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जनता के विकास और अच्छे दिन लाने सहित कई बड़े-बड़े वायदों पर जनता के भारी उम्मीदों पर आई श्री नरेन्द्र मोदी की एनडीए सरकार को सत्ता में आते ही इन्हें पूरा करने की आदर्श परिस्थिति भी मिली जब पेट्रोल की कीमत अन्तराष्ट्रीय बाजार में एक चौथाई तक कम हो गई थी । फिर भी वायदे पूरे नहीं किये गए बल्कि कुछ वायदों को चुनावी जुमला कह कर पीछा ही छुड़ा लिया गया।

 

कुशल वक्ता तो थे ही ,श्री नरेन्द्र मोदी ने खुद को एक शानदार "शो मैन" भी सिध्द किया और सरकार भी इसी अन्दाज से चलायी । अहमदाबाद से मुंबई के बीच गैर जरूरी "बुलेट ट्रेन" के लिये जापान से 1.10 लाख करोड़ रुपये का समझौता किया और चीन के तकनीकी सहयोग से गुजरात में स्व० सरदार वल्लभभाई पटेल की विश्व की सबसे ऊंची और भव्य प्रतिमा स्थापित की। सघन विदेश यात्रायें की और वहां बसे भारतीयों की सभा कर अपने देश की पिछली सरकारों को कोसने की नई परंपरा को जन्म दिया । इन बातों का भारतीय मीडिया द्वारा व्यापक कवरेज भारतीयों को यकीन दिलाता रहा कि उनके नेता विश्व में भी लोकप्रिय व प्रसिद्ध हो चुके हैं ।


चिढ़ इतनी थी कि कांग्रेस के जमाने की संस्था एवं योजनाओं के नाम तक बदल डाले । योजना आयोग की जगह नीति आयोग ने ले लिया , पृथक रेल बजट को  समाप्त कर आम बजट में  समाहित कर  दिया, दुनिया की सबसे बड़ी रोजगार गारंटी योजना "मनरेगा" का मजाक उड़ाया और एक के एक बाद ताबड़तोड़  आकर्षक नामों वाली 30 नई योजनाओं यथा- जनधन खाता, स्वच्छ भारत अभियान,मेक इन इंडिया, स्टार्ट अप इंडिया,  स्किल इंडिया, आदि की घोषणायें हुई । इसमें भी कई पुरानी योजनाओं का ही नया नामकरण था इसलिए देश का काम होता रहा और अर्थ व्यवस्था ठीक-ठाक चलती रही।

 

लोकसभा चुनाव में कामयाबी के बावजूद बीजेपी व सरकार की चुनावी आक्रमकता  निरन्तर बनी रही और संयुक्त राष्ट्र संघ का अपवाद छोड़ देश में हर बुराई का दोष कांग्रेस पर मढ़ा जाता रहा । "कांग्रेस मुक्त" भारत का नारा दिया गया और उसे मुस्लिम परस्त करार कर उसके नेता को "पप्पू" बतलाने में  एक पूरी ट्रोल आर्मी लग गई ।कांग्रेस और विपक्ष की प्रांतों में बची-खुची सरकारें आपरेशन लोटस, शाह तकनीक, और दलबदल कर गिरायी गई। यह पहली बार देखा गया कि प्रांतीय चुनावों में भी प्रधानमंत्री सहित पूरा केन्द्रीय मंत्रिमंडल लिप्त हो जाया करता है ।


तथाकथित हिन्दुवादी विचारधारा परवान चढ़ने लगी और साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण की गति तीव्र हो गई । "सबका साथ सबका विकास"के नारे को धरातल पर भक्तों ने"किसी का साथ किसी को लात"में तब्दील कर दिया। लवजिहाद, घरवापसी जैसे मुद्दे बने और गोरक्षा व गोमांस के नाम पर माॅब लिंचिग की घटनाएं बढ़़ने लगी जिसके शिकार मुस्लिम एवं दलित होने लगे। मुस्लिम आबादी की मात्र 2 प्रतिशत प्रभावित तलाक पीड़ित के लिए "तीन तलाक" की कुप्रथा को  सामाजिक सुधार का बड़ा मुद्दा बना उसे बदला गया ।


स्वतंत्र मीडिया का पराभव हो गया सवाल सरकार के बजाय विपक्ष से पूछे जाने लगे। हिन्दु-मुस्लिम व भारत-पाकिस्तान ,डिबेट के मुख्य विषय हो गये जबकि विकास और जनहित के मुद्दे पीछे छूट गये । साम्प्रदायिकता को राष्ट्रवाद में पिरोया गया।"भारत माता की जय" के नारे कूट-कूट कर लगवाये जाने लगे। छद्म राष्ट्रवाद का उदय हुआ। इसी दरमियान उरी में आतंकवादी घटना के प्रतिशोध में भारतीय सेना द्वारा पाकिस्तान पर सफलतापूर्वक सर्जिकल स्ट्राइक की कार्रवाई ने श्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता एक ताकतवर प्रधानमंत्री के रुप में और बढ़ा दी ।


बढ़ती ताकत का परिणाम ये हुआ कि देश की लोकतांत्रिक स्वायत्त संस्थायें अपनी स्वायत्तता खोने लगी । विरोध के स्वर दबाये जाने लगे और इस काम में ईडी, सीबीआई और एनआइए की भूमिका महती होती गई । अर्बन नक्सल, टुकड़े-टुकड़े गैंग,देशद्रोही जैसी शब्दावलियाँ हवा में तैरने लगी और विरोधी ठिकाने लगते रहे । जनता को न्याय देने वाली सर्वोच्च संस्था खुद जनता से अन्याय का दुखड़ा सुनाने लगी! कीचड़ भरता गया, कमल खिलता रहा ।


2014 के लोकसभा चुनाव में ऐतिहासिक हार के सदमे के बाद आत्ममंथन में लगी कांग्रेस को बीजेपी की आक्रमक चुनावी रणनीति संभलने का मौका ही नहीं दे रही थी । गनीमत ये रही लगातार होती हार के बाद भी कांग्रेस ना तो टूटी और न ही कोई भारी बगावत हुआ। वो सरकार पर हमले करने और वापसी का अवसर तलाशती रही और ये अवसर  सरकार की नासमझी की नोटबंदी और  हड़बड़ाहट की जीएसटी लागू करने के फैसलों ने दे दिया। इसमें बाद में राफेल सौदे में भ्रष्टाचार का मुद्दा भी आ जुटा।


न कालाधन वापस आया और न ही कशमीर में आतंकवाद की कमर टूटी बल्कि इन दोनों कानूनों ने भारतीय अर्थव्यवस्था की कमर अवश्य तोड़ दी । लघु और मध्यम उद्योग धराशायी होने लगे, बेकारी की समस्या 45 सालों के रिकॉर्ड स्तर पर पहुँच गई किसानों के हालात बदतर हो चले । जनता की क्रयशक्ति में आई कमी से उद्योग जगत में भी मंदी छा गई और भारत की जीडीपी दिनों दिन कम होने लगी । कांग्रेस के नये बने अध्यक्ष  श्री राहुल गांधी ने सरकार की इस असफलता को जोर शोर से उठाया और श्री नरेन्द्र मोदी के गृह राज्य गुजरात के 2017 के विधानसभा चुनाव में नोटबंदी और गब्बर सिंह टैक्स(जीएसटी) के नाम पर उनके हमलों ने श्री नरेंद्र मोदी को पाकिस्तान की याद दिला दी! बीजेपी को बामुश्किल जीत मिली ।


इसके कुछ समय ही बाद 2018 के राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनावों में राफेल सहित इन्ही मुद्दों पर कांग्रेस की जीत हुई और कांग्रेस का खुद पर जनता का कांग्रेस पर भरोसे की  वापसी होने लगी । कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की लोकप्रियता और विश्वसनीयता में इजाफा हुआ । ऐसा लगने लगा कि 2019 का लोकसभा चुनाव कांटे का होगा और प्रायः सभी चुनावी सर्वे में एनडीए को भारी नुक्सान की भविष्यवाणी की जाने लगी।


परन्तु संदिग्ध परिस्थितियों में पुलवामा में आतंकवादी हमले में 40 भारतीय जवानों की असंदिग्ध शहादत और फिर भारतीय वायु सेना द्वारा पाकिस्तान के आतंकवादी कैम्प पर प्रतिशोधात्मक कारवाई ने सारी बाजी पलट कर रख दी।  रोष और जोश से भरे देश के अल्पकालीन माहौल ने वास्तविक समस्याओं और मुद्दों को ढंक दिया।


फलतः 2019 के आम चुनाव में श्री नरेन्द्र मोदी की बीजेपी और एनडीए सरकार की पहले से भी अधिक ताकत से वापसी हो गई और कांग्रेस को इतिहास में पहली बार लगातार दूसरी हार का सामना करना पड़ा। हार से निराश और अपनी पार्टी के सहयोगीयों से खफा श्री राहुल गांधी ने नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। पार्टी का अध्यक्ष पद कार्यवाहक रुप से श्रीमती सोनिया गांधी के पास फिर पहुंच गया।

    जारी है ( to be continued ) https://www.indianspolitical.com/2020/08/awake-congress-awake-conclude.html

















Parimal

Most non -offendable sarcastic human alive! Post Graduate in Political Science. Stay tuned for Unbiased Articles on Indian Politics.

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