"वक्फ संशोधन अधिनियम 2025: मुस्लिम समुदाय में विवाद और चिंता के प्रमुख कारण" (Waqf Amendment Act 2025: Key Controversies and Concerns Within the Muslim Community)

खंडन - इस लेख में किये गए व्यंग्य, लेख की रोचकता बनाये रखने के लिये ही किया गया । यदि फिर भी किसी  दिल को चोट पहुँचती है तो उसके लिये  Indianspolitical.com खेद व्यक्त करता है।


बीजेपी की मुसलमानों के प्रति प्रेम जगजाहिर है और उनकी पूरी राजनीति  मुस्लिम के साथ इसी कथित प्रेम संबंध पर टिकी रहती है।

मुसलमानों को घुसपैठिया समझने और उन्हें कपड़ों और पंचर बनाने से पहचानने वाले, उनके हजारों घर को बुलडोज करने वाले,

मॉब लींचिग और लवजिहाद की नूतन अवधारणा विकसित करने वाले ,मुस्लिम औरत के बलात्कारियों की बलाइयां लेने वाले 

और हिन्दु धार्मिक उत्सवों में मस्जिदों के आगे नृत्य करने और उस पर भगवा लहराने का नवीन कर्मकांड जोड़नेवालों का, 

मुस्लिम समुदाय के प्रति इस अद्भुत प्रेम की नूतन अभिव्यक्ति नये वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 के रूप में हुई है।

पर मुस्लिम समुदाय के लिए प्रेम की इस नूतन अभिव्यक्ति की बजाय वक्फ की सम्पत्ति पर नियंत्रण और हड़पने की साजिश समझता है वहीं विपक्ष इसे  बीजेपी की साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण का नया औजार। 

जबकि  सरकार के अनुसार इस अधिनियम का उद्देश्य वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता और दक्षता लाना  है ताकि मुसलमानों का कल्याण हो सके। मामला सुप्रीम कोर्ट में जा पहुंचा है। 

वक्फ क्या है? 

वक्फ कानून को समझने से पहले वक्फ के बारे में जानना जरूरी हो जाता है।  वक्फ एक पुरानी इस्लामी परंपरा है और भारत में दिल्ली सल्तनत के काल से ही इसकी शुरुआत हो चुकी थी।

जिसमें कोई व्यक्ति अपनी चल या अचल संपत्ति को धार्मिक, परोपकारी या जनकल्याण के उद्देश्य से स्थायी रूप से अल्लाह को समर्पित करता है। इस दान को वक्फ कहा जाता है, और इसे करने वाले व्यक्ति को वकिफ़ कहते हैं। 

वक्फ संपत्तियों का प्रबंधन 1913 के बाद से वक्फ बोर्ड द्वारा किया जाता है।

स्वतंत्र भारत में 1954 में वक्फ बोर्ड से संबंधित कानून बने।, 1964 में केन्द्रीय वक्फ परिषद की स्थापना राज्यों के वक्फ बोर्ड पर निगरानी के लिये की गई।

फिर 1995 में वक्फ अधिनियम आया जिसने वक्फ सम्पत्ति संबंधी विवाद का समाधान के लिये वक्फ ट्रिब्यूनल की स्थापना की। 

उल्लेखनीय है कि वक्फ बोर्डों में सारी नियुक्तियों सरकार ही करती हैं राज्य वक्फ बोर्ड में राज्य सरकार और केन्द्रीय वक्फ परिषद में केन्द्र सरकार। 

इनमें सभी सदस्य मुस्लिम ही होते हैं जो विधायक, सांसद, वकील, इस्लाम के विद्वान, सरकार के अधिकारी तथा वक्फ सम्पत्ति की देखरेख करने वाले स्थानीय मुतवल्ली श्रेणी के लोग होते हैं।

वक्फ ट्रिब्यूनल की नियुक्ति भी सरकार ही करती है पर इसमें सभी के मुस्लिम होने की अनिवार्यता नहीं है। 

तीन सदस्यों की इस ट्रिब्यूनल में एक प्रथम श्रेणी का न्यायाधीश, एक प्रशासनिक अधिकारी तथा एक मुस्लिम कानून को जानने वाला विद्वान होता है और इस ट्रिब्यूनल के फैसले अंतिम होते हैं। 


वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 जिसे वक्फ अधिनियम, 1995 में संशोधन के रूप में पेश किया गया है के प्रमुख विवादास्पद प्रावधान को सुप्रीम कोर्ट गंभीरता से ले रही है।


प्रमुख विवादास्पद प्रावधान


1. गैर-मुस्लिमों को वक्फ बोर्ड और परिषद में शामिल करना


संशोधन में केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिम सदस्यों और सांसदों/विधायकों को शामिल करने का प्रावधान है।

सुप्रीम कोर्ट ने भी पूछा है केंद्रीय वक्फ परिषद के 22 में सिर्फ 10 मुसलमानों को जगह क्यों दी गई है?गैर मुस्लिमो ं को शामिल ही क्यों  किया गया? सरकार को अभी तक जवाब ना सूझा। 

विरोधियों का तर्क तो ये हैं कि यह मुस्लिम धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप है और संविधान के अनुच्छेद 26 (धार्मिक संस्थानों के प्रबंधन का अधिकार) का उल्लंघन करता है।

 वे पूछते हैं कि क्या हिंदू मंदिरों के बोर्ड में गैर-हिंदुओं को शामिल किया जाएगा।​

2. 'वक्फ बाय यूजर' की अवधारणा को हटाना

पुराने कानून में, लंबे समय तक किसी संपत्ति का वक्फ के रूप में उपयोग इसे वक्फ संपत्ति मानने के लिए पर्याप्त था। नए संशोधन में इसे हटा दिया गया है, और अब संपत्ति को वक्फ के रूप में मान्यता के लिए औपचारिक दस्तावेज (वक्फनामा) की आवश्यकता होगी।

सुप्रीम कोर्ट ने इस बदलाव पर चिंता जताई है, क्योंकि इससे ऐतिहासिक धार्मिक संपत्तियों की स्थिति समाप्त हो सकती है। ​

जहां 40 साल पुरानी यूनिवर्सिटी की डिग्री दिखाने में नानी मरती हो  वहां 300 सालों के पहले का दस्तावेज की मांग करना सही नहीं हो सकता। 

3. जिला कलेक्टर को स्वामित्व निर्धारण का अधिकार

संशोधन में जिला कलेक्टरों को वक्फ संपत्तियों के स्वामित्व और उनके वक्फ चरित्र को निर्धारित करने की शक्ति दी गई है। 

अगर कोई संपत्ति सरकारी या निजी दावे के तहत हो, तो कलेक्टर इसका फैसला करेंगे। 

आलोचकों का मानना है कि यह सरकारी हस्तक्षेप को बढ़ावा देगा और वक्फ संपत्तियों को सरकारी या निजी हाथों में जाने का रास्ता खोलेगा।​ क्योंकि कलक्टर सरकार की इच्छा के विरुद्ध जा नहीं सकते? 

4. वक्फ बोर्ड की शक्तियों में कटौती और सरकारी नियंत्रण

नए कानून में वक्फ बोर्ड की स्वायत्तता को कम किया गया है, और कई मामलों में राज्य सरकार या कलेक्टर की मंजूरी अनिवार्य कर दी गई है। विपक्ष और मुस्लिम संगठनों का कहना है कि यह वक्फ संस्थानों की स्वतंत्रता को खत्म करता है और सरकार को वक्फ संपत्तियों पर अनुचित नियंत्रण देता है।​

5. महिलाओं और पसमांदा मुस्लिमों के लिए आरक्षण

संशोधन में वक्फ बोर्ड में महिलाओं और पसमांदा मुस्लिमों के लिए आरक्षण का प्रावधान है। हालांकि यह प्रावधान समावेशी लगता है, पर विरोधियों का कहना है कि यह केवल दिखावटी कदम है, जिसका असल मकसद मुस्लिम समुदाय के बीच विभाजन पैदा करना और कानून को प्रगतिशील दिखाना है।​

6. संपत्ति सर्वे और डिजिटलीकरण

सभी वक्फ संपत्तियों का डिजिटल रिकॉर्ड बनाना और उनके उपयोग की निगरानी करना अनिवार्य किया गया है। हालांकि पारदर्शिता के लिए यह कदम सकारात्मक माना जा सकता है, कुछ मुस्लिम संगठनों का कहना है कि यह प्रक्रिया वक्फ संपत्तियों को विवादित करने और उनके स्वामित्व को चुनौती देने का आधार बन सकती है, खासकर उन संपत्तियों के लिए जिनके पास औपचारिक दस्तावेज नहीं हैं।​

7. मस्जिदों को वक्फ संपत्ति से बाहर करने का डर

इस कानून का विरोध करने वालों को यह भी लगता है कि इसमें मस्जिदों को , वक्फ संपत्ति की परिभाषा से बाहर करने की संभावना है, जिससे ऐतिहासिक मस्जिदों पर स्वामित्व विवाद बढ़ सकता है। 

यह मुस्लिम समुदाय के बीच डर पैदा कर रहा है कि ऐसी मस्जिदें, जो वक्फ संपत्ति के रूप में दर्ज हैं, सरकारी या निजी दावों के तहत आ सकती हैं।​

अतिरिक्त विवाद के बिंदु


8.संवैधानिकता पर सवाल:
विपक्षी नेता और मुस्लिम संगठनों ने इस कानून को संविधान के अनुच्छेद 25 (धार्मिक स्वतंत्रता) और 26 का उल्लंघन बताया है। ।​
9.परामर्श की कमी:
संयुक्त संसदीय समिति (JPC) में इस बिल पर चर्चा के दौरान कई मुस्लिम संगठनों और विपक्ष ने शिकायत की कि उनके सुझावों को नजरअंदाज किया गया, जिससे यह धारणा बनी कि यह कानून जल्दबाजी में और एकतरफा तरीके से लाया गया।​


यह जल्दबाजी कहीं अमेरिकी राष्ट्रपति की Tarrif  की घोषणा को लेकर नहीं थी ? क्योंकि इसे संसद में उसी दिन यानि 2 अप्रैल 2025 को बहस के लिये रखा गया था। जब पूरी दुनिया में Tarrif मुद्दा पर माथापच्ची चल रही थी तो उस वक्त भारत वक्फ की बहस में उलझा हुआ था।

स्पष्ट है वक्फ कानून के कई प्रावधान पारदर्शिता और सुधार के सरकारी दावों की पुष्टि करने की बजाय मुस्लिम समुदाय और विपक्ष के बीच अविश्वास और डर पैदा करने वाले हैं। 

बीजेपी सरकार का मुस्लिम समुदाय के साथ पिछले दस सालों का व्यवहार डर की आशंका को और बढ़ाता है। 

सरकार एकतरफ ईद पर मुसलमानों में ईदी बांटती है दूसरी तरफ वक्फ संशोधन कानून ले आती है। 

ऐसा लगता है कि किसी बच्चे को चॉकलेट दे अपहरण करने की कोशिश की जा रही हो? 

आखिर बीजेपी सरकार मुसलमानों के कल्याण के पीछे क्यों पड़ी रहती है? ऐसे में तो उसपर मुस्लिम तुष्टिकरण के आरोप भी लग सकते हैं।

सरकार को तो सबकी चिंता करनी चाहिये, हिन्दुओं की भी।दक्षिण के सिर्फ चार राज्यों के मन्दिरों के पास वक्फ के पूरे देश भर में भूसंपत्ति से अधिक संपत्ति है उसकी कोई चिंता तो नहीं दिख रही है ? इस पर भी कानून बना हिन्दुओं का कल्याण करना चाहिए। 

इस अधिनियम के प्रभाव और इसके विरोध को लेकर सुप्रीम कोर्ट सहित  देशभर में बहस जारी है। सुप्रीम कोर्ट ने इसके कई प्रावधानों पर फिलहाल रोक लगा रखी है बहस की अगली तारीख 5 मई 2025 को तय की है।

बीजेपी सरकार में वक्फ के इस कानून पर संभावित फैसले को लेकर बेचैनी है। श्री किरन रिजीजू जैसे मंत्री को सुप्रीम कोर्ट को धमकाने और उपराष्ट्रपति श्री धनकड़ का सुप्रीम कोर्ट को हड़काने वाले बयान इसके सबूत है । 

बीजेपी के सांसद निशिकांत दुबे ने चीफ जस्टिस संजीव खन्ना को गृहयुद्ध का जिम्मेवार बतला कर  हद ही कर दी है । बीजेपी का ये समस्त प्रलाप सुप्रीम कोर्ट पर दवाब बनाने के लिये किया जा रहा है। 

ऐसे में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि आने वाले समय में यह कानून किस प्रकार से और किस हद तक लागू होता है और इसके क्या परिणाम होते हैं ? 

ध्रुवीकरण हो पाता है कि नहीं? चल हट! कांग्रेसी कहीं का। 







Parimal

Most non -offendable sarcastic human alive! Post Graduate in Political Science. Stay tuned for Unbiased Articles on Indian Politics.

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