खंडन - इस लेख में किये गए व्यंग्य, लेख की रोचकता बनाये रखने के लिये ही किया गया । यदि फिर भी किसी दिल को चोट पहुँचती है तो उसके लिये Indianspolitical.com खेद व्यक्त करता है।
सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से संबंधित हाल के मुकदमें के दौरान कहा था कि चुनाव आयोग ऐसा होना चाहिए जो प्रधानमंत्री के खिलाफ भी कोई एक्शन लेने की हिम्मत रखता हो। सुप्रीम कोर्ट को ऐसा कहने की जरूरत क्यों हुई होगी वो 10 मई सम्पन्न कर्नाटक विधानसभा चुनाव में आयोग के व्यवहार ने बिल्कुल स्पष्ट कर दिया । इस चुनाव के दरम्यान बीजेपी के सितारे और पुच्छलतारे दोनों चुनावी आचार संहिता की ऐसी की तैसी करते रहे पर चुनाव आयोग मूकदर्शक बना रहा। यह अलग बात है जनता ने भी इनकी पार्टी की ऐसा ही हाल कर दिया।
Inactive and favorable Election Commission
People Representative Act सेक्शन 125 और सेक्शन 126 का बीजेपी के तमाम बड़े नेता धज्जियाँ उड़ाते रहे और चुनाव आयोग खामोशी से देखता रहा। सेक्शन 125 कहता है कि "कोई भी व्यक्ति जो इस अधिनियम के तहत चुनाव के संबंध में भारत के नागरिकों के विभिन्न वर्गों के बीच धर्म, नस्ल, जाति, समुदाय या भाषा, शत्रुता या घृणा की भावनाओं को बढ़ावा देता है या बढ़ावा देने का प्रयास करता है, वह कारावास के साथ दंडनीय होगा। जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकती है, या जुर्माना, या दोनों।"
इस कानून के रहते कर्नाटक चुनाव प्रचार में गृहमंत्री कहते हैं कि कांग्रेस यदि सत्ता में आई तो कर्नाटक में दंगे शुरू हो जायेंगे। जबकि प्रधानमंत्री ने तो खुलेआम चुनावी सभा में बजरंग बली की जयकारे ही लगाने शुरू कर दिये। यहां तक कि बजरंग बली की जय बोलते हुए वोट डालने की अपील भी की। इतना ही नहीं केरला फाईल जैसी प्रोपेगेंडा फिल्म जिसमें 32000 की संख्या में हिन्दु और ईसाई औरतों को मुस्लिम बना ISIS संगठन में जाने की झूठी कहानी बतलाई गई है उसे प्रमोट करते रहे।
चुनाव आयोग ये सब पूरी खामोशी से देखता रहा। तीन साल की कैद या जुर्माना या दोनों तो दूर एक नोटिस तक नहीं भेज सका। ऐसे में कोई अगर कहता है कि भारत में लोकतंत्र की रक्षा करने वाली संस्थाओं का पराभव हो गया है तो क्या गलत कहता हैं? राष्ट्र की बदनामी सरकार के खिलाफ सच कहने से नहीं होता है चाहे वो देश में बोला जाय या विदेश में। राष्ट्र का अपमान झूठ बोलने और कानून के खुलेआम उल्लंघन से होता है वो भी सरकार के सर्वोच्च स्तर पे।
Bharat Jodo Yatra Impact
कर्नाटक चुनाव परिणाम में कांग्रेस पार्टी की 135 सीटों पर प्रचंड जीत मिली है वही बीजेपी 65 सीटों पर सिमट गई जबकि जेडीएस 19 सीटों पर जीता। इस जीत के कई कारण रहे। भ्रष्टाचार, मंहगाई, बेरोजगारी, हिन्दी गोदी मीडिया और ब्रांड मोदी का निष्प्रभावी होने के अलावा एक कारण श्री राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा का असर भी रहा। यह यात्रा कर्नाटक के 21 सभा विधान सभा क्षेत्रों से गुजरी थी।कांग्रेस ने उनमें से 16 पर जीत हासिल की जिनसे यात्रा गुजरी, जबकि चार सीट जेडीएस ने जीता। 2018 के चुनाव में बीजेपी के पास इनमें से 12 सीटों पर कब्जा था। पूरे राज्य में कांग्रेस के वोटों का प्रतिशत में 5% की वृद्धि हुई जबकि इन 21 सीटों पर यह लगभग 8 से 10% तक रहा।
Dawnfall of Brand Modi
यद्यपि यह चुनाव लोकसभा के लिए नहीं था पर सितारे ने "मुझे गाली दी गई" का Victim card खेल और बजरंग दल को बजरंग बली से जोड़ कर जो नारे लगवाये उससे विधानसभा का यह चुनाव भी 'मोदी बनाम कांग्रेस" का राष्ट्रीय चुनाव बन गया। परिणाम आने के बाद हिमाचल प्रदेश की तरह जीते तो मोदी मैजिक और हारे तो श्री जे पी नड्डा , ऐसी कोशिश कर्नाटक में भी की जा रही है।
पर सच को कब तक छुपाया जा सकता है। कर्नाटक में यह राज्य और केन्द्र सरकार दोनों के खिलाफ वोट था। हर पांच साल में कर्नाटक में सरकार बदलने की परिपाटी का हवाला दिया जा रहा है। पर परिपाटी उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में टूटी तो क्रेडिट मोदी मैजिक को मिला। यह परिपाटी हिमाचल और कर्नाटक में नहीं टूटी तो डिसक्रेडिट भी तो इसी मैजिक को मिलना चाहिए । क्या नड्डाजी डिसक्रेडिट लेने के लिये ही बीजेपी का अध्यक्ष रखे गए है?
यह भी सफाई दी जा रही है कि बीजेपी का वोटिंग प्रतिशत 36% पर कायम रहा है। पर इस सच में यह तथ्य भी शामिल है कि बीजेपी ने कर्नाटक के चुनावी रूप से बंटे 6 जोन में से केवल दो पुराना मैसूर और बेंगलुरु में उच्च वोट शेयर हासिल किये हैं। एक तथ्य यह भी है कि बीजेपी ने दक्षिण कर्नाटक में बिना एक भी सीट जीते जेडीएस के वोट शेयर में सेंध लगाया है।
Question on EVM
हाहर का खी ज उतारने के लिये हहहार का खीज उतारने के लिये बीजेपी के नेता कांग्रेस पर तंज कस रहे हैं कि अब EVM ठीक है ना! लोकतंत्र खतरे में अब तो नहीं है? इसका जवाब कांग्रेस प्रवक्ता गुरदीप सिंह ने दिया कि बीजेपी 3 से 5% तक वोट EVM से मैनेज कर रही है नहीं तो कांग्रेस का जीत का प्रतिशत में अन्तर और अधिक होता। दरअसल मात्र चुनाव हो जाना ही लोकतंत्र नहीं होता दूसरे जब बंगलादेश जैसा देश भी विपक्ष की आपत्ति पर EVM बैन कर सकता है तो Mother of democracy ऐसा क्यों नहीं कर सकती?
अपने समर्थक और कार्यकर्ताओं का उत्साह बनाये रखने के लिये 2018 में कई असम्बलियों हार के बावजूद 2019 की लोकसभा में मिली जीत की याद दिला कर मोदी ब्रांड के वजूद कायम करने का प्रयास हो रहा है। पर उस जीत में पुलवामा की शहादत और बालाकोट के प्रतिशोध का जबरदस्त योगदान था जिसे भुला नहीं जा सकता।
पुलवामा का मुद्दा 2024 में भी रहेगा पर कश्मीर के तत्कालीन गवर्नर सत्यपाल मलिक के खुलासे के बाद ये शहादत की बजाय केन्द्र सरकार की लापरवाही के लिये उठाया जायेगा। इसलिए 2019 के चुनाव में डंका बजवाने वाला पुलवामा 2024 में लंका भी लगा सकता है। असल बात ये है कि कर्नाटक के चुनाव परिणाम यह साबित करता है कि मोदी ब्रांड का पतन हो रहा है जबकि श्री राहुल गांधी नये ब्रांड बनते जा रहे हैं। यह सिर्फ दक्षिण भारत में हुआ है शेष भारत में साबित होना शेष है। वैसे 2014 मतदाताओं में (अंधभक्तो को छोड़कर) ये सोच भी धर करती जा रही है कि ना जाने पिछले जन्म में कौन सा पाप किया था जो ऐसा प्रधानसेवक हमें मिला। ऐसी चर्चा चीन या उत्तर कोरिया में नहीं देश में ही हो रही है।
2024 की jhanki hai
जवाब देंहटाएंKarnataka natija se to yahi pata chal raha hai ki sauth me bahut logon ko Narendra modi ka bhoot utar gaya hai kash or bhi Pradesh me andhbhakto ko bhoot utar Jaye modi ka wo bhi jald hi pata chal jayega
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