Lockdown defeated in India!
आखिरकार भारत में 25 मार्च 2020 से जारी देशव्यापी लाॅकडाऊन का सिलसिला 31 मई 2020 को चौथे चरण की समाप्ति के साथ समाप्त हुआ। कुछ राज्यों में यह नाकाबंदी के रुप में जारी है तो बाकी राज्यों में यह कंटेनमेनमेंट जोन की घेराबंदी तक सीमित रह गया है। लाॅकडाऊन की समाप्ति की इस घोषणा से महाभारत की तर्ज पर 21 दिनों में युध्द जीत लेने की श्री मोदी आशा 67 दिनों में धाराशायी हो गई है। न ही थाली बजाना काम आया और न ही "सही समय पर सही कदम" का असमय गाल बजाना! संक्रमण के मामलें में इटली को पीछे छोड़ 2 लाख 37 हजार के आंकड़ों के साथ भारत छठे नम्बर पर आ चुका है।
यह दु:खद पर सत्य है कि भारत में लाॅकडाऊन फेल हो गया है।
कृमि वैज्ञानिक, सार्वजनिक स्वास्थ्य चिकित्सक और महामारी निवारक व सामाजिक चिकित्सा के विशेषज्ञ के सभी संघों ने एक संयुक्त बयान जारी कर स्पष्ट कर दिया है कि भारत में कोरोना का सामुदायिक संक्रमण स्थापित हो चुका है। भले ही सरकार ऐसा अभी भी नहीं मानती । लाॅकडाऊन द्वारा लोगों की जान बचाने के तरह-तरह आंकड़े के दावे खोखले हैं। जान या तो कुदरत ने बचाये हैं या डाक्टरों की मेहनत ने लाॅकडाऊन ने नहीं। नि:स्सन्देह लाॅकडाऊन भारत में हार गया है। अब मास्क पहनना और सामाजिक दूरी जैसे नियमों के पालन की बात की जा रही है पर ये तो बिना लाॅकडाऊन के भी किये जा सकते थे?
पहले देरी और फिर हड़बड़ाहट ने लाॅकडाऊन से सर्वाधिक पीड़ित और अमानवीय स्थिति में फंसे विभिन्न राज्यों के प्रवासी मजदूरों के रूप में कोरोना को आसान शिकार हासिल करा दिये और अब वे ही देश भर में कोरोना के संवाहक बन चुके हैं और लाॅकडाऊन की हार के सबब भी। 30 जनवरी 2020 को WHO द्वारा कोरोना को महामारी घोषित कर देने के बावजूद 24 मार्च 2020 तक घरेलू राजनीति को ही तरजीह दिया जाना और एयरपोर्ट पर देर से शुरू हुई जांच की सतही व्यवस्था द्वारा विदेश से वायरस को आने का पर्याप्त समय देना जबकि प्रवासी मजदूरों को घर जाने का समय न देना को सही समय पर सही कदम नहीं कहा जा सकता।
इसमें कोई सन्देह नहीं है कि कोरोना संकट के आरंभ में सबसे लोकप्रिय नीति लाॅकडाऊन ही थी और कई देशों ने इसे अपनाया भी कमोबेश इसके द्वारा कोरोना को रोकने में सफल भी हुये। पर भारत में यह नीति चारों खाने चित्त हो गई। इसका कारण देरी और हड़बड़ाहट के अलावे मेडिकल विशेषज्ञों के बजाय सामान्य नौकरशाही पर निर्भरता और तैयारी का अभाव भी रहा है।
प्रधानमंत्री ने भले ही बोल दिया कि हम कोरोना से निपटने की तैयारी 16 जनवरी 2020 से कर रहे थे पर वास्तविकता ये है कि एक तरफ कोरोना का संक्रमण 20 देशों में फैल चुकने के बाद भी भारतीय एयरपोर्टों पर 30 जनवरी 2020 तक सिर्फ चीन एवं हांगकांग से आने वाले पैसेन्जर की स्क्रीनिंग हो रही थी तो दूसरी तरफ पीपीई किट और मास्क के निर्माण के पहले आदेश वे भी सिर्फ 5 कम्पनियों को 19 मार्च 2020 को दिये गए।बहुतायत कम्पनियों को ये आदेश देने में 8 अप्रैल 2020 तक का वक्त लग गया। इसी तरह की देरी कोरोना टेस्टिंग किट में भी की गई। परिणाम यह हुआ कि लाॅकडाऊन की पूरी अवधि लड़ाई की बजाय तैयारी में ही लग गई। यहां कह सकते हैं कि नौ मन तेल भी नहीं हुआ और राधा नाच भी गई!
ऐसे हालात में बेहतर ये होता कि शुरुआत से ही लाॅकडाऊन के बजाय सिर्फ टेस्टिंग एवं कोरांटीन को अपनाया जाता जैसे अब अपनाया जा रहा है तो संक्रमण भी कम होता, प्रवासी मजदूरों के रुप में मानवीय त्रासदी भी न होती और न ही भारत की पहले से लड़खड़ाई अर्थ व्यवस्था धाराशायी होने के कगार पर पहुंचती। खैर अब सीधी लड़ाई कोरोना से है सरकार ने हाथ खड़े कर दिये हैं अब जनता को खुद के भरोसे कोरोना से भी लड़ना है और आत्मनिर्भर भी बनना है। ध्यान रखना है कि जिस प्रकार राष्ट्रवाद का मतलब सिर्फ पाकिस्तान विरोध नहीं होता वैसे ही आत्मनिर्भर भारत का मतलब सिर्फ चीन विरोध नहीं होता। चीनी मोबाइल और एप्प हटाने से काम नहीं चलने वाला सारे मोबाइल हटाने होंगे क्योंकि अधिकांश मोबाइल के कुछ कम्पोनेंट चाहे अमेरिकन हो या कोरियन या जापानी हो या भारतीय ,चीन में बनते हैं! पर यदि इससे 56 ईंच की छाती रखने वाले चौकीदार के रहते लद्दाख में चीन के हाथों कुछ खोने का गम गलत होता है तो ठीक है!
Very well written.....situation ka sahi aanklan
जवाब देंहटाएंNicely quoted...
जवाब देंहटाएंRegards
Bunty
100% Sachi bat apane likha hai
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जवाब देंहटाएंBilkul sahi hai aapki baat....
ab bhagwan bharose hain hum sab bhartiya....pradhanmantri ji to ab dikhte bhi nhi...
Bharat me lockdown Puri tarah safal rha hai.central govt.pure lagan se kaam Kar rhi hai.agar yahi koi dusri sarkar hoti to abhi Ghar Ghar me korona hota. Bhart ka population jahiliyat garibi nuks nikalne ki purani parampara so called secular Rahul Priyanka ndtv etc ke hote hue bhi Jo kamyabi mili hai woshandar hai
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