NDA government problems and solutions.एनडीए सरकार की समस्याएं और समाधानl

खंडन - इस लेख में किये गए व्यंग्य, लेख की रोचकता बनाये रखने के लिये ही किया गया । यदि फिर भी किसी  दिल को चोट पहुँचती है तो उसके लिये  Indianspolitical.com खेद व्यक्त करता है।


कहते हैं कि यदि  समय प्रतिकूल हो तो मुसीबतें भी एक साथ आती है। Extra 2ab की थोड़ी कमी  से बहुमत से चूकी बीजेपी पार्टी की गठबंधन वाली एनडीए सरकार 
के साथ यही हो रहा है। ऐसा ना होता तो नई सरकार बनते ही कश्मीर में आतंकवादी घटनायें और देश में रेल दुर्घटनायें अचानक बढ़ नहीं जाती। ना ही NEET पेपर, बहुचर्चित एवं बहुबजटीय मोदीकालीन इन्जीनियरिंग के कमाल अयोध्या राम मंदिर और  नई संसद भवन की छतें , सब के सब लगभग एक साथ  Leak और टपकने लगते। समस्या सिर्फ छत टपकने की ही नहीं सरकार के टपक जाने की भी है जो मुख्य रूप से आन्ध्रप्रदेश की टीडीपी और बिहार के जदयू की वैशाखी पर टिकी हुई है जिनके खिसकने का खतरा सदैव मौजूद  रहने वाला है।दोनों ही समस्याओं  का समाधान बाल्टी में ढ़ूंढ़ा गया। कहीं बाल्टी लगाई गई तो कहीं बाल्टी भर पैकेज दिया गया। 


बाल्टी की बात चली है भारत के विदेशी कर्ज की बात  करनी जरूरी हो जाती है । बिजनेस स्टैंडर्ड की माने तो सितम्बर 2023 तक यह कर्ज 205 लाख करोड़ रूपये का हो चुका है जो, 2013 में 55  लाख करोड़ रुपये  ही था। IMF की ताजा रिपोर्ट के अनुसार सरकार इसी रफ्तार से भर -भर बाल्टी उधार लेती रही तो 2028 तक देश पर GDP का 100% कर्ज हो सकता है, फिर मुश्किल हो जायेगी। लगता है कि चार्वाक दर्शन के  

"यावज्जीवेत सुखं जीवेद ऋणं कृत्वा घृतं पिवेत भस्मीभूतस्य देहस्य पुनरागमनं कुतः"

के सूत्र को पिछले दस सालों में आत्मसात कर लिया गया है। यह भी स्पष्ट हुआ कि नये जमाने ने पुरानी टेक्नोलॉजी का साथ नहीं छोड़ा है। यहां हमें 80 करोड़ लोगों को दी जाने वाली पांच किलो अनाज वाली बॉल्टी को भी याद रखना चाहिए। देश अब इन बाल्टियों के ही भरोसे है।क्या आप सोचते हैं कि अपनी अंतिम विदाई के वक्त एनडीए सरकार का देश के नाम संदेश होगा  'कर चले हम फिदा ये जान वो तन साथियों, अब बॉल्टी के हवाले वतन साथियों' ? तो ऐसा मत सोचिए!

Problems Facing Parliament

क्योंकि हर समस्या का समाधान बॉल्टी नहीं कर सकती। संसद में मौजूद स्वतंत्र भारत के इतिहास का सबसे मजबूत विपक्ष एक इसी प्रकार की एक समस्या है, जो इस सरकार झेलनी ही है।  इसकी एक वानगी  संसद के इस बजट सत्र में भी दिखी। यहां विपक्ष ने पेपर लीक, एमएसपी, मंहगाई, बेरोजगारी,जाति जनगणना,अग्नि वीर, आरक्षण , वैशाखीपरस्त बजट,ओलंपिक में वीनेश फोगाट के अयोग्य ठहराया जाना जैसे कई ज्वलंत प्रश्नों पर सरकार की नाकों में दम कर दिया। हालात ऐसी हो गई कि गृहमंत्री को सशक्त विपक्ष के आक्रमक तेवर से  सदन में रक्षा की स्पीकर से गुहार तक लगानी पड़ी। 


लेकिन विपक्ष के माईक बंद करने की चमत्कारी शक्ति से लैस स्पीकर और सभापति पहले की तरह इस बार संवैधानिक निस्पक्षता को पूरी तरह ताक पर रखने के बावजूद  एक अकेला सब पर भारी कहने वाले की रक्षा करने में असफल साबित हुए । नवनिर्वाचित़ विपक्ष के नेता श्री राहुल गांधी ने दो घंटे के भाषण क्या दे दिया कि बार-बार पानी पीने के बाद भी गला घूंटने की समस्या उत्पन्न हो गई ? आवाज रूंध गया सूरत रोनी हो गई। सवालों से परेशानी तो थी ही अब भाषण से भी परेशानी हो गई। डाक्टर ED या कोई डा० स्वामी इस समस्या का इलाज पता नहीं कब करेंगे? शेष सत्र के लिये उपाय ये निकाला गया कि जब भी विपक्ष के नेता सदन में आयें तब भारत के एकमात्र अजन्मे और स्वप्रकट हुए नेता सदन से अन्तर्ध्यान हो जाया करें। 


दरअसल दस सालों से सरकार भूल ही चुकी थी कि संसद में विपक्ष  की भी कोई अहमियत होती है। मनमाने कानून संसद में चुटकियों में पारित करवाने की आदत  बन गई थी और विपक्ष ने ज्यादा नानुकूर किया तो सदन से बाहर कर देने का एक दस्तूर कायम कर लिया गया था। पर अब Extra 2ab  की मामूली चूक ने 240 सीटों पर क्या रोका कि यह सरकार वक्फ बोर्ड से संबंधित कानून भी पास नहीं करवा सकी।

The problem with the Bangladesh coup

हिंडनबर्ग की संभावित रिपोर्ट आने की तारीख और राज्यसभा के सभापति के खिलाफ विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव की आशंका ने संसद का सत्र तीन दिनों पूर्व समाप्त करा दिया। काश! सत्र खत्म कर देने से  समस्यायें भी खत्म होती? फिर, इसे समय का खराब नहीं होना तो क्या कहेंगे हिंडनबर्ग रिपोर्ट से पहले बंगलादेश की प्रधानमंत्री श्रीमती शेख हसीना अपनी बागी जनता से जान बचाते हुए भारत आ गई ? सिविल सेवा की पेपर लीक, विपक्ष को खत्म करने की कोशिश, बेईमान चुनाव आयोग द्वारा करवा गया फर्जी चुनाव, अपने अंधभक्तो को दिये गये 30% आरक्षण( धर्म के आधार पर नहीं पार्टी भक्ति के आधार पर) की व्यवस्था, विरोधियों को गद्दार बतलाने जैसी गुस्ताखियों ने एक और तानाशाही का अंत कर दिया। डरिये मत ! मैं बंगलादेश की ही बात कर रहा हूं।


बंगलादेश की इस घटना ने जुमलेबाज के एक और जुमले Neighbors First  का अंत कर दिया। बंगलादेश जिसे भारत ने आजादी दिलाई थी वहां भी भारत विरोधी भावना प्रबल हो गई। इस तरह  देखते ही देखते पिछले दस सालों में भारत के सभी पड़ोसी नेपाल, श्री लंका, मालदीव और अब बंगलादेश भारत के प्रभाव क्षेत्र से बाहर निकल चीन और पाकिस्तान के प्रभाव में आ गए। यह भारतीय विदेश नीति और उसे चलाने वाले चाहे कोई एक जय हों या दो भाल घनघोर विफलता है। गोदी मीडिया के ये शेर गदहे साबित हुए। यह भी पता चला विश्व में भारत का डंका नहीं , कुछ और बज रहा है ! क्या? वो आप समझिये! 

The problem with Phogat's medal-less win at the Olympics

इसे समय का खराब होना नहीं क्या कहेंगे जब देश की एक पहलवान बेटी ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीतने की दिशा में एक के बाद एक विरोधी पहलवानों को पटखनी दे रही हो देश के शासनतंत्र और उसके अंधभक्तो पर खामोशी छा गई हो। क्योंकि उनको अपनी वे करतूतें याद आ रही थी जो अपने एक व्याभाचारी नेता को बचाने में इस बेटी के साथ किया था। इसलिए लग रहा था कि ये पटखनियां भी उन्हें दी जा रही हैं चित भी वे ही हो रहे हैं। पर जैसे ही गोल्ड मेडल की दहलीज पर खड़ी इस बेटी की महज 100 ग्राम वजन की अधिकता से डिसक्वालिफिकेशन की खबर आई इनकी जान में जान आई।


ट्वीट पर ट्वीट किये जाने लगे कुछ सांत्वना के भी थे तो फिर भी ऐसा लगा कि भारत  की इस महान बेटी जिसका नाम वीनेश फोगाट है उसका वे भी मजाक उड़ा रहे हैं। पर वीनेश फोगाट का मजाक उड़ाने वालों की संख्या अत्यंत थोड़ी है जबकि उनको चाहने वालों से पूरा देश भरा पड़ा है क्योंकि उसने अपनी हिम्मत और प्रदर्शन से देश का दिल जीत लिया है। ऐसे में भले ही वीनेश फोगाट को स्वर्ण पदक या कोई पदक ना मिला हो इतिहास में उसका नाम स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जायेगा और जिन्होनें उसके खिलाफ राजनीति की है वो काले कारनामे में दर्ज होंगे चाहे वो कितना भी बड़ा आदमी या उसकी पूरी जमात ही क्यों ना हों? क्योंकि सत्य को अधिक से अधिक वर्तमान से ही छिपा सकते हैं , इतिहास से नहीं। 

The Trouble With the Hindenburg Report

हिंडनबर्ग की एक और रिपोर्ट आ गई। अरे! इसे भी अभी ही आनी थी।  इसके खुलासे ने फिर सरकार के लिये परेशानी खड़ी कर दी। पिछले रिपोर्ट ने जहां अडानी के घोटाले को उजागर किया था इस रिपोर्ट ने इस घोटाले की जांच करने वाली एजेन्सी SEBI  की ही पोल खोल दी है। इस रिपोर्ट के अनुसार सेबी की प्रमुख श्रीमती माधवी पूरी बुच और उनके पति धवल बुच ने बरमूडा और मारीशस में स्थित ऑफशोर फंड में निवेश कर रखा है जो अडानीग्रुप से लिंक है। स्पष्टतः Conflict of interest की  स्थिति है। ऐसे में क्या आपको लगता है अपने ही बॉस के लिंक रखने वाले अडानी के खिलाफ सही जांच SEBI  कर पायी होगी? कायदे से तो अभी तक श्रीमती बुच का इस्तीफा या बर्खास्तगी  हो जानी चाहिए। यद्यपि श्रीमती बुच और अडानीग्रुप दोनों ने हिण्डेनबर्ग के आरोपों का खंडन किया है। पर ऐसा तो हर आरोपित व्यक्ति करता है । सच्चाई क्या है कैसे बाहर आयेगी? 


श्री राहुल गांधी सहित तमाम विपक्ष  का मानना है ये सच्चाई Joint Parliament Committee   की जांच से आ सकती है। पर सत्तापक्ष ऐसा नहीं चाहता है। ऐसे में शक स्वाभाविक है। साधारण सी बात है कि जहां लघुशंका पर ही ED, Income Tax, CBI विपक्ष के नेता के घर पहुँच जाती है उन्हें गिरफ्तार तक कर लेती है, वह दीर्घशंका के बावजूद अडानी के खिलाफ कोई एक्शन क्यों नहीं लेती? ऐसे में सरकार से मिलीभगत (Union of interest) की आशंका तो होगी ही। 

Mr Rahul Gandhi a real challenge

जब भी अडानी पर एक्शन की आवाज उठती है तो एक्शन श्री राहुल गाँधी के खिलाफ होने लगती है। ऐसा इसलिये कि श्री राहुल गांधी इस मामले सहित हर मामले पर सरकार के खिलाफ सर्वाधिक मुखर रहे हैं। दरअसल श्री राहुल गांधी सरकार के लिये ये सबसे बड़ी चुनौती बन गए हैं। यहां तक कि संसद में उनका सामना करने में भी समस्या खड़ी हो गई है। खबर चलने लगी कि ED की छापेमारी होने वाली है और इस बार गिरफ्तारी भी होगी। ओ भई! यह खबर भी अमल में आने से पहले लिक हो गई। फलतः यह मामला  फिलहाल ठहर गया। फिर पुख्ता ये खबर आई  कि बीजेपी के नेता ने हाईकोर्ट में राहुल गांधी की भारतीय नागरिकता को लेकर ही केस कर दिया  है। पहले भी अडानी का नाम लेने पर श्री राहुल गांधी की संसद सदस्यता छीनी गई थी इसबार नागरिकता छिनने की कोशिश! हद हो गई। 


एक साजिश के तहत श्री राहुल गांधी को बदनाम करने के लिये गोदी मीडिया सहित ट्रोल आर्मी सक्रिय कर दी गई हैं। कोई उन्हें जार्ज सोरेस से जोड़ देशद्रोही बतला रहा है तो कोई उन्हें बंगला देश में तख्ता पलट का मुख्य किरदार बतला रहा है। यहां तक कि उनके संबंध कई लड़कियों से बतला कर उनके चरित्र हनन का प्रयास भी किया जा रहा है। पर ये सारी कोशिशें कामयाब नहीं होने वाली है। 


क्योंकि  वास्तविकता ये है भारत की राजनीति नई करवट ले चुकी है  जिसमें एक नेता ढ़लान पर जा चुका है जबकि दूसरा उफान पर है। इसलिये अब गोदी मीडिया और ट्रोल आर्मी की दाल गलने वाली नहीं है । इनके तमाम प्रयासों के बावजूद श्री राहुल गांधी की लोकप्रियता बढ़ती जा रही है। लालकिले पर उन्हें पीछे बैठाओ या आगे इससे  भी फर्क नहीं पड़ता। यह  विपक्ष के नेता की औकात नहीं दिखलाता बल्कि सत्तानसीन के छिछोरेपन को ही उजागर करता है। सच छिप नहीं सकता। सच्चाई देखनी ही है तो उनकी देखिये जो लाल किले से  बिरसा मुंडा के इतिहास,  सेकुलरिज्म और भारतीय संविधान के बारे में बॉल्टी भर बकवास कर अपनी नासमझी का ढ़िढोरा पीटते हैं। ये भी एक सच है विद्वता की गारंटी, कोई डिग्री नहीं दे सकती और यदि वो डिग्री भी संदिग्ध हो तब तो कदापि नहीं।  






















 












Parimal

Most non -offendable sarcastic human alive! Post Graduate in Political Science. Stay tuned for Unbiased Articles on Indian Politics.

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