खंडन - इस लेख में किये गए व्यंग्य, लेख की रोचकता बनाये रखने के लिये ही किया गया । यदि फिर भी किसी दिल को चोट पहुँचती है तो उसके लिये Indianspolitical.com खेद व्यक्त करता है।
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के द्वारा अपने दूसरे कार्यकाल में कथित माई डियर फ्रेंड श्री नरेन्द्र मोदी और भारत के प्रति बदजुबानी, धमकी भरा अंदाज और आक्रमक रवैया भारतीयों के लिये किसी सदमे से कम नहीं है। इसने दोस्ती की वो गलतफहमी दूर कर दी है जो How di Modi नमस्ते ट्रंप की चुनावी इंवेटबाजी और गोदी मीडिया के प्रोपेगेंडा ने पैदा की थी।
अब जब भी ट्रंप और श्री मोदी दोनों दोस्ती की बात करते हैं तो ऐसा लगता है कि मानो एक ताना मार रहा है तो दूसरा अपनी झेंप मिटा रहा है।
यह सच्चाई है कि अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में दोस्ती या संबंध देशों के राष्ट्रहित ही तय करते हैं ।
इवेंटबाजी, गले मिलना, झूला झूलना और फोटोबाजियां ये काम नहीं करती हैं । विश्व गुरु टाईप के नूतन अपवाद को छोड़ दें तो प्रायः हर देश अपने राष्ट्रहित के दिशा में ही कार्य करते हैं।
राष्ट्रहित की मांग होगी तो आपके साथ झूला झूलने के बावजूद आपके देश की जमीन को हथिया जा सकता है और गले मिलकर भी गला काटा जा सकता है।
ट्रंप की बदजुबानी और भारत की चुप्पी: दोस्ती या समर्पण? (Trump's Harsh Words and India's Silence: Friendship or Surrender?)
कथित फ्रेंड डोनाल्ड ट्रंप ने अपने चुनावी अभियान में राष्ट्रवाद का उन्माद पैदा करने के लिए अपने देश से अवैध प्रवासियों जिसे एलियन का नाम दिया था निकालने की बात की थी। इसका चुनाव में उन्हें जबरदस्त लाभ भी मिला।
चुनाव में जीत मिलने के बाद इसके लिये भारतीयों को ही मुख्य रूप से टारगेट किया और उन्हें बेड़ियों और हथकड़ियों में जकड़ कर अपने सैनिक विमान में भेज कर और इसकी वीडियो बना कर विश्व भर में वायरल कर भारत को बदनाम किया। भला कोई दोस्त ऐसा करता है क्या?
मेक्सिको और कोलंबिया जैसे देशों के साथ के उनकी ऐसी कोशिश नाकाम हो गई। छोटे देश की बिन 56 इंच की पर मजबूत लीडरशिप ने अमेरिकी सैन्य विमान को अपने यहां उतरने तक नहीं दिया और स्वयं अपने विमान भेज कर अपने नागरिकों को ससम्मान वापस लाया।
भारत जैसे बड़े देश की कथित 56 इंचीय विश्वगुरु वाली लीडरशिप ऐसा नहीं कर सकी। इस हरकत का बुरा तक ना माना और विदेश मंत्री ने संसद में यह तक कह दिया कि हथकड़ियों में भेजने की अमेरिकी रीत रही है।
पर अमेरिका ने नेपाल के अवैध प्रवासियों को बिन हथकड़ी वापस भेज कर इस झूठ को भी उजागर कर दिया।
इसी प्रकार जब डोनाल्ड ट्रंप ने सभी देशों के साथ 2 अप्रैल 2025 से Reciprocal Tarrif लगाने की धमकी भरी घोषणा की तो उसी समय भारत को Tarrif King कह भारत का मजाक उड़ाया। ताज्जुब की बात ये रही वहां बैठे भारतीय प्रधानमंत्री कोई प्रतिकार करने की बजाय खिसियानी हंसी की मुद्रा बना कर बैठे रहे। दोस्ती निभाने का भला यह कौन सा तरीका है?
यूक्रेन के जेलेन्सकी की तरह नहीं तो कम से कम फ्रांस के राष्ट्रपति इमेनुएल मैक्रॉन की तरह ट्रंप की बदजुबानी और झूठ पर टोकना तो चाहिए।
कहना चाहिये कि प्रत्येक देश अपने राष्ट्र हित की दिशा में ही कार्य करता है तो अमेरिका ने भी भारत के बढ़े हुये Tarrif के साथ समझौता किया था तो उसमें उसने अपना राष्ट्र हित जरूर देखा होगा?
दूसरे World Trade Organization विकासशील देशों को विकसित देशों पर अधिक Tarrif लगाने की छूट देता है और भारत ने ऐसा ही किया है तो गलत क्या है?
ट्रंप का 'माई डियर फ्रेंड' को झटका: भारत की कूटनीति कहां गई? (Trump's Jolt to 'My Dear Friend': Where Did India's Diplomacy Go?)
ऐसा कुछ हुआ नहीं मुंह में दही जमा रहा। खबर आने लगी कि भारत अमेरिकी सामानों पर आयात कर कम कर रहा है।
यह खबर भी भारत सरकार की बजाय डोनाल्ड ट्रंप की ओर से आई। अंदाज़ देखिये हमने भारत को बेनकाब कर दिया इसलिये वो Tarrif कम कर रहा है।
भारत कौन सा चोरी छुपे काम कर रहा था कि उसे बेनकाब कर दिया? यह दोस्ती का कौन सा अंदाज है, भाई ?
इससे पहले ट्रंप ने यह कह दिया कि अमेरिका माई डियर फ्रेंड श्री मोदी को चुनाव में वोटर टर्न आउट बढ़ाने के लिये 21 मीलियन डॉलर दे रहा है।
अरे भाई साहब, आप दोस्ती निभा रहे हैं कि दुश्मनी निकाल रहे हैं? भारतीय मित्र की चुप्पी को कूटनीति का नाम दिया जा रहा है।
यह कौन सी कूटनीति है कि हम रूस से सस्ते पेट्रोल मिल रहे हैं फिर भी अमेरिका से खरीदेंगें।
हम अमेरिका की खटारा और महंगी युध्द विमान F 35 खरीदने पर भी विचार करने लगेंगे।
एलेन मस्क की टेस्ला कार की फैक्ट्री भारत में लगाने 110% कर की अपनी जिद छोड़ उसे 10% पर ही भारत में बेचने की इजाज़त दे देंगे। यह भी नहीं सोचा कि इससे भारतीय कार कम्पनियों का क्या हाल होगा।
इतना ही नहीं ऐलन मस्क Star Link ( सैटेलाइट इंटरनेट सर्विस) को भारत में आने की परमिशन दे देंगे ताकि भारतीय संचार व्यवस्था पर अमेरिकी प्रभुत्व का मार्ग प्रशस्त हो सके। अब भारत के वायुसेना की भी हर गतिविधि पर अमेरिकी कंपनी की नजर रहा करेगी।
यूक्रेन को सीजफायर करने हेतु ऐलन मस्क की Star link बंद करने की दी गई धमकी तो शायद याद नहीं रही। ऐसी स्थिति कभी आई तो भारत क्या कर पायेगा?
ऐलन मस्क का ही AI Grok प्रधानमंत्री और बीजेपी की सांप्रदायिकता और आरएसएस की कथित देशभक्ति की पोल खोल रहा है उसे तो रोका नहीं हो रहा है Star link को क्या खाक रोक पायेंगे?
आगे चलते हैं। भारत ने अमेरिका की कंपनी होलटेक इंटरनेशनल (Holtec International) के साथ भारत में परमाणु रिएक्टर प्लांट लगाने का समझौता भी कर लिया है। भारत में एक कानून Civil Liability for Nuclear Damage Act, 2010 है जिसके तहत आपूर्तिकर्ताओं पर दुर्घटना की स्थिति में भारी दायित्व डाला गया है।
इसके बावजूद भारत सरकार ने आश्वासन दिया है कि आपूर्तिकर्ताओं( अमेरिकी कम्पनी) के खिलाफ दायित्व का दावा तभी संभव होगा जब दुर्घटना में उनकी ओर से जानबूझकर दोष सिद्ध हो।
उल्लेखनीय है 2016 में ही भारत Convention on Supplementary Compensation for Nuclear Damage (CSC)शामिल हो गया। यह संधि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर परमाणु दायित्व को मानकीकृत करती है और आपूर्तिकर्ताओं को अतिरिक्त कानूनी सुरक्षा प्रदान करती है।
CSC के तहत, दायित्व मुख्य रूप से ऑपरेटर पर रहता है और भारत ने यह आश्वासन दिया कि उसके कानून का इस संधि के अनुरूप व्याख्या किया जाएगा।
मतलब अब यदि इस अमेरिकी रियेक्टर में चेरनोबिल जैसी कोई दुर्घटना घटती है तो जिम्मेवारी अमेरिकी कंपनी की नहीं होगी। दूसरा इस रियेक्टर के उपयोग पर भी अमेरिका का नियंत्रण रहा करेगा। भूतपूर्व प्रधानमंत्री स्व० मनमोहन सिंह इन दोनों ही बातों पर सहमत नहीं थे पर विश्वगुरु इस पर सहमत हो गये हैं।
इसी बीच अमेरिका की एक टीम Tarrif पर चर्चा करने भारत आई । इस बातचीत में क्या नतीजा निकला यह अभी पता नहीं चला है। यह खबर आ रही है अमेरिका भारत पर कृषि उत्पाद का क्षेत्र भी खोलने का दवाब बना रहा है। यदि भारत ने यह बात भी मान ली तो भारत के किसानों की बर्बादी भी तय हो जायेगी।
आखिर 2 अप्रैल 2025 भी आ गया और डोनाल्ड ट्रंप ने "Reciprocal Tarrif " लागू करने की घोषणा कर दी। ट्रंप ने प्रायः पर हर देश जो जितनी अमेरिका पर आयात कर लगाता था उस पर उसका आधा आयात कर लगा दिया। चीन 67% कर लगाता था उस पर 34% कर लगा दिया गया।
माई डि़यर फ्रेंड के भारत को कोई छूट नहीं मिली। यह अमेरिका पर 52 % आयात कर लगाता था तो इस पर 26% आयात कर अमेरिका ने लगा दी।
छूट मिलती तो कहते भारत की तथाकथित कूटनीति काम आई। गोदी मीडिया द्वारा खबर चलाई गई भारत की दवा कंपनियों और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों पर छूट मिल गई है। ट्रंप ने यह कह कर अभी इन पर कर की घोषणा बाकि है इस खबर को निरस्त कर दिया।
डोनाल्ड ट्रंप की इस नीति से पूरी दुनिया में हड़कंप मच गया है। ट्रेड वॉर की आशंका बन गई है। हर देश अपने नफा नुक्सान का आकलन कर रहा है और उसका सामना करने का उपाय ढ़ूढ़ रहा है।
छोटा हो या बड़ा देश ट्रंप की Tarrif नीति पर प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कुछ ना कुछ बोल रहा है । चीन ने तो अमेरिका पर 34% जवाबी कर की भी घोषणा कर दी।
आर्थिक मार और चुप्पी: क्या अमेरिका भारत को सैटेलाइट स्टेट बना रहा है? (Economic Hit and Silence: Is America Making India a Satellite State?)
जबकि भारत में सब कुछ खामोशी से सहन किया जा रहा है।दरअसल यहां Tarrif संकट का समाधान ढ़ूंढ़ने के बजाय इस संकट को छिपाने और कमतर बतलाने के उपाय ढ़ूढ़ें जा रहे हैं।
जनता को औरंगजेब की कब्र और वक्फ बोर्ड के बहस में उलझा कर छोटे छोटे पड़ोसी देशों में (बड़े देशों ने तो बुलाना छोड़ दिया है) जाकर हाथ हिलाने और औपचारिक सम्मान बटोरने के दृश्य दिखाये जा रहे हैं।
जबकि आर्थिक परिदृश्य ये है कि नोटबंदी और जीएसटी के दुष्प्रभाव से तकरीबन 717 अरब डॉलर कर्ज मे पहले से डूबे भारत पर अमेरिकी की नई Tarrif से 7 बिलियन डॉलर तक के नुकसान की संभावना है। यह नुक्सान भारत में आर्थिक तबाही लाने वाला है। भयंकर मंहगाई और जबरदस्त बेकारी दरवाजे पर दस्तक देने वाले है ं।
ऐसी स्थिति में भी विश्वगुरु द्वारा मोटापा दूर करने के उपाय बतलाये जा रहे हैं। जब रोम जल रह था तो नीरो बांसुरी बजा रहा था यह सुना ही था, वैसा ही मंजर भारत में दिख रहा है।
ये ना तो कूटनीति है और ना ही लापरवाही बल्कि यंत्रमत के सहारे Autocracy में बदले भारत की स्वतंत्र विदेश नीति के अंत होने और एक सैटेलाइट स्टेट की दिशा में जाने की घोषणा है, समर्पण है। स्वतंत्र भारत की स्वतंत्र विदेश नीति में ऐसा क्रांतिकारी परिवर्तन कैसे संभव हुआ इसके लिये अधिक चिन्तन की जरूरत नहीं। क्योंकि इसका खुलासा भारतीय प्रधानमंत्री के अमेरिका दौरे समय ही हो गया।
अडानी कनेक्शन और भारत की विदेश नीति(The Adani Connection and India's Foreign Policy)
जब डोनाल्ड ट्ंप ने अपने शपथ ग्रहण में भारतीय माई डियर फ्रेंड को आमंत्रित नहीं किया था इसकी थोड़ी तो नाराजगी इधर से तो दिखनी चाहिए। यह नाराजगी तो दिखी नहीं उल्टा मुलाकात का समय मांग कर वहां जाने की जल्दबाजी आ पड़ी। आखिर भारत पर ऐसी कौन सी विपदा आने वाली थी?
विपदा तो गौतम अडानी पर आई हुई है जिसके विरूद्ध भ्रष्टाचार के मामले में अमेरिका न्यायालय से वारंट निकल चुका था। वारंट की तामिल रूकवाने की मंशा तो नहीं ही होगी तो फिर यह सवाल ब्लूमबर्ग के संवाददाता ने पूछ ही लिया तो फिर बौखलाने की भी जरूरत नहीं थी !
पर ऐसा हुआ, "वसुधैव कुटुम्बकम" का राग छेड़ते हुए अडानी को व्यक्तिगत मामला बता दिया। सवाल है कि जब वसुधैव ही कुटुम्ब हो गया तो फिर व्यक्तिगत क्या हो सकता ? दोस्त हो सकता है क्या? अरे हां हो सकता है !
इससे स्पष्ट हुआ कि भंते का दोस्त कोई है तो वो गौतम अडानी है, बाकि सब कहानी है। दोस्त को कुटुंब से ऊपर मानना तक तो चल सकता है पर देश के भी उपर भी होगा तो फिर परिणाम वही होगा जो भारत भुगत रहा है। दोस्त हित अर्थात् राष्ट्र हित और दोस्त की सुरक्षा मतलब देश की सुरक्षा। नतीजा दोस्त मालामाल पर देश बदहाल ?
अमेरिका से खबर आई कि वहां की जनता डोनाल्ड ट्रंप और उनके दोस्त अडानी सॉरी, ऐलन मस्क की नीतियों के खिलाफ 1200 शहरों में लाखों की संख्या सड़कों पर उतर आई है। वे ट्रंप द्वारा अमेरिका का गोबराचेव( स्पेलिंग पर नहीं भाव पर जायें) नहीं होने देना चाहती।
भारत की जनता से ऐसी उम्मीद की नहीं जा सकती। यहाँ तो उसे साम्प्रदायिकता का जहर पीला कर मदहोश कर दिया गया है। वातावरण विश्व गुरु जिन्दाबाद अंधभक्त जिन्दाबाद टाईप का है।
अस्तु जब जनता मदहोश हो और सत्ताधारी ही सत्यानाश करने पर तुले हों और तो उस देश को तो राम ही बचा सकते हैं।
इसलिये बोलिये "राम नाम सत्य है ।" अई शाबाश!
शानदार लेखन विस्तृत जानकारी रोचक व्यंग्य वाह वाह।
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