खंडन - इस लेख में किये गए व्यंग्य, लेख की रोचकता बनाये रखने के लिये ही किया गया । यदि फिर भी किसी दिल को चोट पहुँचती है तो उसके लिये Indianspolitical.com खेद व्यक्त करता है
लोकसभा में बीजेपी को बहुमत ना मिलने के बाद 12 सीटों के उपचुनाव में 9 में हार ने देश की राजनीति में मोदी ब्रांड के पतन को पूरी तरह कन्फर्म कर दिया है । ऐसे में श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बन तो गई है पर नई नवेली सरकार पर संकट के बादल निरंतर मंडरा रहे हैं। कई वैशाखियों पर खड़ी सरकार पर विरोध के स्वर अन्दर और बाहर दोनों तरफ से उठ रहे हैं। अब गई की तब गई की स्थिति निरंतर बनी हुई है। कोई इसे बजट सत्र के बाद अगस्त में जाने की बात कर रहा है तो कोई इसे नवम्बर- दिसम्बर के तीन राज्यों की विधान सभा चुनाव के हारे जाने तक का समय दे रहा है।
Ignoring public verdict
अहंकार के मांउट एवरेस्ट से की गई उदघोषणा मैं बायोलॉजिकल नहीं हूं और मुझे ईश्वर ने भेजा है दरअसल " गईल भैंस पानी में" की देश को दी जाने वाली सूचना थी। अहंकार ले डूबता है इस बात को समझने वाली जनता ने इस सूचना को गंभीरता से लिया और यंत्र और तंत्र की मिलीभगत के बावजूद 240 सीटों पर रोक यह इशारा किया कि तुम्हारी भैंसिया पानी में गई तो अब तू भी जा। यही बात श्री राहुल गाँधी ने संसद में उठाया, पुरी के शंकराचार्य ईशारा कर रहे हैं और तो और बीजेपी के पिताजी संगठन आरएसएस के प्रमुख श्री मोहन भागवत बार-बार समझाने की कोशिश कर रहे हैं। पर मांउट एवरेस्ट पर बैठे अहंकार को ये बात भला इतनी आसानी से समझ में कैसे आ सकती है? वैसे भी जब अहंकार पूर्ण होता है तब उसका विनाश भी संपूर्ण होने पर ही होता है! इतिहास गवाह है।
Internal resistance
जनता का मैसेज ना पढ़ने का परिणाम ये हुआ कि सरकार को स्वतंत्र भारत के इतिहास के सबसे मजबूत विपक्ष से मुकाला (?) करना तो पड़ ही रहा है वहीं अपने गठबंधन दलो की ना मानी जाने वाली फरमाइशों को पूरा करने का चुनौती मिल रही है। नई पर कमजोर सरकार की तंत्र के साथ अपनी पार्टी पर पकड़ भी ढ़ीली पड़ चुकी है। हालात तो ऐसी हो गई है कि उनके पत्ते ही उन्हें हवा देने लगे हैं। विश्वास नहीं होता तो कर्नाटक भाजपा के सात बार के सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री रमेश जिगाजिनागी की सुनिये जिन्होंने अपनी ही पार्टी पर दलित विरोधी होने का आरोप लगाया है। पिछले दस सालों में किसी बीजेपी सांसद की ऐसी हिम्मत हुई थी?
पश्चिम बंगाल के बीजेपी अध्यक्ष ने अपने नेता के प्रसिद्ध नारे "सबका साथ सबका विकास" की बजाय ""जो हमारे साथ हम उनके साथ " से बदलने की सलाह दे डाली है ।अवतारी प्रधानमंत्री को सलाह देने की ऐसी जुर्रत? कदाचित श्री शुभेन्दु अधिकारी जी अपने नेता द्वारा चुनाव के दरम्यान घुसपैठिया और ज्यादा बच्चे पैदा करने वाले बयान से उत्साह में आ गए।
इतना ही नहीं अपने महान नेता की जीताऊ छवि कायम रहे इसके लिये बीजेपी का केन्द्रीय नेतृत्व लोकसभा में हार का ठीकरा अपने राज्य सरकारों पर फोड़ना चाह रही है । परन्तु राज्य सरकारें इसे भी फोड़ने नहीं दे रही है। हद हो गई! महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने साफ कह दिया की नुकसान 400 पार के नारे से हुआ है। इसी तरह यूपी के मुख्यमंत्री ने कही कि बीजेपी का अति आत्मविश्वास (400 पार वाला) हार का कारण बना। 400 पार का नारा किसने दिया था ये तो सब जानते हैं।
Review meeting of UP BJP
यद्यपि यूपी के बीजेपी ईकाई की हार की समीक्षा बैठक से जो एक तथ्य निकल कर सामने आया है उसमें कुछ दम लगता है ! इसमें यूपी में पार्टी के हार के कई कारणों में से एक कारण प्रशासनिक तंत्र का सहयोग नहीं मिलना बतलाया गया है। क्योंकि इसी तरह की बात उध्दव शिव सेना के नेता संजय राउत ने भी कहा था। उनके अनुसार प्रशासन तंत्र के सहयोग से ही बीजेपी 240 पर पहुंची नहीं तो 190 ही आती। ऐसे में संभव है कि जो सहयोग बीजेपी को देश के बाकि जगह मिला वो यूपी में ना मिला हो।
What does RSS want?
पैतृक संगठन आरएसएस बीजेपी का नेतृत्व अपनी इच्छानुसार बदलना चाहता है संगठन में भी सरकार में भी। बीजेपी का वर्तमान केन्द्रीय नेतृत्व ऐसा होने नहीं देना चाहता। फिर भी आरएसएस योग्य पात्र की तलाश में है। ये पात्र यूपी के मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ भी हो सकते हैं क्योंकि इस समय बीजेपी में श्री नरेन्द्र मोदी के बाद वही सबसे लोकप्रिय नेता हैं। श्री अमित शाह भले ही पार्टी में नम्बर दो की हैसियत रखते हैं पर वो नेता से अधिक रणनीतिकार के रूप में जाने जाते हैं।
Yogi Adityanath becomes a challenge?
ऐसे में उनक़ी रणनीति भविष्य में चुनौती बनने वाले श्री योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री पद से यूपी विधानसभा सीटों पर उप चुनाव होने से पहले हटाने की है। क्योंकि इनपर होने वाली संभावित जीत योगी आदित्यनाथ की दावेदारी मजबूत कर सकती है। दूसरी तरफ हरियाणा, महाराष्ट्र, और झारखंड की विधान सभाओं में संभावित हार वर्तमान नेतृत्व को कमजोर कर परिवर्तन का कारण बन सकती है।
केन्द्र की महीने भर की कोशिशें बेकार गई और वो श्री योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री पद से हटा ना सके। इस चक्कर में प्यादे रूप में इस्तेमाल किये गए बेचारे यूपी के उपमुख्यमंत्री श्री केशव मौर्य की कुर्सी भी खतरे में पड़ गई है । दूसरी ओर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कांवड़ यात्रा को लेकर मुस्लिम दुकानदारों को नेम प्लेट चस्पा करने का लोकल प्रशासन से फरमान जारी करवा कर ऐसा दांव चल दिया जिससे उल्टा केन्द्र सरकार की कुर्सी डगमगाने लगी।क्योंकि इस फरमान का विरोध न केवल विपक्ष बल्कि एनडीए सरकार के घटक दलों जदयू, टीडीपी, आरएलडी, लोकजनशक्ति सभी कर रही हैं।
केन्द्र की हिम्मत नहीं हो रही है कि वो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को इसे वापिस लेने को कहें। क्योंकि ऐसा करने से अंधभक्तो का सारा कारवां मोदी छोड़ योगी के पास जा सकता है। यदि इसे रहने दें तो सरकार जा सकती है। करें तो क्या करें? सुप्रीम कोर्ट ने इस फरमान पर रोक लगा मोदी सरकार को द्विविधा की स्थिति से फिलहाल बचा लिया है। पर इससे मोदी ब्रांड की राजनीति के पतन की घोषणा तो हो ही गई और दुनिया ने ये देख लिया कि एक ताकतवर मुख्यमंत्री भी कमजोर प्रधानमंत्री पर किस तरह भारी पड़ सकता है।