खंडन - इस लेख में किये गए व्यंग्य, लेख की रोचकता बनाये रखने के लिये ही किया गया । यदि फिर भी किसी दिल को चोट पहुँचती है तो उसके लिये Indianspolitical.com खेद व्यक्त करता है।
हरियाणा चुनाव परिणाम में की गई गड़बड़ियों से लोग अभी रूबरू हो ही रहे थे कि महाराष्ट्र के चुनाव परिणाम भी आ गए। यहां तो खरे सोने ने तो सारी हदें ही पार कर दी। 99% रिचार्ज यंत्र , मत प्रतिशत में रातों रात अस्वभाविक वृद्धि, लोक सभा चुनाव के बाद के पांच महीने मे लाखों की संख्या में पुराने वोटरों का नाम मतदाता सूची से कट जाना और उससे भी अधिक संख्या में नये वोटरों का नाम जुड़ जाना ये सब के.चु.आ की कारस्तानियां रही। ये बतला रहे हैं कि हरियाणा का परिणाम भ्रष्ट तंत्र और यंत्र से उत्पन्न चमत्कार था तो महाराष्ट्र में जो कुछ हुआ है वो स्वतंत्र और निस्पक्ष चुनाव का अंतिम संस्कार है। सभी अनुमानों के प्रतिकूल बीजेपी गठबंधन को प्रदत्त 232 सीटें और इंडिया गठबंधन को हासिल मात्र 46 सीटें इस बात के जीते जागते सबूत ही हैं इसके अलावा कुछ नहीं। यह महज चुनाव परिणाम नहीं बल्कि एक उद्घोषणा हैं कि भारत में लोकतंत्र सचमुच खतरे में है?
काले धन का उपयोग और चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन की बात तो पुरानी हो गई। इन्हें तो यह आयोग कब का खा पचा गया है। वरना भाषण की सीमा मंगल सूत्र और भैंस खोलने से आगे निकल बेटी उठा लेंगे तक पहुंच जाय और चु़नाव आयोग और उसके सर्वेसर्वा श्री राजीव कुमार हाथ पर हाथ धरे बैठे नहीं रहते।" बटोंगे तो कटोगे" या "एक हैं तो सेफ हैं " जैसे नारे चुनाव जीतने के लिये नहीं बल्कि आयोग के निकम्मेपन को साबित करने के लिये लगाये गये क्यों कि चुनाव पर तो इसका असर पड़ा नहीं। ये असर तो लाडली बहन योजना का भी नहीं है बल्कि ये असर सत्ता के लाडले आयोग और उसके चुनावी मशीन का है । इसे असर कहना काफी नहीं है ये कहर है जो भारतीय लोकतंत्र का टूट पड़ा है। मात्र पांच महीने पहले ही लोकसभा चुनाव में बुरी तरह हारने वाली गठबंधन का 15% मतों के अंतर से जीत को कहर ही तो कहेंगे?
तरीका वही 99% रिचार्ज यंत्र और Extra 2ab अर्थात मतदान समय समाप्ति के बाद मतदान प्रतिशत में अप्रत्याशित वृद्धि ! वो भी एक बार नहीं दो - दो बार। दुबारा इसलिये ताकि अपेक्षित जीत में कोई कसर नहीं रह जाय? उल्लेखनीय है कि 2018 से पहले मतदान खत्म होने के समय के आंकड़े और उस समय तक लाईन में आ खड़े के वोटों के बाद के आंकड़ों में वृद्धि का अंतर तक कभी भी 1% से अधिक नहीं रहा करता था। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि पहले आयोग मतदान के आंकड़े संख्या में देता था अब प्रतिशत में देता है ताकि आम जनता को बढ़े आंकड़े भी कम दिखाई पड़े। महाराष्ट्र के इस चुनाव में यह अंतर 7.83% का हो गया जो मतदाता की संख्या की हिसाब से देंखे तो 76 लाख होते हैं। ये अविश्वसनीय आंकड़े है ं।
5 बजे मत प्रतिशत के आंकड़े 58.22% थी उसी रात 11.30 बढ़कर 65.02% हो गये। 6.80% की वृद्धि यानि लगभग 67 लाख लोगों ने दिन में नहीं रात में वोट डाला। मतगणना होने के पहले आंकड़े दुबारा बढ़कर 66.05% हो गए। यह वृद्धि 1.03% की है मतलब लगभग 9 लाख मतदाताओं ने क्या दूसरे और तीसरे दिन भी वोट डाला ? इतना ही नहीं डाले गये मत की गिनती की जाने लगी वो भी फिर बढ़ गये जिसकी संख्या 5 लाख बतायी जाती है। ये तो कमाल हो गया! ये भी कमाल ही लोकसभा चुनाव के बाद सिर्फ पांच महीने में महाराष्ट्र की मतदाता सूची में इतने वोटर (47 लाख) बढ़ गये जितने लगभग पिछले पांच सालों में बढ़े थे। कमाल तो ये भी हुआ है विपक्ष समर्थक माने जाने लाखों (आरोप 32 लाख का है) वोटरों का नाम मतदाता सूची से कट गया वो भी सिर्फ पांच महीने में? कमाल ही है नांदेड़ की साथ होने वाली लोकसभा उप चुनाव में जीतने वाली कांग्रेस वहां की सभी 6 की 6 विधान सभा सीटे हार गई। ठोकिये माथा!
इन तमाम कमालों के बीच बीजेपी के जीत के लगभग 90 स्ट्राइक रेट अब चौंकाती नहीं! अब ये स्थापित तथ्य है कि जहां हार की जितनी प्रबल आशंका होती है वहां बीजेपी स्ट्राइक रेट उसी अनुपात में बढ़ जाता है और हार की आने वाली आंधी जीत की सूनामी में बदल जाती है। गुजरात हो या मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ हो या राजस्थान ये सिलसिला कई सालों से चला आ रहा है। भले बीजेपी की चुनावी सभाओं में भीड़ नहीं आती पर यंत्र से निकले चुनावी परिणाम में विपक्ष सफाचट हो जाता है। हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनाव में तो यह तक देखा गया कि जनता के रिस्पांस से हताश बीजेपी के बड़े नेताओं ने कैंपेन करना तक छोड़ दिया। ऐसा लगा कि जीत की सारी जिम्मेदारी खरे सोने को ही सौंप दी गई। खरा सोना तो आखिर खरा सोना ठहरा! ऐसा लगता है मानो वो 2024 के लोक सभा चुनाव में हुई चूक की भरपाई कर रहा है।
झारखंड या जम्मू और कशमीर के चुनाव में विपक्ष को मिलने वाली एक्की दुक्की जीत जनता का तंत्र पर भरोसा बचाये रखने के लिये मिली है। सेलेक्टिव जीत और सेलेक्टिव हार का यह खेल यंत्र की रक्षा के लिये खेला जा रहा है। तभी तो जो हरियाणा और महाराष्ट्र में किया गया वो झारखंड या जम्मू कश्मीर में नहीं किया गया। झारखंड में Extra 2ab प्रथम चरण में सामान्य से थोड़ी अधिक 1.79% थी तो बीजेपी को कुल 43 में 17 पर जीत पाई जबकि दूसरे चरण में Extra 2ab नार्मल 0.83% रखी गई तो बीजेपी 38 में सिर्फ 7 जीत पाई। यही हाल जम्मू और कशमीर का रहा। जहां Extra 2ab सामान्य रहा वहां नेशनल कांफ्रेंस जीती जहां सामान्य से अधिक रही वहां से बीजेपी जीत गई।
महाअघाड़ी ने इस नतीजे को मानने से इंकार कर दिया। कांग्रेस ने तो खुलेआम यंत्र और तंत्र के खिलाफ बिगुल बजा दिया और इसके लिये भारत जोड़ो यात्रा की तरह जन आंदोलन की बात छेड़ी है। फर्जी चुनाव से उत्पन्न असंतोष को दबाने के लिये संभल दंगे का सहारा लिया जा रहा है। गोदी मीडिया ने संभल दंगे को इस तरह संभालना शुरू किया मानो महाराष्ट्र चुनाव में कुछ गलत हुआ ही नहीं। पर वो सफल नहीं हो पा रही है। कांग्रेसी क्या करती है वो तो बाद की बात है महाराष्ट्र की जनता ने यंत्र के खिलाफ विरोध करना शुरू कर दिया है। यंत्र के परिणाम से असंतुष्ट गांव मारकडवाड़ी के लोगों के ने खुद के खर्चे से बैलेट पेपर से मोक पोल करने की ठानी तो तंत्र ने वहां कर्फ़्यू लगा कर अपनी इमानदारी की पोल खुद ही खोल दी ।
हारे हुए प्रत्याशी संदिग्ध मशीनों के वीवीपेट पर्ची की गिनती कराना चाहते हैं और इसके लिये पैसे भी जमा करवाये है ं पर चुनाव आयोग का कहना है कि मशीनों के डाटे डिलीट कर मोक पोल करवाये जा सकते हैं। यदि पर्ची गिनवानी है तो कोर्ट का आर्डर लाओ। कोर्ट से उम्मीद इस मामले में रही नहीं। पता नहीं क्यों वह मशीन की रक्षा उसी तरह करता आ रहा है जैसे किस्से कहानियों में खजाने की संदूक रक्षा कुंडली मार कर सर्प किया करता था। जर्मनी में सिर्फ एक व्यक्ति की सुप्रीम कोर्ट में शिकायत पर वोटिंग मशीन हट गई पर यहां तो करोड़ों की शिकायतें भी मायने नहीं रखती। ऐसे में स्वतंत्र और निस्पक्ष चुनाव प्रकिया को स्थापित करने के लिये जन आंदोलन ही रास्ता रह जाता है। यदि भारत में लोकतंत्र को रहना है तो निन्दा रस का पान करने वाले बेशर्म चुनाव आयोग और बकवास यंत्र को जाना ही होगा। कैसे? बस इंतज़ार कीजिये।
Sahi kaha apane abhi is chunav prakriya me ga dbadi ko nahi roka gaya to agaye jakar Bharat ki
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