India and China - the damage is done!भारतऔर चीन- नुक्सान तो हो चुका!

India and China-the damage is done!
भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के भाषणीय प्रतिभा से हर भारतीय तो परिचित था ही अब उनकी यह प्रतिभा विदेश में भी वाह-वाही लूट रही है। तभी तो 15 जून को लद्दाख की गलवान घाटी में चीन के साथ संघर्ष में 20 भारतीय सैनिकों की शहादत के 4 दिन बाद 19 जून 2020 अपने प्रथम भाषण में उनकी इस उक्ति कि" न कोई घुसा है, न घुसा हुआ है और न किसी ने भारतीय पोस्ट पर कब्जा कर रखा है " को चीन में काफी सराहा गया।



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वहां की सरकार और मीडिया इन पंक्तियों को लद्दाख में 15 जून को जो कुछ हुआ उसमें चीन को बेगुनाह और भारत को दोषी होने के सबूत के रूप में पेश कर रही है। इसे आधार बनाकर कहा जा रहा है कि हम तो अपनी जगह पर ही थे और 15 जून 2020 को घुसने कि कारवाई तो भारत की ओर से हुई थी!

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चीन भले खुश हो भारत खुश नहीं है पर मीडिया के प्रभाव में कुछ लोग खुशफहमी में अवश्य हैं । सच कड़वा होता है पर सच तो सच है। बिजनेस स्टेण्डर टाईम्स के  2 जुलाई 2020 में छपी रिपोर्ट कहती है कि चीन लद्दाख के भारतीय क्षेत्र डिप्संग, जीवन नुल्लाह, गॉलवान में पैट्रोलिंग पॉइंट (पीपी) -15; पीपी -17 में गोगरा हाइट्स; चुशुल और पैंगोंग झील के उत्तर में फिंगर 4 तक  न केवल घुसा है बल्कि घुसकर बैठा भी हुआ है।

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जिस गलवान विजयी की बात की जा रही है जहां भारतीय सैनिक शहीद हुए थे उस खास प्वाइंट पर भी चीनी सैनिक पुन: पहले से अधिक तैयारी के साथ आ जमें हैं। ये तथ्य देश के प्रायः सभी प्रतिष्ठित अखबारों में छपे हैं। सेटेलाईट ईमेज भी यही कहानी कह रहे हैं। इतना ही नहीं भारतीय कूटनीति द्वारा भी चीन से की जा रही प्रत्येक वार्तालाप में यही प्रयास चल रहा है कि चीन सीमा पर 5 मई 2020 से पहले वाली यथास्थिति में वापस लौटे। वापस कहां से लौटे ? जाहिर है कब्जा किए गये भारतीय क्षेत्रों से!


भारत की बीजेपी सरकार इस वास्तविकता को खुले रूप से स्वीकार नहीं कर रही है क्योंकि उसे अभी उम्मीद है 2017 के डोकलाम विवाद की तरह इस बार भी कूटनीतिक और सैन्य बातचीत के द्वारा चीन को वापस लौटने को मना लेंगे।ऐसा होने पर भारतीय प्रधानमंत्री की मजबूत नेता की छवि भी बरकरार रह जायेगी और उनकी पार्टी को भी नुक्सान भी नहीं पहुंचेगा! ऐसा हो जाय तो अच्छा यदि ऐसा न भी हुआ तो पार्टी का नुक्सान नहीं होगा पर देश का?





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इसी बीच 6 जुलाई 2020 को भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार श्री अजित डोवाल और चीनी विदेश मंत्री श्री वांग यी के बीच बातचीत में यह सहमति बनी है कि दोनों सेनायें  सभी विवादित  जगहों पर 1.5 किमी पीछे हट कर पहले एक 3 किमी का बफर जोन बनायें। निस्संदेह इससे सीमा पर तनाव  कम होंगे पर  यहां उल्लेखनीय है कब्जा छोड़ यथास्थिति पर लौटने पर कोई सहमति नहीं हुई है। इसके लिये आगे बातचीत की बात कही गई है।


चीन द्वारा  भूटान के क्षेत्र पर भी दावे से प्रतीत होता है चीन ने इस  बार एक बड़े इरादे से अपने कदम बढ़ाये हैं। वो समस्त हिमालय क्षेत्र पर अपनी मनमाफिक सीमा  कायम करना चाहता है। वह भारत में इतनी जगहों (सात) पर आगे इसलिए बढ़ा है भारत के कूटनीतिक एवं बातचीत के प्रयासों पर कुछ जगहों से पीछे हट कर  कुछ पर कब्जा बनाये रख सके! चीन की प्राथमिकता में गलवान से अधिक डिप्संग और  पैंगोंग है !


लद्दाख में भारत एवं चीन के बीच कोई सीमा रेखा नहीं है बल्कि एक व्यवस्था के रुप में वास्तविक नियंत्रण रेखा  Line of Actual control (LAC) है जिसे चीन दिल से स्वीकार नहीं करता और हमेशा इसके उल्लंघन कर इस रेखा को अपने हित में परिवर्तित करने के फिराक में रहता है। फिर भी भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने चीनी मित्रता काफी महत्व दिया और व्यापारिक संबंध का विस्तार किया और चीनी नेतृत्व से लगातार मिल कर एक केमिस्ट्री बनाने की कोशिश की।



परन्तु भारत द्वारा जम्मू और कश्मीर तथा लद्दाख की स्थिति में संवैधानिक फेर बदल , भारत के गृहमंत्री का अक्साई चीन  को लेकर अनावश्यक बयान एवं भारत का अमेरिका के  प्रति झुकाव  चीन को पसंद नहीं आ रहे थे। वो भारत को सबक  सिखाने का अवसर तलाश रहा था। श्री नरेंद्र मोदी के शासनकाल में भारतीय अर्थव्यवस्था के साथ हानिकारक प्रयोग, सैन्य बजट में साल दर साल कटौती, आर्थिक संकट और कोरोना महामारी से जूझ रहे भारत में वह अवसर दिखा और उसने अपनी विस्तार वादी चालें चल दी। 5 मई 2020 में भारत के लद्दाख सीमा क्षेत्र कई स्थानों में घुस चला!





भारत के पास  कूटनीतिक और सैन्य बातचीत के अलावे विकल्प कम है। युद्ध अन्तिम विकल्प होता है  पर इससे  दोनों पक्षों को भारी जानमाल की क्षति होती है और कोरोना महामारी और आर्थिक संकट से ग्रस्त भारत अभी ये विकल्प नहीं चुन सकता। दुसरे सामने चीन है जो अब एक सुपर पाॅवर है । सीमा पर भारतीय सैनिकों का जमावड़ा चीन को और अधिक बढ़ने से रोकने और पीछे जाने का दवाब बनाने के लिए अधिक है, युद्ध के लिये नहीं।



"जैसे को तैसा" की नीति एक विकल्प हो सकता है जो 2013 में अपनायी गई थी जब चीनी सेना डिप्संग में भारतीय क्षेत्र में घुसी थी तो भारतीय सेना चामूर में चीनी क्षेत्र में जा घुसी थी। फलस्वरूप बातचीत  के बाद दोनों सेना अपने-अपने जगह लौट गई । पर इस विकल्प को अपनाने में दिक्कत है कि इस बार चीन एक साथ कई जगह घुस आया है और फिर इससे पूर्ण युध्द में बदल जाने के खतरें भी हैं।

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चीन के साथ एकाएक सभी आर्थिक संबंध तोड़ लेना भी भारत के हित में नहीं है क्यों कि भारत की निर्भरता चीन पर अधिक है! इसे समझदारी से कम करना होगा! चीनी एप्प पर प्रतिबंध सांकेतिक विरोधभर है यद्यपि इससे चीन का भारी नुक्सान नहीं है पर भारतीयों के लिये लाभदायक है । दरअसल भारत को चीन के प्रति अपनी  पूरी नीति ही समीक्षा करनी होगी और अपने हितों की रक्षा के लिये आक्रमक और मुखर होना होगा।





अब समय आ गया है कि एकल चीन(One China) की नीति का त्याग किया जाय और चीनी ताईपेह को मान्यता दी जाय।चीन की विस्तारवादी नीति से त्रस्त हर देश विशेषतया दक्षिण एशियाई  देश का भारत  साथ दे और उन्हें चीन के खिलाफ लामबंद करे। अन्तर्राष्ट्रीय मंचो पर भारत से संबंधित प्रश्नों पर चीन जैसे भारत के  खिलाफ खड़ा होता है वैसे ही भारत चीन के खिलाफ खड़ा होना शुरू करे। भारत के मित्रता के सुर चीन को पसंद  नहीं आये शायद  विरोध का सुर भारत की अहमियत का एहसास जगा दे। पर यह आगे  की बात है  फ़िलहाल  नुक्सान  तो हो चुका !








Parimal

Most non -offendable sarcastic human alive! Post Graduate in Political Science. Stay tuned for Unbiased Articles on Indian Politics.

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