंथन करना चाहिए।
इन सब पर हमारी मुख्य मीडिया पर चलने वाले हिन्दु-मुस्लिम डिबेटों ,सोशल मीडिया और उनपर चलने वाले वीडियो ने भी स्थिति बिगाड़ रखा है! अभी भी देखें ,कोरोना संकट में भी तबलगी जमात के बहाने सम्पूर्ण मुस्लिम समुदाय को दोषी ठहराया जाता रहा और सरकार खामोश रहीं। इन सब बातों से पूरी दुनिया में भारत को लेकर गलत संदेश जा रहा है। मुस्लिम देशों में तो आक्रोश उत्पन्न होता जा रहा है और वहां रह रहे भारतीयों में जिनमें अधिक संख्या हिन्दुओ की ही है उन्हें अपनी रोजी-रोटी की फिक्र होने लगी है और कुछ की नौकरियां जा भी चुकी हैं। आज प्रधानमंत्री देश में पूंजी निवेश के लिए परेशान हैं पर ऐसे देश में निवेश भला कोई क्यों करे जहां हिन्दु-मुस्लिम के व्यर्थ के झमेले खड़े किये जाते हों। ऐसे में अपनी नीतियों और आचरण को लेकर एक और आत्ममंथन की सर्वाधिक जरूरत बीजेपी पार्टी और सरकार दोनों को ही है!
यूएससीआइआरएफ (USCIRF) रिपोर्ट 2020 के अनुसार भारत अब धार्मिक स्वतंत्रता के मामले में "विशेष चिंता वाले देश" जिसमें उत्तरी कोरिया, पाकिस्तान जैसे राष्ट्र आते हैं उसी टायर 1 श्रेणी में आ चुका है!
हम भारतीयों को इस बात का गर्व है कि हम सनातनी परम्परा के लोग हैं जहां सदियों से सभी तरह के आचार-विचार का स्वागत होता रहा है और आपस में मिलजुल कर रहने की संस्कृति रही है। हमारा देश भारत, विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और हमारा संविधान हमें धर्मनिरपेक्ष घोषित कर हमें आधुनिक बनाता है। नास्तिकता को भी स्थान देने वाले हमारे दर्शन इतने समृद्ध हैं कि दुनिया माने चाहे न माने हम खुद को विश्व का आध्यात्मिक गुरु समझते हैं!ऐसे में अन्तर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता से संबंधित अमेरिका का आयोग (USCIRF) जब यह कहता है कि भारत में भी धर्म के आधार पर उत्पीड़न होता है और इस मामले में वह 2020 की दुनिया के सबसे बदनाम और घटिया "विशेष चिन्ता वाले देशों" की टायर 1 श्रेणी में आता है तो यह भला हमें क्यों स्वीकार होगा?
भारत सरकार ने भी इस रिपोर्ट को पक्षपाती बता कर खारिज कर दिया है और यह सही भी है। अमेरिका कौन होता है हमें प्रमाण पत्र देने वाला ।अव्वल तो यह आयोग दुनिया भर में धार्मिक स्वतंत्रता की जांच करता है पर खुद अमेरिका की जांच नहीं करता और तो और वहां के हर बड़े पदों पर शपथ संविधान की बजाय धर्म (इसाई) के नाम पर ली जाती है। ये रिपोर्ट सच्चे हो ना हो अच्छे तो कतई नहीं हैं। फिर भी इस बात को जान लेने में कोई हर्ज नहीं होना चाहिए अमेरिका जिससे कि हाल के वर्षों में हमारे संबंध और प्रगाढ़ ही हुए हैं उसका ये कौन सा आयोग है और इसने क्यों हमारे खिलाफ ऐसी रिपोर्ट दी है?
अन्तर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग (USCIRF) 1998 से कार्यरत अमेरिका का एक स्वतंत्र आयोग है जो अमेरिकी कांग्रेस द्वारा विदेशों में धार्मिक स्वतंत्रता पर खतरों की निगरानी, विश्लेषण और रिपोर्ट करने के लिए स्थापित की गई है। यह आयोग राष्ट्रपति, विदेश सचिव और कांग्रेस को विदेश नीति की सिफारिशें देता है, जिसका उद्देश्य धार्मिक उत्पीड़न को रोकना और धर्म और विश्वास की स्वतंत्रता को बढ़ावा देना है। अमेरिका की सरकार इससे प्राप्त रिपोर्ट के आधार पर सम्बंधित देशों के खिलाफ कार्रवाई भी करती है। 2020 के अपने रिपोर्ट में यह आयोग कहता है 2019 से भारत में धार्मिक स्वतंत्रता मामले में गिरावट और तेज हो गई है एवं धार्मिक अल्पसंख्यकों पर हमले बढ़ गए हैं। मई 2019 में श्री नरेंद्र मोदी की पूर्ण बहुमत से सरकार में आने के बाद ऐसी राष्ट्रीय नीतियां लाई गई हैं जो अल्पसंख्यकों विशेषतया मुस्लिम की धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करती हैं। असम की एनआरसी, सीएए कानून और पूरे देश की एनआरसी और एनपीआर का जिक्र इसी क्रम में किया गया है।
इसका आगे कहना है कि भारत में गौहत्या और गौ मांस के नाम पर माॅब लिंचिंग की घटना बढ़ गई हैं जिसके शिकार दलित और मुसलमान हुए हैं। इन घटनाओं में दोषियों को सजा भी नहीं मिल पा रही है। बीजेपी नेताओं द्वारा मुसलमानों के खिलाफ द्वेषपूर्ण भाषण बढ़ गए हैं भारत के गृहमंत्री श्री अमित शाह द्वारा मुसलमानों को "दीमक" कहना और उन्हें समाप्त करने की बात का भी उल्लेख इस रिपोर्ट में किया गया है। सीएए विरोधी आन्दोलन के विरुद्ध यूपी पुलिस की गोली से मरने वाले 25 मुस्लिमों के अलावा मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ द्वारा "बदला लेने " और "बिरयानी नहीं गोली" की बात को भी इस रिपोर्ट में शामिल किया गया है। यह आयोग कशमीर से धारा 370 को हटाने और फिर वहां के नेता और लोगों को बंद कर देने को धार्मिक स्वतंत्रता पर बड़ा हमला मानता है। रिपोर्ट में दिल्ली दंगे का जिक्र करते हुए कहा गया है कि यह मुसलमानों को लक्ष्य करके किया गया था और पुलिस और गृहमंत्रालय का रवैया पक्षपाती रहा था।
अन्तर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता के अमेरिकी आयोग की रिपोर्ट को हम भले ही खारिज कर दें क्योंकि वह हमारी महान परम्परा, सांस्कृतिक विरासत एवं धर्मनिरपेक्षता की नीति पर आघात करता है। यह भी संभव है कि अमेरिका से हमारी मित्रता कोई दंडात्मक कारवाई न होने दे पर इस रिपोर्ट से अन्तर्राष्ट्रीय जगत में भारत की जो छवि है उस पर दाग जरूर लगे हैं। इस रिपोर्ट में उठाये गये प्रसंगों को देखें तो ऐसा लगता भी है कि हमसे कुछ गलतियां तो हो रही हैं।सीएए,एनआरसी, धारा 370,कश्मीर में लगी पाबंदियां को लेकर देश से लेकर विदेशों में भी तीखी प्रतिक्रियायें हुई हैं। बाबरी मस्जिद के फैसले हो या कश्मीर के 370 व मानवाधिकार के मामले या फिर सीएए हो या फिर दिल्ली दंगे का सवाल हो उन पर हमारी अदालतों का रूख भी अजीब सा रहा है! तभी तो पूर्व जस्टिस लोकुर ने साफ-साफ कह दिया कि सुप्रीम कोर्ट अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी नहीं निभा रहा है उसे आत्ममंथन करना चाहिए।
इन सब पर हमारी मुख्य मीडिया पर चलने वाले हिन्दु-मुस्लिम डिबेटों ,सोशल मीडिया और उनपर चलने वाले वीडियो ने भी स्थिति बिगाड़ रखा है! अभी भी देखें ,कोरोना संकट में भी तबलगी जमात के बहाने सम्पूर्ण मुस्लिम समुदाय को दोषी ठहराया जाता रहा और सरकार खामोश रहीं। इन सब बातों से पूरी दुनिया में भारत को लेकर गलत संदेश जा रहा है। मुस्लिम देशों में तो आक्रोश उत्पन्न होता जा रहा है और वहां रह रहे भारतीयों में जिनमें अधिक संख्या हिन्दुओ की ही है उन्हें अपनी रोजी-रोटी की फिक्र होने लगी है और कुछ की नौकरियां जा भी चुकी हैं। आज प्रधानमंत्री देश में पूंजी निवेश के लिए परेशान हैं पर ऐसे देश में निवेश भला कोई क्यों करे जहां हिन्दु-मुस्लिम के व्यर्थ के झमेले खड़े किये जाते हों। ऐसे में अपनी नीतियों और आचरण को लेकर एक और आत्ममंथन की सर्वाधिक जरूरत बीजेपी पार्टी और सरकार दोनों को ही है!
कटु सत्य ।
जवाब देंहटाएंApane sahi kaha hai
जवाब देंहटाएंYe log desh ka chavi kharab kar diya
Well done....satik likha hai hame apne gireban me jhakne Ki zaroorat hai
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