Power in Danger? खतरे में शक्ति।

खंडन - इस लेख में किये गए व्यंग्य, लेख की रोचकता बनाये रखने के लिये ही किया गया । यदि फिर भी किसी  दिल को चोट पहुँचती है तो उसके लिये  Indianspolitical.com खेद व्यक्त करता है। 

power in danger




मुंबई की कांग्रेस पार्टी की रैली में श्री राहुल गाँधी ने भाषण क्या दिया कि भारत में शक्ति खतरे में आ गई है। सुनने में कुछ अजीब लगता है अभी तक तो लोकतंत्र खतरे में है कि बात सुन रहा था ये बीच में शक्ति कहां से आ गई और आते ही खतरे में पड़ गई। 


वैसे यहाँ मैं किसी विचारधारा, कॉरपोरेट, या जांच ऐजेन्सियों की शक्ति की बातें नहीं कर रहा हूं। ना ही मैं नारियों  को अपमानित करने वाले ब्रजभूषण सिंह, वाराणसी के गुण्डे और मणिपुर के भेड़िये जैसे देश को मर्माहत करने वाली शक्ति की बात कर रहा, ना ही उनके लिये जान की बाजी लगाने जा रहा हूं। 


मैं तो स्वीडन की  V-Dem Institute 2024 के रिपोर्ट में उल्लेखित शासनशक्ति की बात कर रहा हूं जिसके अनुसार भारत में Democracy है ही नहीं यहाँ तो 2018 से ही  Autocracy चल रही है जो अब दुनिया के टॉप  निकृष्टतम दस देशों में शामिल हो गई है। चलो ये जान के मन में  तसल्ली हुई कि अपनी  Democracy खतरे में नहीं है। जो है ही नहीं वो भला खतरे में कैसे पड़ेगी। पर अपनी Democracy गई कहां? Autocracy कौन है कहां से टपक पड़ी? 


दीदी ओ Alexa दीदी ! ये  Autocracy क्या है? " A system of governance in a country in which one person has absolute power".हे भगवान् ! ये मैं क्या सुन रहा हूँ  ये तो अच्छा है कि मैं ....हूं ? ये तो 20 वीं सदी में जो तानाशाही (Dictatorship) थी वही 21वीं सदी में Autocracy( निरंकुशशाही) है। ओहो! इलाहाबाद ही प्रयागराज है। 


भारत के लिये ऐसी गंभीर बात कहने की हिमाकत करने वाली V-Dem( Varieties of Democracy)  Institute है  जिसकी  स्थापना 2014 में स्टीफ़न आई. लिंडबर्ग ने की है। महत्वपूर्ण बात ये है कि यह Institute इडी और सीबीआई की पहुँच से दूर गोथनबर्ग यूनिवर्सिटी  स्वीडन में स्थित है ।इस रिपोर्ट के लिबरल डेमोक्रेसी इंडेक्स ( LDI) में भारत 2022 में 100वें स्थान से गिरकर इस साल 108वें स्थान पर पहुँच गया है। पड़ोसी देश पाकिस्तान 110 से महज दो स्थान उपर। देखी! जप शक्ति की महिमा ! गोदी मीडिया में लगातार पाकिस्तान मंत्र के जप ने भारत जैसे महान देश को एक अदने देश के टक्कर में ला दिया ना ? शाबाश! लगे रहो लगाये रखो। 


V-Dem Institute एक प्रतिष्ठित संस्थान है राजनीति शास्त्री इसके रिसर्च को गंभीरता से लेते हैं क्योंकि यह 471 से अधिक मानकों के आधार पर दुनिया भर के सरकार के गुणों का अध्ययन करता है। यहां कुछ एक मानकों का ही भारत के संदर्भ देखना पर्याप्त होगा।

 Free and Fair Election

सबसे महत्वपूर्ण मापदंड है स्वतंत्र एवं निस्पक्ष चुनाव।  भारत में चुनाव आयोग के हाल के वर्षों का सत्तापक्षी क्रियाकलाप और उसकी नियुक्ति प्रकिया इस तथ्य को स्पष्ट करती है कि यहां कि चुनावी मशीनरी स्वतंत्र नहीं बल्कि मुठ्ठी में है । यहाँ विपक्ष के लिए चुनाव रण में बराबरी के अवसर भी नहीं है। जांच ऐजेन्सियों का दुरूपयोग कर उनकी सरकार गिराई जाती हैं, दलबदल कराये जाते हैं, मुख्यमंत्री गिरफ्तार होते हैं, यहाँ तक कि  इनके बैंक एकाउंट बंद कर दिए जाते हैं। इसी तरह चुनाव में प्रयुक्त मशीन 'इवीएम' को लेकर  चुनाव आयोग चाहे लाख दलीलें दे दे ये शक की घेरे में है। शक का सबसे बड़ा कारण इसके लागू रखने की चुनाव आयोग और सरकार की जिद ही बन गई है जबकि तमाम विपक्ष इसे हटाने या सुधारने की बात कर रहा है। 

Freedom of Expression

V-Dem Institute , सरकार के मूल्यांकन का दूसरा प्रमुख आधार  अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और स्वतंत्र मीडिया को मानता  है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की हालत तो यह किसी प्रोफेसर ने कह दिया पढ़े लिखे लोगों को वोट देना चाहिए तो उसकी नौकरी चली गई।इसी तरह देश के कई पत्रकार, बुध्दिजीवी,  छात्र नेता और किसान स्वतंत्र अभिव्यक्ति के चक्कर में UAPA कानून की गिरफ्त में जेल की शोभा बढ़ा रहे हैं। इस रिपोर्ट के अनुसार भारत दुनिया के 179 देशों में से उन 22 देशों में शामिल है, जहां शिक्षण संस्थानों और शिक्षाविदों को काफी कम स्वतंत्रता मिली है। भारत इस मामले में नेपाल, पाकिस्तान और भूटान जैसे अपने पड़ोसी देशों से भी पिछड़ा हुआ बताया गया है। छि: हद है! 

Independent Media

स्वतंत्र मीडिया की बात करें तो भारत की स्थिति  हास्यास्पद हो चुकी है । सरकार से सवाल पूछने का साहस खो चुकी मीडिया में अब विपक्ष के  विज्ञापन छापने तक की हिम्मत नहीं बची है। दिन रात हिन्दु- मुस्लिम आख्यान,एक नेता का स्तुतिगान और विपक्ष पर आक्रमण इस मीडिया की खासियत बन गई है।  इसके अनुसार 2024 का चुनाव बीजेपी पहले ही जीत चुकी है दिलचस्पी सिर्फ इतनी है जीत का आंकड़ा 400 पार होता है अथवा नही। यही कारण है इसे गोदी मीडिया कहा जाता है। वैसे भी  World Press Freedom  Index  के 180 देशों की सूची में, 161 के निम्नतम रैंक पर भारत का मीडिया यूं ही नहीं पहुंचा है! 


V-Dem Institute  की ये रिपोर्ट भारतीय लोकतंत्र में आस्था रखने वालों के लिये किसी सदमे से कम नहीं। जहां तक सरकार के समर्थकों का सवाल है अव्वल तो गोदी मीडिया ने इन्हें इस रिपोर्ट से बेखबर रखा है । दूसरे, सोशल मीडिया के जरिये जिन्होंने इसे जाना भी है उनकी प्रतिक्रियायें भी दो तरह की रही है। एक के अनुसार ये अन्तर्राष्ट्रीय साजिश है दूसरे  तथाकथित सभ्रांत  (मतिभ्रांत कहना ठीक होगा) किस्म के भक्तों के अनुसार यदि  Autocracy है तो ठीक ही है ये देश इसी को deserve करता है। अरे वाह! क्या बात कही आपने? 


Autocracy को ही सही मानने वालों के लिये तो यही कहा जा सकता है  इन्होंने इसे ठीक से समझा नहीं और वो किसी गलतफहमी में  हैं। इसमें चूड़ी सिर्फ अब्दुल की  ही नहीं सबकी टाईट की जायेंगी और सब में आप भी शामिल होंगे। जहां तक अन्तर्राष्ट्रीय साजिश की बात है तो दो चीजें एक साथ नहीं हो सकती। एक तरफ कहा जाता है कि विश्व गुरु हैं पूरे विश्व में डंका बज रहा है तो दूसरी तरफ ये कहें कि पूरा विश्व आपके खिलाफ साजिश कर रहा है भला ये दोनों कैसे संभव है? 


क्या धार्मिक स्वतंत्रता आंकने वाली USCIRF, भ्रष्टाचार धारणा सूचकांक जारी करने वाला  Transparency International , प्रेस व मीडिया की स्वतंत्रता मापने वाली RSF, Global hunger index जारी करने वाली Concern Worldwide Welthungerhilfe, और प्रजातंत्र को रैंक करने वाली The Economic Intelligence unit आदि अन्तर्राष्ट्रीय संस्थायें सबके सब भारत के खिलाफ साजिश कर रही हैं? यदि आप भी ऐसा मानते हैं ! तो उचित यही है कि आप आँख मूंद कर "मन की बात" में ही मग्न रहिये। 


V-Dem Institute  की रिर्पोट को भी मान लें तो Democracy कहीं गई नहीं बल्कि उसे Autocracy ने निगल लिया है। दरअसल 2024 की कथित लड़ाई Democracy को बचाने की नहीं पुनः स्थापित करने की है। Democracy स्थापित होती है जनशक्ति से जबकि  Autocracy का नाश अहंकार से होता है। अहंकार का चरमोत्कर्ष उसे देवत्व का अहसास करवाता है।पक्ष या विपक्ष का कोई नेता या व्यक्ति चाहे वो गांधी हो या गडकरी उन्हें वो प्रतिद्वंद्वी लायक तक नहीं समझता।


कम्पीटीशन में सिर्फ देवता ही बचते हैं फिर वो ब्रहमा, विष्णु या महेश ही क्यों ना हों। वह नड्डा जैसे लोगों से देवताओं का देवता कहलाना पसंद करता है वस्तुतः वो हर किसी में नड्डा ही देखना चाहता है। नड्डा नड्डा नड्डा! ऐसे में समझ लेना चाहिए कि नाश निकट है। पौराणिक काल में ही एक ऐसा अहंकार पैदा हुआ था जो खुद को भगवान मानता था। उसके अंत का कारण उसका ही पुत्र बना था। यहाँ पुत्र तो नहीं है पर परिवार तो है वह भी काफी बड़ा लगभग 140 करोड़। 

जय हिन्द। 



Parimal

Most non -offendable sarcastic human alive! Post Graduate in Political Science. Stay tuned for Unbiased Articles on Indian Politics.

5 टिप्पणियाँ

  1. ईवीएम में सहिस्नुता हो बस । कहीं वो भी देशभक्त न हो जाएं ।

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  2. जबरदस्त .....सच्चाई से भरपूर.....देशवासी इस चुनाव में सबक सिखाएंगे

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  3. Mamata didi se pooche Ndda ka matlab ak ak vote ke liye tucha sa neta ka piche piche kutte ki tarah laga hua hai hunh 400 se par ayega

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