खंडन - इस लेख में किये गए व्यंग्य, लेख की रोचकता बनाये रखने के लिये ही किया गया । यदि फिर भी किसी दिल को चोट पहुँचती है तो उसके लिये Indianspolitical.com खेद व्यक्त करता है।
भारत के लिये पिछला एक पखवाड़ा कुछ अच्छा नहीं रहा है। कुंभ विवाद हो याचुनावी हेरफेर वाला दिल्ली चुनाव हो या भारतीय विदेश नीति की नूतन सच्चाई। हर तरफ से आने वाली खबरें राजनीति में भूचाल पैदा करने वाली हैं। सर्वप्रथम प्रयागराज के पवित्र कुम्भ की ही बात करें जिसे लेकर दुखदायी खबरों का सिलसिला जारी है।
कुंभ मेला विवाद
फिर चाहे वो 29 जनवरी के प्रयागराज हादसे के बाद पुनः15 फरवरी 2025 को दिल्ली रेलवे स्टेशन पर हुई भगदड़ में श्रद्धालुओं की मौत की दर्दनाक घटना हो या संगम के पानी का मलमूत्र वाले बैक्टीरिया से प्रदूषित होने की केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट की बदबू हो या फिर कुम्भ में स्नान और कपड़े बदलती महिलाओं की तस्वीरें खींच सोशल मीडिया पर बेचने की शर्मनाक खबर। ये सभी हृदय को विचलित करने वाली है।
प्रशासन की लापरवाही
सवाल है कि दिल्ली रेलवे स्टेशन पर मची इतनी बड़ी संख्या में लोगों की भीड़ को नियंत्रित करने की योजना कहां थी? क्या प्रशासन ने सुरक्षा मानकों का पालन किया?
खतरनाक बैक्टीरिया से दूषित गंगा का पानी को क्या सरकार ने इसे साफ करने के लिए ठोस कदम उठाए?
कुंभ में महिलाओं की तस्वीरें चोरी-छिपे खींचकर ऑनलाइन बेचना जैसे बेहद शर्मनाक अपराधों पर कब और कैसे लगेगी रोक? इन सवालों का जवाब कौन देगा? पता नहीं।
मौत के आंकड़ों और खबरों को दबाने की लगातार कोशिश आश्चर्यजनक है। X से दिल्ली भगदड़ की तसवीरों को हटाने को कहा जा रहा है। दोष जनता और उसकी भीड़ को दिया जा रहा है।
सच में दोष जनता का ही है क्योंकि सही हो या गलत माना तो यही जाता है लोकतंत्र में सरकार जनता ही चुनती है।
उसी सरकार ने 144 वर्षीय कुम्भ का प्रोपेगेंडा चला आस्था का उन्माद पैदा कर ऐसी भीड़ जुटाई जिसे संभालने लायक ना तो उसकी क्षमता थी और ना ही प्राथमिकता। चुनावी माहौल में पवित्र कुंभ को "ब्रांड" बनाने का प्रयास क्या जनसुरक्षा और स्वच्छता की कीमत पर होना चाहिए?
दिल्ली चुनाव – निष्पक्षता पर सवाल
इसी बीच दिल्ली चुनाव और उसके परिणाम भी आ गये जो सत्ता समर्पित चुनाव आयोग की निष्ठा के अनुकूल रहे। 70 सीटों पर 48 सीटें जीत कर बीजेपी ने 27 वर्षों बाद दिल्ली में पुनः सरकार बना लिया। आप 22 सीटों पर रह गई जबकि कांग्रेस लगातार तीसरी बार अपना खाता नहीं खोल पाई यद्यपि उसके मतों के प्रतिशत में सुधार हुआ।
पिछले कई चुनावों से भारतीय चुनाव आयोग, 99% रिचार्ज यंत्र, बढ़ाये गये मतदान प्रतिशत, काटे गए मतदाता, जोड़े गए मतदाता, यंत्र मत और वीवीपेट पर्ची से मिलान और सीसीटीवी फुटेज दिखाने से इंकार जैसे अनेक अनुत्तरित सवालों से घिरी चुनावी प्रक्रिया में अधिक विद्वतापूर्ण राजनीतिक विश्लेषण की जरूरत रही नहीं। दिल्ली चुनाव में भी वोटर लिस्ट में जोड़ और घटाव का खेल खुल कर खेला गया।
ऐसे में यदि आपको समझाया जा रहा है कि केजरीवाल की आप को कांग्रेस ने हराया है तो बीजेपी को किसने जिताया है ?जनता ने या चुनाव आयोग ने?
वो आप समझ ही गये होंगे? सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई की तारीख लगी हो फिर भी एक दिन पहले नये मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति की सरकार की हड़बड़ी ने तो निश्चित ही समझा दिया होगा।
यदि नहीं तो बीजेपी के ही बड़े नेता आर के सिंह की सुन लें जो चीख चीख कर बता रहे हैं कि बीजेपी ना केवल विपक्ष को हराने के लिये बल्कि अपनी पार्टी के नेता को भी हराने के लिये भी ना जाने कौन कौन सा काम करती है?
"डोनाल्ड ट्रंप का दावा: भारत में चुनावी प्रक्रिया पर गंभीर बवाल"
यदि फिर भी दिल है कि मानता नहीं तो माई डियर फ्रेंड अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ही सुन ले जिनका कहना है चुनाव का सही तरीका वैलेट पेपर ही है यंत्र नहीं।
इतना ही नहीं ये भी सनसनीखेज खुलासा किया कि अमेरिका ने उनके माई डियर फ्रेंड श्री नरेन्द्र मोदी को 21 मीलियन डालर चुनाव वोटर टर्नआउट बढ़ाने के लिये दिया।
दोस्ती इम्तिहान लेती है, दोस्तों की जान लेती है।
कौन सा वोटर टर्नआउट! शाम 5 बजे के बाद बढ़ने वाला Extra 2ab या मतदान के पहले वोटर लिस्ट वाला ? यह तो बतलाया नहीं! ट्रंप झूठ बोल रहे हैं या सच इसका जवाब तो देना ही देना चाहिए।
पर यह जवाब चुनाव आयोग तो देगा नहीं। क्योंकि नये वाले मुख्य चुनाव आयुक्त को शायरी आती है कि नहीं वो पता नहीं! लेकिन माई डियर फ्रेंड तो हैं! नहीं कुछ तो "लोकतांत्रिक देश और वसुधैव कुटुम्बकम" वाला ही सही, जवाब तो दें!
बीजेपी के ही वरिष्ठ नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने तो धमकी तक दे डाली है कि अगर भारतीय माई डियर फ्रेंड माकूल जवाब या मान हानि का मुकदमा ट्ंंप पर नहीं करते तो वे घूस लेने का आपराधिक मुकदमा उन पर ही कर देंगे।
"सुप्रीम कोर्ट और चुनावी धांधली: न्याय की जगह तारीख पर तारीख"
रही सुप्रीम कोर्ट की बात तो सबसे दुखदायी खबरें तो यहां से आती है। जिसपर संविधान की रक्षा का भार है उसे लोकतंत्र के लिये सबसे आवश्यक निस्पक्ष चुनाव आयोग की नियुक्ति और चुनाव में हो रही धांधली के मामले भी गैर जरूरी लगते हैं।
सरकार की, बिना चीफ जस्टिस के चुनाव आयोग की नियुक्ति के इस मनमाने कानून के खिलाफ मामला 2023 ही से सुप्रीम कोर्ट में गया हुआ है । निर्णय की बजाय इसे तारीख पे तारीख ही मिल रही है। इसी कानून के अनुसार नये मुख्य चुनाव आयोग की नियुक्ति भी कर ली गई।
इसी बीच 2024 का आम चुनाव सहित हरियाणा, महाराष्ट्र, जम्मू और कश्मीर, झारखंड के चुनाव भी निकल गये। इन सभी चुनावों में तमाम तरह की धांधलिया की गई हैं और ये मामले देश कई न्यायालय में चल रहे हैं।
लोकतंत्र में जो न्यायपालिका, स्वतंत्र और निस्पक्ष चुनाव सुनिश्चित नहीं करवा सकती वो संविधान की रक्षा के संवैधानिक दायित्व का निर्वाह करने का दावा कैसे कर सकती है?
भारत-अमेरिका संबंध – दबाव में विदेश नीति?
सबसे अपमानजनक घटना अमेरिका द्वारा अमेरिकी सैन्य विमान में हथकड़ी और बेड़ियों में जकड़ कर अवैध प्रवासी भारतीयों को भारत में भेजने का सिलसिला है। इससे भी अधिक दुखद और आश्चर्य बिना किसी नानुकूर से भारत सरकार का स्वीकार कर लेना है।
इस मामले में हमसे अधिक हिम्मत कोलंबिया और मेक्सिको जैसे छोटे देशों ने दिखलाई। इन देशों ने अमेरिकी विमानों को अपने देश में उतरने नहीं दिया और खुद के विमान भेज अपने नागरिकों को ससम्मान वापस लाया।
आश्चर्य है 1990 में स्व० वी पी सिंह की सरकार के समय कुवैत में फंसे 1 लाख 70 हजार भारतीयों को एयरलिफ्ट करने का विश्व रिकॉर्ड बनाने वाला भारत आज कथित विश्व गुरु के समय में चंद हजार भारतीयों को लाने में असहाय क्यों दिख रहा है?
मोदी की अमेरिका यात्रा: समझौते या समर्पण?
इसके बावजूद भारत के प्रधानमंत्री का बिन बुलाये मिलने का अनुमति लेकर अमेरिका की यात्रा करना हैरान करने वाला है। उन्हें रिसीव करने अमेरिकी राष्ट्रपति का एयरपोर्ट तक ना आना तो भारत के तीसरे बार बने प्रधानमंत्री के लिये नई बात नहीं।
ना ही टेलिप्राम्टर बंद होने पर बोलती बंद हो जाने की घटना ही पहली बार घटी है। पर प्रधानमंत्री के सामने भारत को टैरिफ किंग बतलाते हुए भारत पर टैक्स को टीट फॉर टैट की घोषणा करना पर उस पर भी भारतीय प्रधानमंत्री का मुस्कुराते रहना वो नई बात रही।
खबर है कि भारत ने अमेरिका से पेट्रोल और गैस और अधिक खरीदने का समझौता कर लिया है ताकि ट्रेड डेफिसिट जो अभी भारत के पक्ष में है उसे कम किया जा सके। रूस और इरान से सस्ते दाम पर पेट्रोल और गैस भारत को मिल रहे हैं ऐसे में अमेरिका से उसे महंगे दामों पर लेने का कोई तुक नहीं बैठता।
खबर तो ये भी है भारत ने अमेरिका से आने वाली तमाम चीजों पर आयात शुल्क कम कर दिया है।
इतना ही नहीं ये भी खबर है कि अमेरिका ने भारत को F 35 नामक लड़ाकू विमान देने का प्रस्ताव दिया है जिसे लेने पर भारत विचार भी कर रहा है। उल्लेखनीय है कि इस विमान को अमेरिका के ही एलेन मस्क कबाड़ बतला चुके हैं। भारत को इस़़ महंगे विमान लेने की ना तो जरूरत है ना ही हैसियत। रूसी लड़ाकू विमान SU 57 अच्छा विकल्प है जो सस्ता भी है और तकनीकी हस्तान्तरण की सुविधा भी दे सकता है।
भारत प्रधानमंत्री का अमेरिका के प्रति सहमा सहमा सा ये रवैया समझ में नहीं आता। कभी भारत की प्रधानमंत्री स्व० इन्दिरा गांधी हुआ करती थी तब भारत ने अमेरिका के सातवें बेड़े भेजने की धमकी की परवाह किये बिना पाकिस्तान को दो टुकड़ों में बांट दिया था।
ऐसे ही स्व० अटल बिहारी वाजपेयी जब प्रधानमंत्री थे तब भारत ने पोखरण में दूसरा परमाणु परीक्षण कर सबको अचम्भित कर दिया था और अमेरिका सहित तमाम देश सर पीटते रह गये थे।
ऐसे में वर्तमान प्रधानमंत्री की इस बुजदिली का कारण नादानी हो या अडानी हतप्रभ करने वाली है। डोनाल्ड ट्रंप के MAGA(Make America Great Again) से तुक मिलाते MIGA(Make India Great Again) और MAGA+MIGA=MEGA का फार्मूला हास्यास्पद है।
यह और कुछ नहीं (a+b)2 में Exta 2ab आता कहां से जैसे कनाडा में किये गये बकवास का अमेरिका में किया गया विस्तार(एक्सटेंशन) है।
साधारण सी बात चीन के सामने "चुं चुं" और अमेरिका के सामने "में में " वाली विदेश नीति भारत का ना तो सम्मान बढ़ाने वाली हैं और ना ही इससे भारत का आर्थिक रूप से भला ही होने वाला है।