एक समय था कि भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने भारत और कनाडा की दोस्ती का महत्व एक गणितीय सूत्र (a + b)2 = a2 + 2ab + b2 की चर्चा कर Extra 2ab आया कहां से ? जैसे स्वगढ़ित अजीबोगरीब सवाल का जवाब देते हुए कहा था कि यह Extra 2ab कनाडा और भारत जब मिलता है तब आता है।
Recent Diplomatic Strains: Allegations and Counterclaims
आज हालात ये है कि उसी कनाडा ने कनाडा के सिख नागरिकों के खिलाफ जबरन वसूली और हिंसक कृत्यों में शामिल होने और हरदीप सिंह निज्जर की हत्या का आरोप भारत सरकार और गृहमंत्री श्री अमित शाह पर लगा कर इस दोस्ती की ऐसी तैसी कर दी है।
यही नहीं कनाडा के अखबारों में तो ये भी चल रहा है कि इस षडयंत्र की जानकारी भारत के प्रधानमंत्री को भी थी। ऐसे में फिलहाल दोस्ती तो दूर की बात है भारत कनाडा के बीच के कूटनीति संबंध बद से बदतर हो गये हैं । Extra 2ab! अरे वो तो चुनाव आयोग के पास चला गया ना! अच्छा तभी तो?
दोनों देशों ने एक दूसरे के 6- 6 राजनयिकों को निष्काषित कर दिया है। कनाडा ने नई इमीग्रेशन नीति के तहत भारतीय छात्रों की स्पीडी वीसा की सुविधा समाप्त कर दी।
वहीं दस सालों की मल्टीपुल विजिट वाली विजिटर वीसा की नीति भी बदल दी है ।
इतना ही नहीं कनाडा पर साईबर क्राइम खतरे वाले देशों की सूची में नार्थ कोरिया, चीन, रूस और इरान के साथ भारत को भी शामिल कर भारत को नीचा दिखाने की कोशिश की है।
भारत ने कनाडा के आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया है । बिन सबूतों के इन आरोपों को हास्यास्पद बता कर कड़ी निंदा की है साथ ही इसे कनाडा प्रधानमंत्री ट्रूडो सरकार का राजनीतिक एजेंडा बतलाया जो वोट बैंक की राजनीति पर केंद्रित है।
यहां भी कह दिया ऐसे निराधार आरोपो ं से भारत और कनाडा के रिश्ते बिगड़ते है ंतो इसके जिम्मेवार जस्टिन ट्रूडो होंगे। भारत का विपक्ष भी इस मामले में सरकार के साथ है।
परन्तु कनाडा के प्रमुख विपक्षी पार्टी कंजरवेटिव के नेता पियर पॉलिवेयर ने कहा अगर ट्रूडो के पास सबूत हैं तो उन्हें इसे जनता के सामने पेश करना चाहिए। अब जब उन्होंने जांच आयोग के सामने यह बात कह दी है, तो उन्हें तथ्यों को सार्वजनिक कर देना चाहिए पर वो ऐसा नहीं कर राजनीति कर रहे हैं।
Historical Context: The Evolution of India-Canada Relations
उल्लेखनीय है कि भारत का कनाडा के साथ रिश्ते कभी भी गर्मजोशी से भरे भले न रहे हों लेकिन ये मैत्रीपूर्ण ज़रूर रहे हैं।
यद्यपि कनाडा ने कभी कशमीर के मुद्दे पर जनमत संग्रह की बात कही थी और भारत के परमाणु परीक्षणों का विरोध किया था और हाल के किसान आन्दोलन में भी कनाडा ने भारत सरकार के रवैये की निंदा की।
फिर भी दोनों देशों के बीच व्यापारिक कारोबार चलता रहा और जो अब लगभग 8 बिलियन डॉलर का है ।
कनाडा की 600 से ज़्यादा कंपनियों की भारत में मौजूदगी है और 1000 से ज़्यादा कंपनियां सक्रिय रूप से भारत के साथ कारोबार कर रही हैं। इसके अलावा कनाडा से पेंशन फंड का निवेश भारत में लगभग 75 अरब डॉलर का है।
दूसरी तरफ़ भारतीय कंपनियां भी कनाडा में सक्रिय रूप से आईटी, सॉफ्टवेयर, स्टील, प्राकृतिक संसाधन और बैंकिग सेक्टर में काम कर रही हैं.कनाडा में पढ़ने जाने वाले विदेशी विद्यार्थियों की संख्या में सर्वाधिक 41% भारतीय ही होते हैं।
कनाडा की कुल आबादी लगभग 4 करोड़ आबादी में भारतीय मूल के लोगों की संख्या 4% जिसमें आधे सिख है ंजो कि पंजाब के बाद सर्वाधिक है।
The Khalistan Movement: A Persistent Thorn in Bilateral Relations
भारत और कनाडा के रिश्ते में खटास लाने वाला कोई मुद्दा रहा है तो वो खालिस्तान का मुद्दा है। यद्यपि भारत में यह मुद्दा 1985 में "राजीव लोंगोवाल समझौते" के बाद धीरे धीरे मृतप्राय हो चुका है।
फिर भी विदेशों में जिसमें अमेरिका, इंगलैंड और कनाडा जैसे देशों में भारत से भागे आतंकवादियों ने वहां की नागरिकता हासिल कर अपने संगठन बना कर इस मुद्दे को जिंदा रखा है।
ये सारे देश अभिव्यक्ति की आज़ादी हवाला दे इन पर कोई अंकुश नही ं लगाते। कनाडा का हरदीप सिंह निज्जर ऐसा ही एक व्यक्ति था और अमेरिका का गुरपवंत सिंह पन्नू ऐसा ही व्यक्ति है।
कनाडा में भारत के इन अपराधियों की संख्या सर्वाधिक है।भारत सरकार ने ऐसे 25 आतंकवादियों की सूची कनाडा सरकार को प्रत्यर्पण करने हेतु सौंप रखी है पर प्रत्यर्पण नहीं किया गया है।
इन आतंकवादियों की मंशा भारत के पंजाब प्रांत में खालिस्तान के लिये जनमत संग्रह कराने की है इसलिए माहौल बनाने के लिये ये लोग वहां भारत विरोधी गतिविधि चलाते रहते हैं।
याद रखें कि1985 की भारत के कनिष्क विमान को ऐसे ही लोगों ने बम से उड़ाया था और उस समय भी कनाडा सरकार इसके अपराधियों को बचाने में लगी थी।
गत वर्ष टोरंटो की सड़कों पर ख़ालिस्तानी परेड में भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या की झांकी निकालकर इसका जश्न तक मनाया गया।
हाल के ब्रामप्टन के हिन्दु मंदिर पर हमला ट्रूडो सरकार में इनके बढ़ते मनोबल का ही नतीजा है।
चूंकि कनाडा में हिन्दुओं की संख्या में वृद्धि हो चुकी है और हिन्दु महासभा आरएसएस भी सक्रिय हो चला है फलतः इन खालिस्तानियों का अब विरोध भी शुरू हो गया है।
यही कारण है कि खालिस्तानियों के प्रदर्शन में " Indian hindu go back" के नारे लगने शुरू हो गये हैं।
उल्लेखनीय है हिन्दु कट्टरपंथ और खालिस्तान दोनों का समर्थन करने वालों की संख्या कनाडा में अभी भी काफी कम है। यह बात सर्व धर्म शान्ति जुलुस में उमड़ी भीड़ साबित करती है जिसमें सिखों ने बढ़चढ़ कर भाग लिया। अधिकतर लोग शांति पसंद है।
यह भी ध्यान रहे कि ये सभी अब कनाडा के नागरिक है ं इसलिये इनकी हरकतों से हम भारतीयों को विचलित होने की जरूरत नहीं है।
यदि इन कनाडियन को खालिस्तान चाहिये तो कनाडा में ही बना लें ना! क्षेत्रफल के हिसाब से दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश भी है! दिक्कत क्या है?
Domestic Politics and Vote Bank Dynamics in Canada
भारत के इस कथन में कि ट्रूडो राजनीतिक एजेंडे के तहत कनाडा में खालिस्तान समर्थकों को बढ़ावा दे रहे हैं इसमें कुछ सच्चाई भी है। ट्रूडो लिबरल पार्टी की अल्पमत की सरकार चला रहे हैं और 2025 में कनाडा में चुनाव भी होने हैं। सिखों का साथ इस पार्टी को अधिक मिलता रहा है। यही कारण है कि "सिख मूल्य ही कनाडाई मूल्य हैं' सरीखे बयान भी ट्रूडो देते रहे हैं।
निम्न सदन के 338 सदस्यों में ट्रूडो की लिबरल पार्टी के मात्र 153 सदस्य हैं जिनमें 12 सिख हैं। 33 सदस्यों वाली Block Quebecois पार्टी के अलावा 25 सदस्यों वाली NDP पार्टी का भी समर्थन उसे मिला था जिसके नेता जगमीत सिंह सिख हैं। यद्यपि इस पार्टी ने समर्थन वापस ले लिया है पर भारत के खिलाफ ट्रूडो के एक्शन के वे समर्थन में है।
ऐसे में सिखों की ये सहानुभूति बनी रहे इसलिए ट्रूडो निर्जर की हत्या को तूल देकर भारत पर निशाना लगा रहे हैं ऐसा माना जा सकता है। भारत सरकार ने मान लिया है जबतक ट्रूडो प्रधानमंत्री रहेंगे ये समस्या रहेगी।
वैसे भी मंहगाई और बढ़ते टैक्स के कारण कनाडा में ट्रूडो अलोकप्रिय होते जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि कनाडा में आगामी चुनाव से पहले ही इनकी सत्ता का पतन हो सकता है।
Impact on Diaspora Communities: Rising Tensions Abroad
पर दुखद पहलू ये है अमेरिका सहित विश्व के चार प्रमुख देश ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड जिनका कनाडा के साथ प्रसिद्ध Five eyes वाली इंटेलिजेंस साझा करने वाली संधि है उन्होंने कनाडा के आरोप को गंभीर माना है और भारत से जांच में सहयोग करने को कहा है।
अमेरिका ने तो यहां तक कह दिया कि भारत को जांच में सहयोग करना चाहिए पर वो कनाडा सरकार सहयोग नहीं कर रहा है।
अमेरिका द्वारा ऐसी तल्ख़ी के पीछे उसके देश में इसी समय और इसी तरह का उठा एक अन्य मामला है। अमेरिका ने अमेरिका और कनाडा की दोहरी नागरिकता रखने वाले गुरपवंत सिंह पन्नू की हत्या का षडयंत्र रचने के आरोप में एक भारतीय निखिल गुप्ता को गिरफ्तार कर लिया है।
साथ ही सीआरपीएफ के काम करने वाले कथित R&AW एजेंट विकास यादव को मुख्य अभियुक्त और फरार घोषित कर दिया है।
भारत सरकार ने ये तो मान लिया कि विकास यादव सरकारी कर्मचारी था पर यह कह कर कि अब वो भारत सरकार का कर्मचारी नहीं रहा और किसी अन्य अपराध में गिरफ्तार है, विकास यादव और खुद को सुरक्षित कर लिया है
किन्तु इसी मामले में न्यूयॉर्क की एक अदालत ने डोभाल और भारत की ख़ुफ़िया एजेंसी R&AW के पूर्व प्रमुख समंत गोयल को समन तक कर रखा है। इसलिये ये मामला अभी समाप्त नहीं हुआ है।
क्यों कि वहां की कोर्ट में वहां की सरकार की भी नहीं चलती। ऐसे में आगे क्या निकलेगा यह कहा नही ंजा सकता। कहा तो ये जा रहा है कि इस षडयंत्र के तार कनाडा हत्याकांड से भी जुड़े हैं?
इस बात के खतरे तो हैं कि विश्व में ऐसी धारणा बन जाय जिस तरह की कोशिश अमेरिका में की गई वैसी कनाडा में क्यों नहीं हो सकती? विदेश नीति में ऐसी आक्रमकता जिसमें सफाई ना हो और पकड़े भी जायें वो भद् ही पिटवा सकती है।
भारत इस मामले की जांच में अमेरिका का सहयोग करता रहा क्योंकि एक तो अमेरिका पास पक्के सबूत विकास यादव, निखिल गुप्ता और अमेरिका एजेंट के बीच पैसे के लेनदेन,टेलिफोन रिकार्डिंग और फोटोग्रफ के रुप में मौजूद थे
दूसरे इतने सबूतों के बावजूद अमेरिका ने अभी तक भारत के अधिकारियों पर आरोप भले लगाये पर भारत सरकार पर नहीं।
कनाडा ने ऐसा नहीं किया और सरकार पर सीधा आरोप लगा दिया उसी से जांच में सहयोग की मांग कर रहा है। दरअसल अमेरिका का ऐसा ना करने के पीछे चीन के बढ़ते वर्चस्व को रोकने हेतु भारत की उपयोगिता है।
वरना इतनी समझ तो उसकी होगी ही इस तरह काम अधिकारी अपनी मर्जी से नहीं करते!
Future Prospects: Navigating the Path to Reconciliation
भारत की छवि एक सेकुलर, लोकतांत्रिक एवं अंतर्राष्ट्रीय कानून और दूसरे देश की संप्रभुता का सम्मान करने वाले सभ्य देश की रही है। इसी बात का डंका 75 सालों से विश्व में बजता रहा है।
आज तक किसी देश ने यहां तक घोषित दुश्मन पाकिस्तान और चीन ने भी भारत पर इस तरह के आरोप नहीं लगाया था जैसा कनाडा ने लगाया है।
भारत को अपने प्रधानमंत्री और गृहमंत्री की क्षमता पर विश्वास है वे विपक्ष को साधने में भले ही किसी भी घिनौने हद तक चले जायें पर विदेश में भारत की भद् नहीं पिटवा सकते।
ऐसा मुझे लगता है आपको भी लगता ही होगा?
इसकी सच्चाई तो सबूतों पर निर्भर करती है पर ये सच्चाई तो सामने आ गई है कि विश्व में जिन बातों के लेकर भारत का डंका पहले बजा करता था वो डंका अब नहीं बज रहा है।
भारत को मजबूत राष्ट्र दिखाने के चक्कर में भारत की विदेशनीति और विश्वप्रसिद्ध निष्सठा एवं सर्वधर्म समानता की छवि पर आघात का उदाहरण प्रस्तुत करता यह घटनाक्रम अत्यंत सटीक और तार्किक तरीके से प्रस्तुत किया गया है इस लेख में ।
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जवाब देंहटाएंCongress sarkar me kabhi bhi istarah ka eligation nahi laga tha Bharat per ab istarah ka kand sab ho raha hai
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