खंडन - इस लेख में किये गए व्यंग्य, लेख की रोचकता बनाये रखने के लिये ही किया गया । यदि फिर भी किसी दिल को चोट पहुँचती है तो उसके लिये Indianspolitical.com खेद व्यक्त करता है।
दरअसल मंहगाई, बेरोजगारी, किसानों की दुर्दशा ,अर्थव्यवस्था की बदहाली,कोरोना महामारी की मार और प्रशासन की नाकामी से इन राज्यों में जनता में असंतोष का चरमोत्कर्ष हो गया है इसलिए डबल ईंजन की सरकार के खिलाफ डबल इनकंबेसी भी उत्पन्न हो चुकी है।
चूंकि प्रधानमंत्री खुद को हटा नहीं सकते इसलिए राज्यों के मुख्यमंत्री बदल कर एक इनकंबेसी कम करने कोशिश की गई है। यूपी में तो यह भी नहीं हो सका है क्योंकि यूपी के कल्पित पहलवान महावीर सिंह का कहना है " यूपी के जिद्दी, गुजरात के घमंडी से कम होवे की?"
यूपी का चुनाव सबसे महत्वपूर्ण है क्योंकि बीजेपी को सबसे अधिक सांसद यहीं से मिलते हैं। गृहमंत्री अमित शाह का मानना है कि यदि 2024 में मोदी को जितना है तो 2022 में योगी को जिताना होगा। डबल इंकम्बेसी यहां भी है फिर भी पार्टी के थिंक टैंक की सोच है "बीजेपी को हार से बचाना है,हद से गुजर जाना है। " छौंक या तड़के से काम नहीं चलेगा तो पूरी हांडी ही चढ़ाई जायेगी।
ऐसा नहीं है कि बीजेपी ने विकास को मुद्दा बनाने की कोशिश नहीं की पर विकास के नाम पर बताने को कुछ खास रहना भी तो चाहिए! शहरों के नाम बदल देना, मस्जिदों को भगवा रंग में रंग देना, सही-गलत एंकाउंटर करना,CAA और NRC विरोधी आन्दोलन को दबाने में गैरजरूरी बर्बरता दिखलाना, धर्मांतरण का नया कानून लाना अयोध्या में लाखों दिये जलाना विकास की श्रेणी में तो आते नहीं। उस पर कोरोना वायरस की भयंकर विनाश लीला। ऐसे में झूठ और प्रोपेगेंडा ही रास्ता बचता था और इसके लिये कई तरीके अपनाये गए।
(1) कोरोना झेलने में खुद दुनिया भर में असफलता का टॉप रैंक हासिल करने वाले प्रधानमंत्री यूपी का बार-बार दौरा करते हैं वहां के मुख्यमंत्री को कोरोना का अच्छे से सामना करने के लिये पीठ थपथपा देते हैं। पर बार-बार की इन थपकियाँ के बावजूद यह झूठ जनता के गले नहीं उतर नहीं पायी है। क्योंकि वास्तव में कि कोरोना की दूसरी लहर की सर्वाधिक त्राूसदी यूपी की जनता ने झेला है।
यद्दपि ये वास्तविकता है कि कोरोना की दूसरी लहर में पूरे देश की स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा गई थी पर इसमें भी यूपी के हालात तो और भी विचित्र था, यहां व्यवस्था रहती तो चरमराती! इस पर तुर्रा ये था कि यहाँ ऑक्सीजन के लिए तड़प रही जनता के तड़पने पर भी मुकदमे तक की धमकी दी गई।
ऐसे में प्रधानमंत्री चाहे कितनी भी शाबाशी दे लें सच्चाई ये है कि यूपी में हिन्दु महंथ के शासन काल में गंगा में बहती और उसके किनारे अर्ध्ददफन लाशों का दर्दनाक मंजर पुरी दुनिया ने देखा। दुनिया इसे अभी तक भूली नहीं फिर जिस जनता ने इसे भोगा वो कैसे भूल जायेंगी?
(2) प्रचार तंत्र को सक्रिय कर यूपी सरकार की उपलब्धियों को बढ़ा-चढ़ा कर दिखाये जाने लगा। यूपी क्या दिल्ली तक बड़े-बड़े होर्डिंग्स लगाये गये, देश के अखबारों में पूरे पन्ने के विज्ञापन छपने लगे और यूपी नम्बर वन का मीडिया द्वारा राग अलापा जाने लगा। नित नये-नये प्रोजेक्ट के शिलान्यास होने लगे। पर इसी बीच नीति आयोग ने देश के Poverty index 2021 में यूपी को देश का तीसरा सबसे गरीब राज्य बतलाकर सारा गुड़गोबर कर दिया। इस मामले में लगभग 10 राज्यों से ऊपर रहने वाला यूपी अब सिर्फ झारखंड और बिहार से आगे है।
यूपी के law & order को
लेकर बड़े ढ़िढोरे पीटे जा रहे हैं। परन्तु हाथरस, कन्नौज या फिर लखीमपुर खीरी जैसी कई घटनाओं में जनता ने देखा यूपी पुलिस law को भूल सिर्फ order पालन पर ध्यान दे रही है। ये सब कारण रहे हैं कि बंगलौर में स्थित Public Affairs Centre's index 2021ने यूपी को देश के बड़े 18 राज्यों नें सबसे खराब शासित राज्य घोषित किया।
(3) इन उपायों के बावजूद विपक्ष की रैलियों की स्वयंस्फूर्त भीड़ सरकार की रैली में जुटाई गई भीड़ से अधिक होने लगी तो बीजेपी का नेतृत्व परेशान हो गया। इसी परेशानी में अहंकार का त्याग कर अजब ढ़ग से माफी मांगते हुए तीन कृषि कानून को वापस ले लिया गया।
आशा की गई इससे 13 महीने से सड़क पर बैठे 700 साथियों की मौत को भूल आन्दोलनरत किसानों की सरकार के प्रति नाराजगी दूर हो जायेगी। पर ऐसा नहीं हो सका। किसानों को डर है कि चुनाव में जीत के बाद क्या पता महातपस्वी किसानों को सड़क पर ला फिर से तपस्या में लीन हो जायें ?
(4)इन सारे प्रयासों के बावजूद बीजेपी यूपी में जीत को लेकर आश्वस्त नहीं हो पाई तो वो अपने फेवरिट हिन्दु-मुस्लिम ध्रुवीकरण कार्ड को चुनावी डिस्को्र्स में ले आई।शुरुआत महंथ मुख्यमंत्री ने किया और अखिलेश यादव के एडिटेड वीडियो (फेक वीडियो) के आधार पर समाजवादी पर पार्टी को जिन्नावादी और मुस्लिम आतंकवादी का आश्रयदाता बतलाकर हिन्दुओं को सावधान रहने की सलाह देनी शुरू कर दी।
डिप्टी सीएम केशवप्रसाद मौर्य भी कहां पीछे रहने वाले थे उन्होंने ट्वीट कर दिया "अयोध्या और काशी में भव्य मंदिर निर्माण जारी है... मथुरा की तैयारी है।" इससे उत्साह में आकर लगुआ-भगुआ संगठन ने अयोध्या की तर्ज पर मथुरा के ज्ञानवापी मस्जिद में कृष्ण मूर्ति रखने की तिथि सहित घोषणा भी कर डाली। पर न तो मुसलमान सड़क पर उतरे और न ही हिन्दुओं मे उबाल आया और इस तरह ध्रुवीकरण का यह प्रयास भी टांय-टांय फिस्स हो गया, फिलहाल।
अब तक यूपी चुनाव की कमान अपने हाथ में ले चुके तुकबंदी के सम्राट ने पहले तो लोगों को समाजवादी पार्टी की पहचान रेड टोपी के प्रति रेड अलर्ट किया।फिर काशी कॉरिडोर के उद्घाटन के 55 कैमरे के अपने 56 इंच के वन मेन शो में शिव मंदिर में शिवाजी का तुक भिड़ा दिया। कहां शिव और कहां शिवाजी? सचमुच जहांपनाह
तुस्सी ग्रेट हो! यह तुक इसलिए भिड़ाना था क्योंकि औरंगजेब को लाना था। कह दिया कि "यहां अगर औरंगजेब आता है तो शिवाजी भी उठ खड़े होते हैं।'
क्या जरूरत थी ऐसी बयानबाजी की कौन -सा औरंगजेब आने वाला है? इतिहास के महाज्ञानी को शायद
पता नहीं कि शिवाजी और औरंगजेब की लड़ाई रियासती लड़ाई हुआ करती थी धार्मिक नहीं। ऐसा नहीं होता तो शिवाजी की डेढ़ लाख की सेना में छ्यासठ हजार मुसलमान नहीं होते।
(5) धर्म संसद -आसमान पर थूकने वालों और तनातनी परम्परा वाले मूर्ख अधर्मियों पर टिप्पणी आवश्यक नहीं।
इन तमाम प्रयासों के बावजूद बीजेपी की इन राज्यों में जीत खतरे में भले हो, हिन्दु खतरे में नहीं है। खतरे में है तो भारत का लोकतंत्र, सेकुलर संविधान और भारत की गंगा-जमुनी संस्कृति और हिन्दु धर्म की सनातनी परम्परा। यह खतरा उनसे नहीं जिनके बारे में ये बता रहे हैं बल्कि खतरा इनसे ही है जो ये बता रहे हैं। जनता की समझदारी पर भरोसा रखना चाहिए और यह याद रखनी चाहिए की काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ा करती।
Good analysis, but what are available options? Same BSP/SP/Congress
जवाब देंहटाएंAny government who has faith on Indian Constitution and Indian ethos.
जवाब देंहटाएंSashakt n bebak lekhan.Badhai....sabera kisi ke roke nahi rukta
जवाब देंहटाएंBat to sahi kaha apane kat ki handi bar bar nahi Chadha karti janta bahut jald sabak sikhayegi
जवाब देंहटाएं