Politics and the Tradition of Pushing .राजनीति और धक्का देने की परंपरा

खंडन - इस लेख में किये गए व्यंग्य, लेख की रोचकता बनाये रखने के लिये ही किया गया । यदि फिर भी किसी  दिल को चोट पहुँचती है तो उसके लिये  Indianspolitical.com खेद व्यक्त करता है।

राजनीति का अर्थ जब तक शक्ति और सत्ता तक सीमित था है तब से ही इसे पाने की होड़ में प्रतिद्वंद्वी को धक्का देने की परम्परा पूरू दुनिया में रही है।लोकतंत्र और लोककल्याणकारी की धारणा के आगमन के बाद भी धक्का देने की यह परम्परा संविधान की मर्यादा में जारी रही है।अब इसका स्वरूप प्रायःगैरभौतिक(Non-physical) होता है जिसमें धक्का देने का अर्थ नीतिगत चतुराई से विरोधी को मात देना भर है। भारतीय राजनीति में 2014 के बाद से धक्का देने का महत्व बढ़ता गया है और यहां यह संविधान के दायरे में रह कर ही भौतिक ( Physical) भी हो चुका है। जांच ऐजेन्सियो का विपक्षियों पर इस्तेमाल हो या संसद में लोकतंत्र को हताहत करने वाली धक्के की घटना हो या फिर निर्दोष लोगों की जान लेने वाला प्रयागराज का कुंभ का धक्केमार आयोजन सब इसके उदाहरण है ं। 

Come on friend don't push me

जिसे देखो वो धक्का दे भी रहा है और धक्का खाने की शिकायत भी कर रहा है। ऐसा लगता है  राजनीति नहीं फिल्म "हाथी मेरा साथी" चल रही हो "चल यार धक्का मार , बंद है लोकतंत्र की कार।"धक्के से कथित विश्व गुरु भी बच नही  सके हैं। बहुमत ना मिलने के धक्के ने उन्हें अजैविक अवतार से पुनः जैविक आदमी बना दिया जो गलती भी करता है।  इसके अलावा पूर्व प्रधानमंत्री डा ० मनमोहन सिंह के निधन से देश, दुनिया के अलावा इन्हें भी धक्का लगा। क्योंकि डा० सिंह के सदगुण और राष्ट्र के लिये हासिल उपलब्धियां की मीडिया जगत में ( गोदी मीडिया छोड़ कर) नवीन चर्चा इन्हें लगातार बौना  साबित कर रही थी । फिर प्रिय दोस्त अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा शपथग्रहण में ना बुलाने से लगे एक और धक्के ने तो मर्माहत ही कर दिया है। "दोस्त दोस्त ना रहा, प्यार प्यार ना रहा, ऐ जिंदगी हमें तेरा ऐतबार ना रहा। "अब तो इस दोस्त ने भारतीयों को हथकड़ियों में जकड़ कर अमेरिका से धक्का मार कर वापस भेजना भी शुरू कर दिया है। हे ईश्वर, 56 इंच धक्के को बर्दाश्त करने की हिम्मत दे। 

 


केन्द्रीय चुनाव आयोग को  इस बात से धक्का लगा कि 2024 के लोकसभा चुनाव में अपने Extra 2ab के जोरदार धक्के  से भी उसे 400 पार नहीं पहुंचा सकी जिसने उसे नियुक्त किया। वहीं कांग्रेस पार्टी को हरियाणा और महाराष्ट्र  चुनाव परिणाम में धक्के खाने के बाद यह ज्ञान प्राप्त हुआ कि वो हार नहीं रही है बल्कि उसे तंत्र और यंत्र के धक्के से हराया जा रहा है। विपक्ष की अन्य तमाम पार्टियों का अस्तित्व ईडी, सीबीआई, इनकमटैक्स के लगातार धक्के से संकट मे ं पड़ा हुआ है। ऐसा भी नहीं है धक्के सिर्फ विपक्ष को लग रहे हैं बीजेपी को भी लग रहे हैं।  

BJP also feels the shock

बीजेपी को तो संसद में श्री राहुल गांधी को देखने मात्र से ही धक्कापन महसूस होने लगता है। उनके आसन्न भाषण की सच्चाई और कड़वापन बेचैनी बढ़ा जाती है। ऐसे में बीजेपी के समझदार और ननबॉयोलोजिकल टाईप के नेता सदन से पहले ही खिसक लेते हैं । उनके भाषण में , अमेरिकी से वारंट की उपलब्धि हासिल अडानी का नाम ज्यों ही आता है बीजेपी सहित सम्पूर्ण सत्तापक्ष में हड़कंप मच जाता है चीखें निकलने लगती हैं स्पीकर का  सिंहासन डोलने लगता है, भृकुटी तन जाती है,  माईक बंद कर दी जाती है, भाषण के अडानी अंश को संसदीय कारवाई से  निकाल दिया जाता है। देशद्रोही, गद्दार, गुंडा, जार्ज सोरोस का दलाल जैसे शब्दों के बदबूदार पटाखे छूटने लगते हैं। किसी बकवास केस में फिर से संसदीय सदस्यता छीने जाने की चर्चा गोदी मीडिया में चलने लगती है। इतना सबकुछ! सिर्फ अडानी का नाम लेने पर! इतना धक्का क्यों लगता है भाई  ?  

The Home Minister felt shocked by his own tongue

जबान फिसलने की कहावत तो सुनी थी पर जबान धक्का भी देता है ऐसा संसद में गृहमंत्री ने बाबा साहब अंबेडकर पर अपने भाषण से साबित कर दिया। "आंबेडकर, आंबेडकर, आंबेडकर इतना नाम अगर भगवान का लेते सात जन्मों तक स्वर्ग मिल जाता। " अपनी जबान की इस धक्के ने गृहमंत्री के राजनैतिक जीवन की सबसे बड़ी मुश्किल खड़ी कर दी है। इस भाषण से सम्पूर्ण विपक्ष को भी सत्ता को धक्का देने का ऐसा मौका लगा कि वे गृहमंत्री से माफी फिर इस्तीफे की मांग को लेकर अड़ गये और बापू की प्रतिमा से शान्ति पूर्ण प्रदर्शन कर संसद में जाने का निर्णय किया। 


बीजेपी का मंत्री इस्तीफा दे ऐसा नहीं होता बीजेपी के केन्द्रीय मंत्री श्री राजनाथ सिंह बहुत पहले ही बता चुके हैं । रही बात माफी मांगने की उसकी भी परम्परा बीजेपी में नहीं रही। अधिक से अधिक तपस्या में कमी की ही उम्मीद कर सकते हैं। रही नैतिकता की बात, तो वो भले ही सनातनी परम्परा की विशेषता हो  पर बीजेपी का हिन्दुत्व इसे दूर से भी हाथ भी नहीं लगाता। 

Pushing  in parliament too

मणिपुर में असफलता के झंडे गाड़ चुके अपने गृहमंत्री के खिलाफ विपक्ष का यह तेवर बीजेपी को बर्दाश्त नहीं हुआ। उसने गृहमंत्री के नैसर्गिक गुणों के अनुकूल विपक्ष के शांतिपूर्ण मार्च को वर्जित डंडे वाले बैनर लेकर भौतिक रूप से रोकने का प्रयास किया। इसी उपक्रम में बीजेपी के दो सांसद पता नहीं कैसे  गिर गए? अत्यंत मामूली चोट को गंभीर बता कर उन्हें आईसीयू में भर्ती कर आरोप श्री राहुल गाँधी पर मढ़ दिया। उनपर जानलेवा हमला करने की थाने में  F. I. R  भी लिखवा दी। खैर दुनिया ने देखा कि कैसे आईसीयू में भर्ती मरीज प्रेस को इंटरव्यू देता है और मय कैमरे से प्रधानमंत्री टेलीफोन पर उसका हाल चाल लेते हैं। ऐसी आईसीयू, ऐसे मरीज और ऐसे शुभचिंतक प्रधानमंत्री दुनिया में और कहां मिलेंगे?  

CCTV footage will give a push to the system and machine

कांग्रेस सहित विपक्ष ने कहा संसद का सीसीटीवी फुटेज दिखा दो पता चल जायेगा किसने, किसको और कैसे धक्का मारा? पर चंडीगढ़ मेयर इलेक्शन के बाद  तंत्र ने ये सबक ले लिया है कि सीसीटीवी लगाने के लिये होती है फुटेज दिखाने के लिये नहीं। अगर फुटेज दिखाया तो चंडीगढ़ के अनिल मसिह की तरह मुंह दिखाने लायक नहीं बचेगें। यही डर केन्द्रीय चुनाव आयोग को भी है। पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने अपने आदेश में हरियाणा चुनाव की समस्त 90 सीटों की सीसीटीवी वीडियो याचिकाकर्ता को उपलब्ध कराने को कह केन्द्रीय चुनाव आयोग जबरदस्त धक्का पहुंचाया है।  चुनाव आयोग तैयार नहीं है । उसका कहना है कि इसे देखने में  3600 साल लग जायेंगे। भाई साहब! ये उनकी समस्या है आप वीडियो तो दे दो  ! क्या पता उनका काम 36 सेकेंड के वीडियो देखने से ही हो जाय ? फुटेज तो नहीं ही दिया है बल्कि मदद के लिये विधि मंत्रालय ने चुनाव फुटेज नहीं दिये जा सकते ऐसा संशोधन चुनाव नियमावली में ही कर दिया। 

The Supreme Court is also troubled by the shock

यह मामला सुप्रीम कोर्ट में गया है जिसकी छवि सत्ता लोलुप एवं ईश्वरीय प्रेरणा से निर्णय लेने वाले न्यायाधीशों के फैसलों से कई धक्के पहले से ही खा चुकी है। भारत का लोकतंत्र यदि अगर निरंकुश तंत्र की ओर चल पड़ा है तो उसके रास्ते को सुगम बनाने में निश्चित रूपेण ऐसे न्यायाधीशों का  अप्रतिम योगदान है। समस्या ये है कि चुनाव आयोग की घपलेबाजी से संबंधित कई मामले अभी भी इसी सुप्रीम कोर्ट में लम्बित है ं। देखना है इनके फैसले से भ्रष्ट तंत्र को धक्का लगता है कि सुप्रीम कोर्ट की खुद की छवि को? 

The public was also shocked

भारतीय जनता को धक्का जनमत की बजाय यंत्रमत से सरकार चुने जाने से लगातार लग रहा है मुश्किल ये है ये बात बहुतों को समझ में तब आयेगी जब इसपर सुप्रीम कोर्ट मुहर लगायेगा पर जिसने अभी तक इसे क्लीन चिट दे रखा है। उन्हें सेलेक्टिव जीत हार से द्विविधा में रखा जा रहा है।वास्तविकता ये है कि लोकतंत्र, तंत्र और यंत्र के पूरी तरह गिरफ्त में आ चुका है। तभी तो जो जनता द्वारा खदेड़े गए हैं वो Extra 2ab की महिमा से जीत के आ रहे हैं। इतना ही नहीं जनमानस को साम्प्रदायिकता का जहर चटा कर भ्रमजाल में रख देश के सेकुलरिज्म के साथ जनता के वास्तविक मुद्दे को भी धक्का पहुंचाया जा रहा है। लोकतंत्र के बचने की उम्मीद इस भ्रमजाल के टूटने पर निर्भर करती है।  


Kumbh tragedy a setback to Sanatan

धक्केमार राजनीति से प्रयागराज का कुंभ भी प्रभावित होने से नहीं रह सका। भारत की सनातनी परम्परा में कुंभ स्नान का विशेष महत्व है जिसका आयोजन  भारत के चार शहरों में अलगअलग समय पर 12 वर्षों के अन्तराल होता रहता है। इसका संपादन साधु संतों और उनके अखाड़ों के द्वारा आपसी समझ और परम्परागत तरीके से हुआ करता है। सरकार की भूमिका वहां आने वाले श्रध्दालुओं को सुविधा, सहयोग और सुरक्षा प्रदान करने तक सीमित होती है। इस बार के प्रयागराज कुंभ के आयोजन को सनातनियों की बजाय कथित हिन्दुत्व ने अपने हाथ में ले लिया। परिणामस्वरूप यह पवित्र आयोजन नेताओं की महिमा मंडन, वीआईपी का चरण वंदन, मुस्लिम विरोध की नकारात्मक और क्षुद्र सोच पर टिके कथित हिन्दुत्व के प्रचार प्रसार का  नया अखाड़ा बन गया। सनातनी संत और अखाड़े पार्श्व में चले गए साथ ही करोड़ों सनातनी श्रध्दालु भी।


जो व्यक्ति प्रशासन के नाम पर सिर्फ बुलडोजर चलवाना जानता हो उसने करोड़ों लोगों की आस्था के कुंभ आयोजन का भार ले लिया। वीआईपी का सत्कार और खुद को आगामी प्रधानमंत्री की रेस में आगे निकलने की ललक ने कुंभ की पवित्रता पर धक्का लगा दिया। आम जनता और श्रध्दालु की सुरक्षा उपेक्षित हो गई। परिणाम वो हुआ जिसकी आशंका और परिस्थिति कई दिनों से बनती जा रही थी। मौनी अमावस्या के शाही स्नान के दिन संगम घाट के अलावा कई जगहों पर मची भगदड़ में सैकड़ों की संख्या में सनातनी श्रध्दालुओं की जान चली गई । बंटोंगे तो कटोगे की बात करने वाले बतलाये तो  सही श्रध्दालुओं को वीआईपी और जनसाधारण में किसने बांटा और किसने किसे काटा? 80 और 20 का तात्पर्य यही था कि 20% वीआईपी पाप धोयेंगे 80% के लिये कथित मोक्ष प्राप्त करने का अवसर होगा? हिन्दुत्व के ठेकेदार बाबा ने ऐसे ही नहीं कहा जो यहां मरे हैं उन्हें मोक्ष मिलेगा। हे बाबा ठगेश्वर यदि ऐसा है तो आप क्यों मोह माया के पचड़े में पड़े हैं  आप भी ऐसे मोक्ष पा लेते हैं। चूक कैसे गए? बात करते हैं। सच है सनातन को किसी से वास्तविक खतरा है तो वो कथित हिन्दुत्व से ही है।

Hoping against all hopes

बदइंतजामी के कुंभ में सनातन की रोशनी की तस्वीर भी सामने आई हैं। मस्जिदों, इमामबाड़े और मदरसों के दरवाजे कुंभ के श्रध्दालओं के लिये खुल गए हैं। यहां आराम करने की जगह , बिस्तर  और भोजन सब मिल रहा है। आप इन्हें हिन्दु और मुसलमान के रूप में भले ही देखें पर ये सब सनातनी ही हैं। जहां मानवता, प्रेम और इंसानियत है वहां सनातन है। सनातन का मतलब ही सदैव है। जब तक इंसानियत है सनातन है। इंसानियत ही सनातन है। मिथिला में  कहावत है "बड़ बड़ गेलाह त मोछ वाला ऐलाह"। सनातन इससे भी निबट लेगा। यही वो ताकत जो साम्प्रदायिकता को धक्के दे भ्रमजाल को तोड़ फेंकेगी। रही  कथित हिन्दुत्व की बात है वो क्षणिक है ,भूत है जब सत्ता से उतरेंगे तो वो भी उतर जायेगा।


 


 

 


 



 














Parimal

Most non -offendable sarcastic human alive! Post Graduate in Political Science. Stay tuned for Unbiased Articles on Indian Politics.

1 टिप्पणियाँ

और नया पुराने