" इलेक्टोरल बॉन्ड :बीजेपी की भ्रष्टाचार की पोल खुली?"( " Electoral Bonds: Exposing BJP's Corruption?")

खंडन - इस लेख में किये गए व्यंग्य, लेख की रोचकता बनाये रखने के लिये ही किया गया । यदि फिर भी किसी  दिल को चोट पहुँचती है तो उसके लिये  Indianspolitical.com खेद व्यक्त करता है। 


सुप्रीम कोर्ट द्वारा Electoral Bond  को अवैध घोषित करने और फटकारे गये एसबीआई की मजबूरी में किए गए खुलासों से देश क्या पूरी दुनिया स्तब्ध है ? यह सत्य उजागर हुआ कि बीजेपी पार्टी दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी ही नहीं बल्कि सबसे भ्रष्ट पार्टी भी है जिसकी भारत में सरकार भी है। 
बीजेपी पर आरोप: सबसे बड़ी पार्टी या सबसे बड़ा घोटाला?

बीजेपी के नेता और गोदी मीडिया भले ही इसे महज बड़ी पार्टी को बड़ा चंदा मामला बता इस घोटाले पर पर्दा डालने की कोशिश कर रहे हैं पर वास्तविकता ये है कि  Electoral Bond सिर्फ चन्दा नहीं पूरा का पूरा गोरखधंधा था। 

चन्दे की इस कहानी में धंधा, , मनी लॉन्ड्रिंग,  quid pro quo और वसूली सब कुछ था सबसे बड़ी और बुरी बात इसमें सरकारी एजेन्सियों की मदद ली जा रही थी।

इसलिये ये भारत का ही नहीं विश्व का सबसे बड़ा घोटाला है ऐसा सिर्फ श्री राहुल गांधी ही नहीं बल्कि अर्थशास्त्री श्री Prakala Prabhakar  भी मानते हैं जो मोदी सरकार के वित्त मंत्री के पति भी हैं ।

कुछ लोगों को ऐसा लग सकता है party with difference  है और दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी है तो घोटाला भी बड़ी कर ही सकती है इसमें हाय-तौबा मचाने की क्या बात हो गई?

जनता का ध्यान भटकाने की कोशिश?

हाय तौबा  मचानी ही थी तो  CAA पर मचाते, ध्रुवीकरण तो होता ?ये तो बतलाते CAA के तहत अभी तक मात्र एक बन्दे के आवेदन डालने से कैसे हुआ करोड़ों हिन्दुओं का कल्याण! बात करते हैं! 

अभी कैसे घोटाले को भूल केजरीवाल की गिरफ्तारी पर अच्छा उछल -कूद मचा रहे हैं? यही CAA पर करना था ना! गुर्र- गुर्र- किट- किट! भक्तों की भक्ति को प्रणाम! 

पर जनता से बोले गए "न खाऊंगा ना  खाने दूंगा" पाखंड का क्या करे ? उसे कैसे भूलें! सच तो ये है सत्ता धारी दल को खाने और खिलाने की  Electoral Bond से अच्छी  व्यवस्था हो ही नहीं सकती थी। 

इलेक्टोरल बॉन्ड: पारदर्शिता या गोपनीयता?

इलेक्टोरल बॉन्ड राजनीतिक दलों को चंदा देने का वचन पत्र (Bond) रूपी एक वित्तीय तरीका था  जिसे भारतीय स्टेट बैंक की चुनिंदा शाखाओं से खरीद कर किया जा सकता था। इसमें चंदा देनेवाले व्यक्ति या कंपनी और चंदा लेने वाली पार्टी के नाम गोपनीय रहने वाले थे। 

सरकार का यह तर्क था कि इस कानून  से राजनीतिक फंडिंग के क्षेत्र में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ेगी बैंक के द्वारा ट्रांजेक्शन से अवैध फंड के निर्माण को भी रोका जा सकेगा। 

ये दोनों तर्क ही गलत थे। जो व्यवस्था गोपनीय होगी वो पारदर्शी भी हो ये कैसे मुमकिन है ? ये मत कहना कि टनटनाटन हो तो मुमकिन है।

इसी तरह बैंक का ट्रांजेक्शन होने के बावजूद गोपनीय होने से अवैध फंडिंग रूकती या अवैध धन के लिये वैध दरवाजा खुलता। इसे और कुछ नहीं पब्लिक को उल्लू बनाना कहा जा सकता है। 

यह गोपनीयता भी पूर्ण नहीं थी ,सरकार को सब पता चल जाता था। सिर्फ विपक्ष और जनता को पूर्ण अंधेरे में रखा जाना था।

एसबीआई वित्त मंत्रालय के अधीन  होता है उसे पता था। एक आरटीआई से खुलासा हुआ कि  48 घंटे में उसे खबर हो जाती थी।

Quid pro quo

इसी तरह गृहमंत्रालय को भी खबर थी क्योंकि 2018 के एक कानून द्वारा मांगे जाने पर एसबीआई को इलेक्ट्रोरल बॉण्ड के बारे में ED, CBI, Income Tax  को बतलाना अनिवार्य कर दिया गया था। यही सबसे खतरनाक बात थी क्योंकि Quid pro quo का धंधा और वसूली का रास्ता भी यहीं से खुलने वाला था। 

दरअसल Electoral Bond लाने के पीछे का उद्देश्य सत्ताधारी दल बीजेपी को आर्थिक रूप से अन्य दलों की तुलना में  level playing field से काफी उपर पहुंचा देना था।

इसलिए आरबीआई, चुनाव आयोग और कांग्रेस पार्टी सहित विपक्ष सभी ने इसका विरोध किया था। कांग्रेस पार्टी ने चुनाव जीतने पर इसे खत्म करने की बात कही थी।

पर 2019 चुनाव में कांग्रेस के लिये नौ मन तेल हुआ ही नहीं जो राधा नाचती।

राहुल गाँधी की दूरदर्शिता

 पर 18 नवम्बर 2019 को ही कांग्रेस के एक बंदे  ने ट्वीट जरूर कर दिया था " In “New” India, bribes & illegal commissions are called Electoral Bonds." इस बन्दे का नाम था राहुल गांधी ! धत तेरे की! इसकी ये बात भी सच साबित हो  गई। ऐसी दूरदर्शिता! नेता है कि तेनालीराम! 


भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई: वादे और वास्तविकता के बीच का अंतर

अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिये बेचैन सरकार ने इन चेतावनियों के बावजूद आव ना देखा ताव  लोक सभा से(राज्यसभा में बहुमत ना था भाई) 2017 में वित्त विधेयक के तौर पर पास कराया और 2018 में लागू भी कर दिया। 

इसके लिये  दनदनादन कई स्थापित कानूनों में परिवर्तन भी कर दिए। इसमें से कंपनी एक्ट में एक परिवर्तन ही सरकार की मंशा स्पष्ट करने के लिए काफी है।

चंदा देने के लिये कंपनी की तीन साल पुरानी होने की अनिवार्यता और चंदे की राशि का तीन वर्षीय के औसत मुनाफे की 7.5% की सीमाबध्दता दोनों समाप्त कर दिया गया। 

जिन्दगी और बता तेरा इरादा क्या था? फर्जी कम्पनियों और असीमित काले धन का सुस्वागतम! क्यों? सही कहा ना! 

सुप्रीम कोर्ट के निर्णय सही पर अधूरे

सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस चन्द्चूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ को ऐसा ही लगा। इस पीठ ने 15 फरवरी 2024  को सर्वसम्मति से केंद्र की Electoral Bond योजना को अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत सूचना के अधिकार का उल्लंघन के आधार पर  असंवैधानिक बताते हुए रद्द कर दिया।

पर सुप्रीम कोर्ट दोषसिद्धि और दंड देना भूल गई और ना ही अवैध धन की जब्ती का आदेश दिया। फिर  भी  जो दिया वो कम महत्वपूर्ण नहीं है। 

अपने निर्णय में  विभिन्न कानूनों में किए गए परिवर्तन को भी समाप्त कर दिया।कंपनी एक्ट में किये गए बदलाव  रद्द करते हुए कहा कि असीमित कॉर्पोरेट चंदा की अनुमति देना स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों का उल्लंघन है ।

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा इस बात की पूरी संभावना है कि किसी राजनीतिक दल को  कम्पनियों के बीच Quid pro quo से काम करने की व्यवस्था हो जाएगी।

इसके साथ ही एसबीआई को  Electoral Bond  से  संबंधित सारी जानकारी चुनाव आयोग के द्वारा घोषित करने को कहे गए।

Autocracy के डर से काफी नानुकुर और हील हवाले के बाद यह जानकारी 21 मार्च 2024 को घोषित की गई और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल गिरफ्तार कर लिए गए।

अरे ये क्या बात हुई? कहीं से कहीं कनेक्शन जोड़ दिया। अरे भई! मीडिया का डिस्कोर्स भी बदलना जरूरी होता है। समझते नहीं!

 हिन्दु मुसलमान कनेक्शन नहीं जोड़ रहे वो कम है क्या?बात करते हैं! इसी टोका-टोकी के चलते तो प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं करते! 

     जारी है 

Parimal

Most non -offendable sarcastic human alive! Post Graduate in Political Science. Stay tuned for Unbiased Articles on Indian Politics.

3 टिप्पणियाँ

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