खंडन - इस लेख में किये गए व्यंग्य, लेख की रोचकता बनाये रखने के लिये ही किया गया । यदि फिर भी किसी दिल को चोट पहुँचती है तो उसके लिये Indianspolitical.com खेद व्यक्त करता है।
बीजेपी को अचानक एनडीए का स्मरण हुआ उसकी बैठक बुलाई,अपनी पार्टी की संसदीय दल की बैठक बुलाने का रिस्क नहीं लिया और श्रीमान ने बिना समय गवायें आनन फानन में पुनः प्रधानमंत्री की शपथ ले ली। इस तरह सुदर्शन रचित बाबा भारती और डाकू खड़गसिंह वाली "हार की जीत" जैसी कहानी बन गई। इसमें बाबा भारती कौन है और कौन खड़गसिंह पता चलने में कुछ तो वक्त लगेगा पर सत्ता का घोड़ा फिलहाल एनडीए के साथ बंधा है। पर एक अकेला सब पर भारी कहने वाले का घमंड अवश्य टूटा और वो कुर्सी के लिये क्षेत्रीय पार्टियों का आभारी हो गया।
RSS on Result
पितृ संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कहता है कि नेता और बीजेपी की हार हुई है और उसे अहंकार ने हराया है। कदाचित पिताजी 240 सीटों पर मिली जीत की हकीकत भी जानते हैं ? अतएव बीजेपी के भविष्य में और मिट्टी पलीद की आशंका को देख कर उनकी इच्छा रही कि जिनके नाम पर बीजेपी ने चुनाव लड़ा और मेनिफेस्टो बनाया, जनता ने उसे नकार कर बहुमत नहीं दिया ऐसे में सरकार एनडीए की बनती भी तो कम से कम प्रधानमंत्री किसी और को होना चाहिए था। पिता की हर बात मानना जरूरी होता तो कोई बालक भक्त प्रहलाद कैसे होते? दूसरे वे कोई ऋषि सुनक नहीं हैं उन्हें तो भगवान ने भेजा है वो भला हार कैसे मानेंगे? वो तो अपनी हार का मातम मनाने की बजाय विपक्ष की हार की खुशी मना रहे हैं।
Camparison With Nehru' s Victories
सुनक नहीं पर सनक तो स्व:नेहरू से बराबरी की रही है। ये सत्य है कि लगातार नेहरू की तरह तीन बार प्रधानमंत्री बने हैं पर उनसे तुलना?! एक तो स्व: नेहरू ने कभी गठबंधन में चुनाव लड़ा नहीं और दूसरे उनके समय कॉंग्रेस पार्टी का प्रदर्शन 1952,1957 और 1962 में क्रमशः 364/489, 371/494, 361/508 रहा था। कहां नेहरू की अकेले कॉंग्रेस ने हर बार दो तिहाई बहुमत हासिल किया था वहीं इनकी गठबंधन वाली बीजेपी ने दो बार साधारण बहुमत और एक बार अल्पमत हासिल कर पाई। ऐसे में स्व: नेहरू से तुलना , बुध्दि की बलिहारी ही कहेंगे ? बालक बुध्दि या बैल बुध्दि मेरी समझ में नहीं आती। अल्प बुध्दि जो ठहरा !
रही बात प्रधानमंत्री पद पर तीन बार शपथ लेने की तो ये काम भी इनसे पहले स्व: नेहरू, स्व: इन्दिरा गाँधी, और स्व: अटल बिहारी वाजपेयी कर चुके हैं। इन्होंने ने इनकी बराबरी ही की है कोई नया रिकॉर्ड नहीं बनाया है। जहां तक भारत के सर्वाधिक दिनों तक प्रधानमंत्री पद पर रहने की बात है वहां भी वो स्व:नेहरू के 16 वर्ष 286 दिन और स्व: इन्दिरा गांधी के 15 वर्ष , 350 दिन दोनों से अभी काफी पीछे हैं।
ऐसा भी नहीं है इन्होने कोई नया रिकॉर्ड नहीं बनाया है। अरे भई बनाया है निराश क्यों होते हैं ! एक रिकॉर्ड ये है कि अभी तक भारत के जितने भी प्रधानमंत्री हुए हैं उनमें से सबसे कम मतों से अपनी सीट जीतने वाले प्रधानमंत्री यही रहे हैं। दूसरा देश के ये ऐसे एकमात्र प्रधानमंत्री है जो अपनी पार्टी के संसदीय दल के नेता चुने बिना प्रधानमंत्री बने हैं। लो बना ना रिकॉर्ड! बात करते हैं!
Role of Election Commission
रिकॉर्ड बनाने में चुनाव आयोग भी पीछे नहीं रहा। सत्ता पक्ष को अपने भाषणों में आचार संहिता के उल्लंघन करने की खुली छूट देने का इसने सर्वकालीन रिकॉर्ड बना दिया। फलतः घुसपैठिया, ज्यादा बच्चे पैदा करने वाला, मंगलसूत्र छीन लेंगे, भैंस ले जायेंगे, मुजरा जैसे टपोरी और सड़क छाप शब्दावलियों का सत्तापक्ष के सर्वोच्च स्तर से धड़ल्ले से इस्तेमाल हुआ और वोट के लिये समाज को बांटने की हर संभव कोशिशें की गई। इतना ही नहीं चुनाव आयोग ने मतदान के अंतिम आंकड़े देने में देरी और उसमें अभूतपूर्व बढोत्तरी Extra 2ab को लेकर पूरी मतदान प्रक्रिया को सन्देहास्पद बना डाला। मामला सुप्रीम कोर्ट में जा अटका।
सूरत से कांग्रेस के प्रत्याशियों एक मौलिक दूसरा स्थानापन्न का नामांकन कथित ढ़ंग से खारिज कर दिया गया जबकि बाकि प्रत्याशियों ने अपने नामांकन मायावी प्रभाव में वापस ले लिया । फलतः बीजेपी के प्रत्याशी मुकेश दलाल वहां से बिना लड़े चुनाव जीत गये। इसी तरह इंदौर में किसी मायावी प्रभाव में बीजेपी को छोड़ सारे प्रत्याशियों ने अपना नामांकन वापस ले लिया।पर जनता के विरोध को देख वहां NOTA बनाम बीजेपी चुनाव कराने पड़े। इस तरह वहां भी बीजेपी प्रत्याशी की जीत तय हो गई। ये सारे चमत्कार इसी चुनाव आयोग की देखरेख में संपन्न हुए। कोई पूछ सकता है जिस तरह का चुनाव इंदौर में हुआ वो सूरत में क्यों नहीं हुआ? पूछने से क्या? जवाब तो देना नहीं! यही तो इस चुनाव आयोग की खासियत रही है। घटिया शायरी सुननी है! तो सुना देंगे!
INDIA' s Performance
इडी, सीबीआई, इनकमटैक्स जैसी ऐजन्सियों से जूझती विपक्षी संगठन INDIA ने इस चुनाव को शानदार तरीके से लड़ा। यद्यपि वो अपने लक्ष्य सत्ता परिवर्तन को प्राप्त करने से चूक गई और आंकड़े 234 पर रूक गए पर वो भारत के संविधान की रक्षा करने और निरंकुश तंत्र के पर कतरने में अवश्य कामयाब हुई। गठबंधन के सभी घटकों और उनके नेताओं ने जिस चट्टानी एकता का परिचय दिया वो अभूतपूर्व था। श्री राहुल गांधी की भारत जोड़ों यात्रा ने बिखरे और दम तोड़ती सम्पूर्ण विपक्ष में उम्मीद की जो नई किरण जगाई थी उसी का परिणाम है कि विपक्ष आज उतना मजबूत है जितना इतिहास में कभी नहीं था। श्री अखिलेश यादव, सुश्री ममता बनर्जी,श्री स्टालिन, श्री उध्दव ठाकरे, श्री शरद पवार और श्री तेजस्वी यादव आदि सभी INDIA गठबंधन के नायक रहे।
विपक्ष की इस ताकत की एक वानगी संसद में भी दिखी। राष्ट्रपति के अभिभाषण के धन्यवाद प्रस्ताव पर बहस में सत्तापक्ष बैकफुट पर दिखा जबकि विपक्ष NEET लीक, मंहगाई, बेरोजगारी, अग्नि वीर, मणिपुर जैसे मुद्दों पर सरकार को घेरती नजर आई। स्पीकर भी पहली बार दवाब में दिखे। लगा की मनमानी अब नहीं चलने दी जायेगी।
नये LOP बने श्री राहुल गांधी का भाषण अत्यंत प्रभावशाली रहा। जबकि सदन के नेता मुद्दे पर जवाब देने के बजाय कांग्रेस को कोसते हुए अनाप- शनाप बोलते रहे। LOP पर कांग्रेस को हार का विश्व रिकॉर्ड बनाने की बात कही। वास्तव में तंत्र के भरोसे लड़ाई और तंत्र के खिलाफ लड़ाई में तो अंतर होगा ही रिकॉर्ड भले जो बने। यही कारण है कि विपक्ष हार कर भी उत्साहित है जबकि सत्तापक्ष जीत कर भी बेचैन!
Jawaharlal Nehru ban rahe the loksabha me 240 laye ab vidhansabha 100 bhi poora nahi hoga mungeri lal ke hasin sapana dekh rahe the Mahashay ji
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